खेल सियासत का…..

118

डॉ.अम्बरीष राय

ज़िम्मेदारी और जवाबदेही किस चिड़िया का नाम है, ये हमें मौजूदा मेनस्ट्रीम मीडिया के क्रियाकलाप से आसानी से समझ में आ सकता है. सपा के कभी कद्दावर नेता रहे आज़म खान संसदीय राजनीति से किस तरह उखाड़ कर फेंक दिए गए, सार्वजनिक है. अपने बड़बोलेपन के लिए कुख्यात रहे आज़म खान को कभी सपने में भी अंदाज़ा नहीं था कि उनका सियासी रसूख इस क़दर मिट्टी में मिला दिया जाएगा.

लेकिन वो कहते हैं ना नियति को निमंत्रण नहीं दिया जाता और साथ ही ये भी एक मज़बूत तय पाया गया सच है कि सियासत बेरहम और मौक़ापरस्त होती है. आज़म खान सियासत की बेरहमी और मौक़ापरस्ती दोनों का शिकार हुए और सियासत के हाशिये से होता उनका सफ़र सियासत के कूड़ेदान में जा पहुंचा. या यूं कहें कि जबरन उनका सियासी कॅरियर कूड़ेदान के हवाले कर दिया गया.

मैंने पहले मीडिया का चेहरा दिखाने की कोशिश की है तो बात पहले मीडिया की ही. एक थे अनिल कुमार चौहान, एक थे डीएम आंजनेय कुमार सिंह. आंजनेय सिंह की आज़म खान से क्या दुश्मनी थी, ये तो आंजनेय सिंह बेहतर जानते होंगे लेकिन उन्होंने अनिल कुमार चौहान से आज़म खान के खिलाफ़ जहरीला भाषण देने की शिकायत दर्ज कराई.

मामला हेट स्पीच का था और निज़ाम आज़म खान के खिलाफ़. मामला एमपी एमएलए कोर्ट पहुंचा. तारीख़ दर तारीख़, जिरह बहस के बाद एक दिन अदालत ने फैसला सुनाया और आज़म खान को इस मामले में सज़ा हो गई. मौजूदा कानून कहता है कि दो साल से ज़्यादा की सज़ा पाया व्यक्ति संसदीय राजनीति में नहीं रह सकता. इस मामले में अदालत ने आज़म खान को तीन साल की सज़ा सुनाई और इस ग्राउंड पर आज़म खान का संसदीय सफ़र ख़त्म कर दिया गया.

गौरतलब है कि इस मामले में कृषि विभाग में तैनात कर्मचारी अनिल कुमार चौहान के द्वारा मिलक कोतवाली में आजम खान के खिलाफ 9 अप्रैल 2019 के केस दर्ज करवाया गया था. मामले आरोप लगाया गया था कि आजम खान ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और तत्कालीन डीएम आंजनेय कुमार सिंह के खिलाफ अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल किया और दो समुदायों के बीच हिंसा भड़काने का काम किया. अनिल चौहान इस मामले में प्रमुख गवाह थे.

मीडिया ने जोर शोर से इस मामले का कवरेज़ किया. पिछले बुद्धवार को सत्र न्यायालय ने शिकायतकर्ता के इस बयान के बाद कि उसने तत्कालीन डीएम/ निर्वाचन अधिकारी के दबाव में झूठी शिक़ायत की थी, आज़म खान को इस मामले में दोषमुक्त कर दिया. फैसला सुनाते समय जिला एवं सत्र न्यायाधीश अमित वीर सिंह की टिप्पणियां काफ़ी दिलचस्प और महत्वपूर्ण रहीं. बावजूद इसके सियासी कोलाहल में सब डूबता ही नज़र आया.

मानना पड़ेगा सहूलियतों के बोझ तले गिरवी पड़े मीडिया मुगल इस मामले पर भी रायसीना हिल्स से लेकर कालीदास मार्ग की आधिकारिक सलाह के इन्तज़ार में ही रहे. मीडिया की सुर्खियों से लेकर मीडिया के सामान्य कामकाज़ में ये ख़बर भी वैसे ही किसी कोने में सिसक रही है, जैसे आज़म खान का सियासी इस्तेकबाल. और मीडिया को इस बात का मलाल भी नहीं है. सब कुछ रस्म अदायगी के तौर पर निपटा दिया गया है.

जानकारी के लिए बता दूं कि आज़म खान अभी भी संसदीय राजनीति में लौट नहीं पाएंगे. मुरादाबाद के छजलैट मामले में भी वो दो साल के सज़ायाफ्ता हैं लिहाज़ा अभी वो विधानसभा और संसद का जनप्रतिनिधि के तौर पर शक़्ल नहीं देख सकते. और ये सारा खेल सियासत ने ही रचा, खेला और जीत गई , इस पर फिर कभी.