आखिर कब तक नीलाम की जाएंगी बेटियां …..

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उन्नाव हादसे ने याद दिलाया फिर वही हाथरस कांड आखिर क्यों इस तरह की वारदात को अंजाम दिया जा रहा है,और वारदात होने के बाद वारदात होने वाले स्थान को छावनी मे तुरंत तब्दील कर दिया जाता है। बहुत से सवाल उठ बैठते मन में कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा, कौन कर रहा,और किसको बचाने की फिराक मे तुरंतु उस गांव या स्थान की नजरबंदी बहुत ही कड़ाई से कर दी जाती? मन मे उठे हजारों सवालों के तहत मीडियाकर्मियों के प्रवेश पर भी रोक लगा दी जाती है।

आखिर क्यों? ऐसा क्या हुआ और किसके कहने पर क्या इसमें किसी की कोई चाल समाई है? हाथरस मे हुऐ भयावह हादसे को अभी इंसा जह़न से निकाल भी ना पाया था कि उन्नाव में फिर उसी तरह का भयावह हादसा हो गया। बस अंतर यह है कि जहां हाथरस मे एक दलित लड़की को शिकार बना वारदात को अंजाम दिया था। वहीं उन्नाव मे तीन लड़कियों को शिकार बनाया गया। आखिर ऐसा क्या कसूर किया लड़कियों ने जो उन्हें पेड़ों से बांध कर इतनी बेरहमी से मरने के लिये छोड़ दिया गया। बात खुलकर दुनिया के सामने ना आये इसके लिये आनन फानन मे उन्नाव को ही छावनी मे तबदील कर दिया गया।
आखिर ऐसी वारदातों मे दलित लड़कियों को ही शिकार क्यों बनाया जा रहा है। इन तीन लड़कियों को जहरीले पदार्थ दिये जाने की बात सामने आ रही है।

जिसमें से दो कि मौत हो गई और एक का इलाज हो रहा है। सभी के बयान मुताबिक लड़कियों के हाथ-पांव बंधे हुए थे और उन्हें जहर भी दिया गया। क्या ऐसी वारदातें किसी षड्यन्त्र के तहत की जा रही हैं। या किसी की आपसी रंजिश के तहत ये कहना बहुत ही मुश्किल है।परंतु ऐसे हादसों मे शिकार सिर्फ और सिर्फ बेटियों को ही बनाया जा रहा है। जहां एक ओर बेटी पढ़ाओं, बेटी बचाओं का नारा हर ओर विख्यात हो रहा। ठीक उसके ही विपरीत दलितों की बेटियों का शिकार हो रहा। जिससे ये पूर्णत: स्पष्ट हो रहा है कि ये सब एक सोची समझी चाल के तहत जाल बिछा कर किया जा रहा है।

हाथरस कांड की तरह ही कुछ समय उन्नाव की इन बेटियों की चर्चा सुर्खियों मे रहेगी। फिर वापस लोग अपनी दुनिया में खो जायेंगे। और फिर कोई ना कोईएक नया भयावह हादसा दस्तक दे जायेगा हमारे भारत देश की बेटियों के दर पर। ना जाने कब सुरक्षित हो पायेगी हमारे देश की बच्चियां। मन मे फिर एक सवाल रह जायेगा क्या हाथरस और उन्नाव की बेटियों को मिल पायेगा इंसाफ। आज तक हाथरस मे हुए हादसे को अंजाम देने वाले अपराधी का पता ना लग पाया है बस आज भी यही जवाब मिलता की पुलिस छानबीन कर रही है और सी.आई.डी. की टीम भी जांच कर रही है।

ये जांच कब तक चलेगी और इनका परिणाम आएगा या नहीं या फिर एक दलित बेटी की चीख पुकारों मदद की गुहार करती हुई फाइल दब के रह जाऐगी दूसरी फाइलों के दबाव में और सिर्फ धूल मे सनी की सनी रह जायेगी सालों साल जिसकी चर्चा भी एक दिन गुमनामियों के अंधेरों मे खो जायेगी। कोई सुद्ध- बुद्ध भी ना लेने वाला होगा मरने वाली पीढ़िता की और उसके पीड़ित परिवार की।