क्या कांग्रेस का हाल पंजाब और गुजरात जैसा..?

161
क्या कांग्रेस का हाल पंजाब और गुजरात जैसा..?
क्या कांग्रेस का हाल पंजाब और गुजरात जैसा..?

सचिन पायलट हटे तो राजस्थान में कांग्रेस का हाल पंजाब और गुजरात से भी बदतर होगा। अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस की कभी जीत नहीं हुई।प्रदेश प्रभारी रंधावा के सुर बदले। क्या कांग्रेस का हाल पंजाब और गुजरात जैसा..?

एस0पी0 मित्तल

राजस्थान। पंजाब में कांग्रेस के विधायक और मौजूदा समय में राजस्थान के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा का कहना है कि राजस्थान को पंजाब नहीं बनने दिया जाएगा। रंधावा का यह बयान पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के 11 अप्रैल के अनशन के संदर्भ में है। रंधावा के बयान से फिलहाल लगता है कि अनशन के मद्देनजर पायलट पर अनुशासनात्मक कार्यवाही हो सकती है। हो सकता है कि कारण बताओ नोटिस देकर मामले को रफा-दफा कर दिया जाए, लेकिन यदि सचिन पायलट हटते हैं तो राजस्थान में कांग्रेस का पंजाब और गुजरात से भी बुरा हाल होगा। कांग्रेस को पंजाब में 177 में से 18 और गुजरात में 182 में से मात्र 19 सीटें मिली है। रंधावा भले ही अभी अपनी मूछों पर ताव दे रहे हों, लेकिन रंधावा को यह समझना चाहिए कि अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए राजस्थान में कांग्रेस की कभी जीत नहीं हुई है। गहलोत तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं। पहली बार गहलोत के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस को 56 सीटें मिली और फिर 2013 में 200 में से मात्र 21 सीटें मिलीं।

रंधावा के सुर बदले:- प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा 12 अप्रैल से ही दिल्ली में है। 12 अप्रैल को राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े से मुलाकात के बाद रंधावा ने कहा था कि अब पायलट के खिलाफ कार्यवाही होगी। लेकिन 13 अप्रैल को रंधावा के सुर बदल गए। उन्होंने कहा कि विस्तृत चर्चा के बाद पायलट के अनशन पर कोई निर्णय लिया जाएगा। सूत्रों के अनुसार गांधी परिवार की भरोसेमंद संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल ने पायलट के मुद्दे पर रंधावा से संवाद किया है। वेणुगोपाल ने पूरे घटनाक्रम पर कोई जल्दबाजी नहीं करने के निर्देश दिए हैं।

अब गहलोत सरकार के मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने कहा है कि इस बार गहलोत के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस को 11 सीटें भी नहीं मिलेंगी। गुढा उन बसपा विधायकों में शामिल हैं, जिनके दम पर गहलोत ने अपनी सरकार चलाई है। 2018 में भी सचिन पायलट की मेहनत की वजह से कांग्रेस को बहुमत मिला है, लेकिन कांग्रेस हाईकमान की मेहरबानी से गहलोत मुख्यमंत्री बन गए। इससे पहले परसराम मदेरणा और सीपी जोशी का हक मार कर गहलोत सीएम बने। जिस हाईकमान ने गहलोत को तीन तीन बार मुख्यमंत्री बनाया उसी हाईकमान को गत वर्ष 25 सितंबर को आंखें दिखाकर गहलोत ने मुख्यमंत्री का पद बरकरार रखा।

मुख्यमंत्री गहलोत को लगता है कि सरकार की उपलब्धियां गिना कर इस बार जीत हासिल कर ली जाएगी, लेकिन यदि पायलट को अलग किया जाता है तो फिर मंत्री राजेंद्र गुढा की बात सही साबित होगी। पंजाब में तो कांग्रेस पार्टी आम आदमी पार्टी से ही हारी है, जबकि गुजरात में कांग्रेस की बुरी हार का कारण भी यही पार्टी रही है। खुद गहलोत ने भी गुजरात में कांग्रेस की हार के लिए आप को जिम्मेदार बताया है। पंजाब और गुजरात दोनों राजस्थान की सीमा से लगे प्रदेश हैं, लेकिन इसके बावजूद भी गहलोत को यह मुगालता है कि कांग्रेस जीतेगी। जैसी घोषणाएं इन दिनों की जा रही है, वैसी ही गहलोत पूर्व के दो कार्यकालों में की थी, लेकिन चुनाव कांग्रेस को प्रदेश की जनता ने नकार दिया। रंधावा, सचिन पायलट पर कार्यवाही की बात तो कह रहे हैं, लेकिन अपने प्रभारी के कार्यकाल में अशोक गहलोत और सचिन पायलट को एक साथ नहीं बैठा सके हैं। अपने दायित्व में विफल रहे रंधावा अब राजस्थान में कांग्रेस का भट्टा बैठाने में लगे हुए हैं।

सचिन पायलट जब अनशन पर बैठे तभी उन्हें अहसास था कि कार्यवाही होगी। पायलट की अपनी रणनीति तैयार है। कांग्रेस में अब तो समझौता होगा, वह सीटों के बंटवारे को लेकर होगा। यदि पायलट को सम्मानजनक टिकट नहीं मिलते हैं तो फिर राजस्थान में तीसरे मोर्चे की राह खुलेगी, जिसमें आप और हनुमान बेनीवाल की आरएलपी शामिल होगी। तीसरे मोर्चे का लक्ष्य 20-25 सीटों का ही रहेगा। पायलट का मकसद भी अशोक गहलोत वाली कांग्रेस को हराना होगा। क्या कांग्रेस का हाल पंजाब और गुजरात जैसा..?