क्या मौर्य बन्धु के दबाव में हैं योगी..?

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सेवा ही संगठन के कार्यों के जरिए भाजपा अगले साल होने विधानसभा चुनावों के लिए अपनी जमीन मजबूत करने की रणनीति बना रही हैं।योगी की राजनीति और प्रशासन प्रबंधन का तरीका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलता जुलता है।नौकरशाही को मजबूत रखकर अपने हाथ में सारे घोड़ों की लगाम वाली शैली में योगी भी काम करते हैं। प्रदेश में भाजपा के लिए फिलहाल योगी से बड़ा चेहरा और कोई नहीं है।भाजपा में भी योगी का कद प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के बाद तीसरे स्थान पर नज़र आता है।

उत्तर प्रदेश में जातिगत राजनीति का युग 90 के दशक से ही चला आ रहा है। मंडल गुट के लोगों की ओर से कमंडल गुट पर दबाव बनाने का आधार, राम मनोहर लोहिया का वो नारा भी रहा है, जिसमें उन्होंने पिछड़े मांगे 100 में 60 की बात कही थी। हालांकि उत्तर प्रदेश में दलितों और आदिवासियों की जनसंख्या को निकाल देने पर पिछड़ों की कुल आबादी 22 फीसदी के आसपास ही होती है। एक लंबे वक्त से नैरेटिव रहा है कि पिछड़ों की आबादी ज्यादा है, लेकिन अगर जातिगत रूप से देखें तो ऐसा नहीं है। ये कहा जा सकता है कि पिछड़ों की स्थिति भी दलितों, मुस्लिमों के करीब-करीब बराबर ही है। ऐसे में पिछड़ी जाति के नेताओं के दबाव बनाने की बात बहुत ठीक नहीं लगती। हां ये जरूर है कि उत्तर प्रदेश भाजपा में पावर सेंटर्स यानि मौर्य और योगी आदित्यनाथ के गुटों के बीच कोई आपसी टकराव अप्रत्यक्ष रूप से हो सकता है, ऐसी खबरें आती रहती हैं और इनका आधार भी रहा है।

दो करोड़ 68 लाख से बनी सड़क कई जगहों पर धंसी

भाजपा की राजनीति में ये कोई नई बात नहीं है, वे विकास की बात ज़रूर करते हैं और ये थोड़ा बहुत होता भी है, लेकिन उनका पूरा अस्तित्व हिंदुत्व के मुद्दे पर टिका होता है।भाजपा की ‘कोर आइडेंटिटी’ जिस हिंदुत्व में हैं, उसमें योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं की बड़ी भूमिका रही है। इसके साथ ये भी हक़ीकत है कि उत्तर प्रदेश के भाजपा कैडर में योगी आदित्यनाथ सबसे लोकप्रिय नेता हैं।आज उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व के नाम पर बड़ा चेहरा योगी आदित्यनाथ का ही है। यहां तक कि अन्य प्रदेशों में भी हिंदुत्व का कोई बड़ा चेहरा राजनीति में उतना सक्रिय नहीं है। जो राजनीति में सक्रिय रहे हैं वह या तो किनारे हैं या उन्हें किनारे कर दिया गया है। ऐसे में हिंदुत्व चेहरे से भाजपा बगावत कर ले ऐसा संभव होता नजर नहीं आ रहा है, इसलिए यह कह सकते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में स्वतंत्र रूप से कार्य करने में सक्षम है।

लखनऊ में केशव प्रसाद मौर्य के घर पहुंचे सीएम योगी ने उनके बेटे और बहू को अपना आशीर्वाद दिया।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बड़े मंगलवार को कई राजनीतिक हस्तियों का जमावड़ा लगा हुआ है। उत्तर प्रदेश राजधानी की सबसे शक्तिशाली सड़क कालिदास मार्ग के 08 नंबर बंगले पर योगी से लेकर संघ के दो शीर्षतम नेता दत्तात्रेय होसबोले और कृष्णगोपाल शर्मा तक जुटे। पृष्ठभूमि उत्तर प्रदेश में भाजपा का संगठन विस्तार है, जिसमें तमाम राजनेताओं को पार्टी के पदों पर बैठाया गया है। वहीं भविष्य में मंत्रिमंडल विस्तार की सुगबुगाहट है, जिसके साथ तमाम खबरें उठने लगी हैं कि योगी के नाम और 2022 के चुनाव पर पार्टी के भीतर अंतरविरोध है। जिस 08 नंबर पर तमाम बड़े लोगों का जुटना हुआ है।लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी के केशव प्रसाद मौर्य के घर जाने के अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं। खबरों में यहाँ तक है कि स्वामी प्रसाद मौर्य और केशव प्रसाद मौर्य की ओर से 2022 के चुनाव को लेकर दिए गए बयान से दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है। हालांकि लखनऊ की राजनीति को करीब से देखने वाले लोगों का कहना है कि केशव प्रसाद मौर्य के घर पहुंचे संघ नेताओं और योगी का औचित्य सिर्फ उनके पारिवारिक समारोह में हिस्सा लेना था। इस बात की पुष्टि की एक तस्वीर भी मंगलवार शाम सामने आ ही गई।

रण से पहले रणनीति पर मंथन –


जिस वक्त भाजपा में सबकुछ ठीक दिखना चाहिए, ऐसी खबरें आने लगी हैं कि मोदी और योगी के बीच अरविंद शर्मा को लेकर कोई टकराव हुआ है। हालांकि ये सब केवल पार्टी के अंदरखाने की चर्चाएं हैं, लेकिन साफ तौर पर ये जरूर है कि चुनावी साल में भाजपा के अंदर के अंतर्विरोध की स्थिति जरूर है। इस स्थिति को सुलझाने के लिए ही लखनऊ में बीते कई दिनों से बैठकों और चर्चाओं का दौर चल रहा है, जिससे कि 2022 के रण में कोई नुकसान ना हो।

सरकार के एजेन्डे में नहीं है जनता- नसीमुद्दीन सिद्दीकी

योगी पर दबाव बनाया जा सकता है….?


योगी आदित्यनाथ को मोदी-शाह ने उनकी ही चाल से घेर लिया है। योगी आदित्यनाथ को उसी जादुई छड़ी की मदद से घेर लिया गया है जिसकी बदौलत वो कुर्सी पर काबिज हुए थे।लखनऊ में काम करने वाले एक राजनीतिक कहते हैं कि योगी किसी दबाव में आएं या किसी नेता के बयान का उनपर कोई खास असर हो ऐसा लगता नहीं। अगर दबाव में आने की स्थिति होती तो ए0के0 शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाने को भी राजी हो जाते, जिसके कयास कई दिनों से लग रहे थे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। ए0के0 शर्मा को ना मुख्यमंत्री आवास के बगल का बंगला अलॉट हुआ और ना सरकार में कोई बड़ा पद मिला, ऐसे में ये तो साफ है कि योगी किसी दबाव में नहीं दिख रहे।