जानें 2022 में किसके खेवनहार बनेंगे निषाद….!

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अबकी किसकी नैया पार लगाएँगे निषाद ,”संख्याबल में ज्यादा पर नहीं मिली खास राजनीतिक अहमियत”।

चौ0 लौटनराम निषाद

प्राचीनकाल से निषाद सामाजिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग रहा है।आज़ादी से पूर्व जब यातायात के साधनों का विकास नहीं हुआ था, तो ये देश की अर्थव्यवस्था व व्यापार की रीढ़ की हड्डी थे।इनकी नौकाएं ही व्यापार व परिवहन की मुख्य साधन थीं।नदियों के माध्यम से ही सारा व्यापारिक कारोबार होता था।नदियों की कटरी या कछार में खरबूजा, तरबूज आदि जायद की फसलों के साथ नौकफेरी,मत्स्याखेट,शिकारमाही, मत्स्यपालन, सिंघाड़ा खेती,टतेलमखाना व कमलगट्टा इनकी जीविका के मुख्य साधन थे।परंतु जैसे जैसे विकास की गति आगे बढ़ी,नदियों पर पीपा पुल,चह,पक्का पुल आदि बनने शुरू हुए,ट्रक, बस, ट्रेन आदि यातायात के साधनों का विकास हुआ,निषादों की नौकाएं बेकार होती चली गईं।बालू मोरंग खनन,मत्स्य पालन, नौका घाट व नदियों की कटरी पर बालू,मत्स्य,घाट,भू माफियाओं का कब्जा होता गया,तो निषाद मछुआरा समुदाय की जातियां अपने परम्परागत पुश्तैनी पेशे से बेदखल होती गईं।रोजी रोटी की तलाश में यह समाज मुम्बई, सूरत,बड़ोदा,अहमदाबाद आदि के साथ खाड़ी देशों की ओर रुख किया।,कारण कि यह समाज बहुतायत भूमिहीन है।


40-50 के दशक से पूर्व इनकी नौकाओं के द्वारा बांग्लादेश, ढाका,रंगून तक इनका व्यापारिक कारोबार चलता था।नदी कछार की जमीनों पर पर्याप्त मात्रा में जायद की फसलों की खेती करते थे,और पश्चिम बंगाल की जुट मिलों में 90 प्रतिशत निषाद कामगार ही हुआ करते थे।पर कालांतर में जुट मीलें भी वामपंथी संगठनों की मनमानी से बंद होती गईं।राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ.लौटनराम निषाद ने निषाद वंशियों के सम्बंध में बताया कि देश की आज़ादी से पूर्व भारतीय समाज का निषाद-मल्लाह,केवट,माँझी,धीवर,बिन्द समाज ही सभी जातियों से खुशहाल था,क्योंकि नौकाएं ही व्यापार व परिवहन की मुख्य साधन थीं,नदियों की कछारी जमीन में जायद, खरीफ(ज्वार,बाजरा,सावा, मक्का आदि),रवी(जौ,चना,मटर आदि) की फसलें हो जाया करती थीं।जिससे इनकी जीविका ठीक से चल जाया करती थी।जब सिंचाई संसाधनों का साधन न होने के कारण उपरवार की जमीने ऊसर, बंजर ही रह करती थी।अपने दादा,पिता,ताऊ की बताई बातों को साझा करते हुए निषाद ने बताया कि दूसरी जातियों को ज्वार,बाजरा,जौ,चना,मटर,मक्का,बंकी धान,टांगुन, मड़ुआ, कोदो,सावा जैसे मोटन्जा के अलावा अच्छा व महीन माना जाने वाला खाद्यान्न नहीं मिलता था,निषाद बांग्लादेश,रंगून का अच्छा माना जाने वाला रैमुनिया का चावल व केवटी की दाल खाया करते थे,मैनचेस्टर की धोती पहनते थे।


कभी काफी खुशहाल रहा निषाद समाज वर्तमान में सामाजिक,शैक्षणिक, आर्थिक,व्यावसायिक व राजनीतिक रूप से अत्यंत पिछड़ा समाज हो गया है।जहाँ इनके परम्परागत पेशे लूट पिट गए,प्रदूषण के कारण नदियों का पानी जहरीला हो जाने व फरक्का बैराज बन जाने से नदियों में मछली की आमद कम होने से भी इनकी समस्याएं बढ़ गयी।लौटनराम निषाद बताते हैं कि,मेरे पिताजी,दादाजी बताते थे कि जब निषाद मांझियों की नाव ढाका, रंगून,कलकत्ता से आती थी,तो ब्राह्मण,भूमिहार, राजपूत,यादव,कुर्मी आदि के लड़के नदी घाट पहुँच जाते थे कि माँझी आये हैं तो खाने को भात,डाल व मावा मिलेगा।भूमिहार, राजपूत जैसी जमींदार जातियाँ मांझियों से कहते थे-ये माँझी,एक बोरा चावल डें दीजिये,बदले में एक दो बीघा खेत डें देते हैं,तो कहते थे कि बाबू साहब,पंडित जी-चावल इसी तरह ले जाइए,हमे खेत खलिहान नहीं चाहिए,हमारी बहुरिया, बेटे,पोते जौ,चना,मटर,ज्वार,बाजरा,मक्ककि लिट्टी नहीं खाएंगे,नहीं तो उनका गला छिल जाएगा।हमारी बहुरिया चटाई पर चावल बीनकर खाएगी,रैमुनिया का चावल केलाई की दाल खाएगी।ऋग्वेद के अनुसार-निषाद मानव समाज का पाँचवाँ वर्ग है,जिसे औपमन्वय ने इस प्रकार कहा है-चातुर्वर्ण्यं पंचमो निषाद:।

निषाद समाज की राजनीतिक शुरुआत-

1926 में रामचरण लाल निषाद एडवोकेट(अवध कोर्ट,लखनऊ) संयुक्त प्रान्त के एमएलसी बने।जिन्होंने निषाद जातियों को जागृत करने के साथ-2 क्रिमिनल कास्ट की सूची से मुक्त कराने के लिए 1912 में अखिल भारतवर्षीय निषाद महासभा के माध्यम से यूपी,बिहार,मध्यप्रदेश, बंगाल में बड़ा सामाजिक काम किये।महात्मा गांधी के शिष्य प्रभुदयाल विद्यार्थी 1952 से 1974 तक बाँसी-बस्ती(अब सिद्धार्थनगर) से विधायक रहे।1969,1974,1977 व 1980 में 5-5 विधायक बने।1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश से 5 निषाद विधायक बने।1884-85 में इनकी संख्या 6 तक पहुँची।1974 में छेदीलाल साथी एडवोकेट विधान परिषद सदस्य बने जिन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवतीनंदन बहुगुणा ने सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग आयोग नामित किये।छेदीलाल साथी के परामर्श पर 1977 में पिछड़ी जातियों को रामनरेश यादव की सरकार ने 15 प्रतिशत आरक्षण कोटा की व्यवस्था किये। 1977 में जनता पार्टी से बाबू मनोहरलाल एडवोकेट(कानपुर) व जयपाल सिंह कश्यप एडवोकेट(आँवला) से सांसद बने।


1989 में जनता दल से 4 व कांग्रेस से 1 विधायक बने।1991 में रामलहर में भाजपा से 2 व जनता दल से 2 विधायक बने व बसपा से भी एक विधायक बने।1993 में सपा-बसपा गठबंधन से 6 भाजपा से 1 विधायक बने।जिनमे से 3 लोगों मनोहरलाल, विशम्भर प्रसाद निषाद व रामकिशोर बिन्द को मंत्री बनाया गया।बाबू मनोहरलाल पहली बार निषाद समाज से कैबिनेट मंत्री बनाये गए।पशुधन एवं मत्स्य पालन मंत्री मनोहरलाल जी ने 20 जनवरी,1994 को बेगम हजरत महल पार्क में राष्ट्रीय निषाद संघ की विशाल ऐतिहासिक रैली कराए।इसी रैली में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने फूलन देवी के सभी मुकदमे वापस लेने के साथ बालू मोरम खनन व मत्स्य पालन पट्टा निषाद जातियों को दिए जाने की घोषणा किये।मनोहरलाल जी ने उत्तर प्रदेश में निषाद, लोधी,बिन्द, कश्यप आदि को एक टाट पर बिठाने व भाईचारा बढ़ाने का बड़ा काम किये।
1996 में निषाद विधायकों की संख्या बढ़कर 8 तक पहुंच गई और फूलन देवी(मिर्ज़ापुर-भदोही),विशम्भर प्रसाद निषाद(फ़तेहपुर) से सांसद चुने गए।1999 में फिर फूलन देवी सांसद निर्वाचित हुईं और इनकी 25 जुलाई,2001 में हत्या के बाद हुए उपचुनाव में रामरती बिन्द सांसद निर्वाचित हुए।दीपक कुमार उन्नाव से सांसद बनकर दिल्ली गए।2002 के विधानसभा चुनाव में सपा व बसपा से 4-4 व जदयू से 1 कुल 9 निषाद विधायक बने।यह अबतक की सबसे बड़ी संख्या है।2004 के उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में पहली बार 5 निषाद,कश्यप मंत्री बने।

प्रदेश में निषादों में उपजातीय विभाजन-

पूर्वांचल में निषाद मल्लाह,केवट,माँझी,बिन्द के नाम से,अवध क्षेत्र में केवट,मल्लाह,गोड़िया,बुलदेलखण्ड में मल्लाह,केवट,धीवर,रैकवार,कानपुर क्षेत्र में मल्लाह,कश्यप,बाथम व पश्चिम क्षेत्र में मल्लाह,धीवर,तुरैहा के नाम से जाने जाते हैं।वाराणसी,मिर्जापुर,प्रयागराज मण्डल के 9 जिलों में बिन्द के नाम से जाने जाते हैं।उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम को प्रभावित करने में निषाद वोटबैंक की काफी महत्वपूर्ण भूमिका है।परंतु अभी तक इन्हें जनसंख्या की दृष्टि से उचिटत भागीदारी नहीं मिली।वर्तमान में राजनीतिक गलियारे व मीडिया घराने में निषाद जाति की काफी चर्चा है।हर राजनीतिक दल अपनी तरफ करने का जुगत बिठा रहे हैं।उत्तर प्रदेश की 403 में 169 विधानसभा क्षेत्रों में निषाद वोटबैंक 40 हजार से अधिक है।

2007 में बसपा से 3 व सपा से 5 निषाद विधायक बने।2004 के लोकसभा चुनाव में सपा से शंखलाल माँझी(अम्बेडकनगर सुरक्षित),दीपक कुमार(उन्नाव) व बसपा से महेन्द्र कुमार निषाद(फ़तेहपुर) से संसद चुने गए।2012 में सपा से 5,बसपा से 3 व भाजपा से 1 निषाद विधायक चुना गया।2017 में भाजपा से 5 व बसपा से 1 निषाद, बिन्द, कश्यप को विधानसभा में पहुंचने का अवसर मिला।अभी तक 10% से अधिक संख्याबल रखने वाले निषाद-कश्यप-बिन्द समाज दहाई की संख्या तक नहीं पहुंच पाया।2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से साध्वी निरंजन ज्योति(फ़तेहपुर),धर्मेन्द्र कश्यप(आँवला) व रामचरित्र निषाद(मछलीशहर सु.) सांसद निर्वाचित हुए।2019 में सांसदों की संख्या 5 तक पहुंच गई।साध्वी निरंजन ज्योति निषाद(फ़तेहपुर),धर्मेन्द्र कश्यप(आँवला),अक्षयबर लाल(बहराइच सु),रमेशचंद्र बिन्द(भदोही),प्रवीण कुमार निषाद(सन्तकबीरनगर) से भाजपा प्रत्याशी के रूप में सांसद निर्वाचित हुए।राज्यसभा में विशम्भर प्रसाद निषाद सपा व जयप्रकाश निषाद भाजपा कोटे से सांसद हैं।इससे पूर्व नरेंद्र कश्यप बसपा कोटे से राज्यसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।इस समय विधान परिषद में सपा से रामसुंदर दास व राजपाल,बसपा से सुरेशचंद्र कश्यप व भाजपा से संजय कुमार निषाद एमएलसी हैं।पूर्व के वर्षों में भाजपा ने गोरख प्रसाद निषाद, राधेश्याम निषाद व बाबूलाल बलवंत को विधान परिषद में भेजा था।


सामाजिक न्याय चिंतक चौ0लौटनराम निषाद अन्य बड़ी जातियों की निषाद समाज के प्रति भावना का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि जब हम 1989 में बीए-2 की शिक्षा के दौरान महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय वाराणसी के डा. सम्पूर्णानन्द शोध छात्रावास में अपने बॉस व गांव निवासी डॉ. इंद्रजीत सिंह यादव,डॉ. महेन्द्रनाथ पांडेय,डॉ. वीरेंद्र सिंह,डॉ. योगेन्द्र सिंह व सामाजिक-राजनीतिक गुरु डॉ. उमाशंकर यादव के साथ रहता था,तो उस समय मालूम हुआ कि निषादों के प्रति लोगों की यह भावना है कि मल्लाह,केवट,बिन्द का वोट नूरी में लूट जाता है।छात्र नेता कहते थे कि मुगलसराय, जमानिया,बयालसी, अतरौलिया,मझवां… से टिकट मिल जाता तो हम विधायक हो जाते,क्योंकि इस क्षेत्र में केवटों, मल्लाहों,बिंदो का वोट काफी है।शाम को नूरी की दारू बंटवा दो,उनका आसानी से वोट मिल जाएगा।यह बात सुनकर हम कसम खा लिए कि नौकरी नहीं करूंगा,समाज को जगाने का काम करूँगा, वोट की ताकत का अहसास कराऊँगा।1992 से पूर्णकालिक रूप से निषाद जातियों,उपजातियों को जोड़ने जगाने के काम में जुट गया।और अपने प्रयास में काफी सफलता मिली।