मन के हारे हार…

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मन के हारे हार...
मन के हारे हार...
चित्रलेखा वर्मा
चित्रलेखा वर्मा

एक  कहावत है “मन के हारे हार है मन के जीते जीत”।

कुछ लोग अपने मनोबल और सबल संकल्प के  सहारे विकलांगता को पराजित कर , बिना किसी सहारे और दया के पूर्णरूपेण आत्म  निर्भर जीवन  व्यतीत करते हुए  उपलब्धियाँ प्राप्त की और इतिहास में उनका नाम हमेशा- हमेशा  के लिये दर्ज होगया । बच्चों सूरदास कवि , मिल्टन कवि और कुछ लोगों कोको बारे में आपने यह भी सुना होगा कि उनके दोनों हाथ नह है या एक हाथ नहीं है  पर वे अपना सारा काम पैरों से ही कर लेते हैं  ऐसे लोग जिनके शरीर के अंगों मैं कमी है ,उन्हें विकलांग कहा जाता था पर  वह तो देखो उन्हें विकलांग नक़ल कर दिव्यांग कहा जाता हैं। इस विषय पर बहुत साहित्य  और पिक्चर भी बनी है। भारत सरकार की तरफ़ से बहुत सी सुविधा दी जाती है। जिससे वे आम इंसान की तरह जीवन व्यतीत कर सके। आज हम आप को महाभारत  में कोहड ऋषि के पुत्र  अष्टावक्र की सकथा  के बारे में बतायेंगे। उनके पिता बहुत बड़े पंडित थे।कोहड की पत्नी गर्भवती थी। वेप्रतिदिन बी ने सबक़। सवेद  सवह। पाठ करते थे । तभी उनके पत्नी के गर्भस्थ बालक ने अचानक आवाज़ दी, “ यह सब बकवास है,वेदों में ज्ञान कहं है बस मात्र शब्दों का संग्रह है। ज्ञान तो स्वयं हमारे भीतर है। शब्दों में सत्य नहीं है।सत्य स्वयं में है“।” पिता क्रोध से पागल  होरहे थे। उनके अहंकार पर बड़ा आघात हुआ था। उन्होंने आवेश में शाप दे डाला  वह भी गर्भस्थ बालक को कि जब तू पैदा होगा तो  शर्म मे शर्म से छपआठ अंगों से ठंढा होगा। जब बालक ने जन्म लिया तो वह सचमुच आठ अंगों से टेढ़ा था। सन् बालक का नाम अष्टावक्र रख दिया गया था।

अष्टावक्र के सम्बन्ध में एक कथा और भी है।

जब अष्टावक्र बारह वर्ष के थे तब उनके पिता राजा जनक के  यहाँ शास्त्रार्थ कला गए। कोली ने सभी शास्तर्थियों को हरा दिया  पर वन्दित नामक एक प्रकांड पंडित से  हारने लगे । इस बात की सूचना जब  अष्टावक्र तक रही को मिली तब  वे  राजमहल पहुँच गए। उस समय शास्त्रार्थ चरमावस्था में था। उपस्थित मर्मज्ञ ने अष्टावक्र  के टेढ़े मेढ़े शरीर को देख कर हंसने लगे। अष्टावक्र ने जब उनको हँसता हुआ देखा  तो स्वयं भी खिलखिला कर हंसने लगा। इसको देखकर राज्य जनक ने उससे  पूँछ  ही लिया, “वे लोग तो तुम्हारे शरीर को देख कर हंस रहे हैं। पर तुम्हारे हंसने का क्या कारण हैं ?” उसने जवाब दिया,,” में इसलिए हंस रहा हूँ कि इन चर्म का रों की सभा में, सत्य का निर्णय  हो रहा है है“। राजा ने पूछा “चर्म कारों से तुंम्हारा क्या मतलब क्या है ।“ उसने जवाब दिया कि बहुत सीधी सी बात है  कि इन सभी लोगों को मेरी चमड़ी दिख रही है मैं नहीं दिख रहा हूँ । इसलिए वे चर्म कार हैं। मेरा शरीर टेढ़ा मेढ़ा है यह तो उन्हें  दिख रहा  है ।पर मैं वह नहीं हूँ, उन्हें नहीं दिख रहा है, जो मेरे भीतर है। वह देखो। मुझ से सीधा सादा व्यक्ति मिलना बहुत मुश्किल है। यह सब सुन कर सभी  के सिर शर्म से झुक गया था।