मल्लिकार्जुन खड़गे का राजनीतिक सफरनामा

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मल्लिकार्जुन खड़गे का ब्लॉक अध्यक्ष से राष्ट्रीय अध्यक्ष तक का शानदार सफरनामा।भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हेतु प्रत्याशी मल्लिकार्जुन खरगे सांसद द्वारा उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी कार्यालय में पीसीसी डेलीगेट्स से मुलाकात किये।बाबू जगजीवन राम जी के बाद 52 वर्ष बाद ये दूसरे दलित नेता हैं,जो इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष पद के प्रत्याशी बनाये गए हैं,जिनका अध्यक्ष बनने तय हैं।कर्नाटक के दलित समाज से आने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे ब्लॉक अध्यक्ष से राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का सफ़र तय करेंगे।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव आंतरिक लोकतंत्र का एक अनूठा उदाहरण है जहां स्थापना के समय से ही चुनाव होते रहे हैं और भारत में ही नहीं पूरे विश्व के लोकतंत्र के लिए एक प्रेरणादायी नजीर है। मल्लिकार्जुन खरगे जी का 55 वर्षों का राजनैतिक जीवन में अनुभव है जिसमें 51 साल तक वह विभिन्न संवैधानिक पदों पर रहे।9 बार कर्नाटक विधानसभा में 1972 से 2008 तक विधायक,2009 से 2019 तक लोकसभा सांसद व केन्द्रीय मंत्री रहे। 2019 से सितम्बर,2022 तक राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे।कांग्रेस संगठन में खरगे जी ब्लाक अध्यक्ष, प्रदेश अध्यक्ष से लेकर अब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बनने जा रहे हैं, यह विश्व में अपने आप में इकलौती मिसाल है।खरगे का शुरुआती जीवन बड़े विषम परिस्थितियों में बीता ,बचपन में माँ का देहांत परिवार को निर्धनता के साथ और संकट में ले जाता रहा। परिस्थितियों से लड़ते हुए खरगे आगे बढ़ते रहे और कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से शुरुआत के साथ सक्रिय हो गए।थोड़े दिनों में ब्लॉक अध्यक्ष बना दिया गया। उसके बात विधायक और कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष उसके पश्चात कर्नाटक विधानसभा में नेता विरोधी दल बने और उसके पश्चात लोकसभा में सांसद और 2014 में नेता प्रतिपक्ष,उसके पश्चात राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बने। यह उनका राजनैतिक अनुभव है , हाँ एक बात और गौर करने के काबिल है कि श्रीमती इंदिरा गांधी जब चिकमंगलूर से 1971 में चुनाव लड़ीं तो उनके चुनाव प्रभारी श्री मल्लिकार्जुन खरगे ही थे। ऐसे अनुभवी नेता का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर सुशोभित होना कांग्रेस के लिए गर्व का विषय होगा।कर्नाटक के गृहमंत्री के साथ नेता प्रतिपक्ष भी रहे। जब से चुनाव लड़ना शुरू किए हैं,सिर्फ 2019 लोकसभा का चुनाव हारे हैं।कन्नड़ भाषी होने के बर्फ भी सदन में हिन्दी में ही बोलते हैं।


अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी लेने के बाद कांग्रेस सोशल इंजीनियरिंग व सोशल जस्टिस की ओर आगे बढ़ी है।कांग्रेस में पिछड़ी दलित जातियों को बमुश्किल से ही नेतृत्व की जिम्मेदारी मिली।2013 में कुरुबा(अहीर/गड़ेरिया) पिछड़ी जाति के सिद्धारमैया को कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाया गया।इसके बाद भूपेश बघेल(कुर्मी) को छत्तीसगढ़ व अशोक गहलोत(माली) को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया गया।पंजाब विधानसभा चुनाव से पूर्व दलित चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया,लेकिन दलित वोट कांग्रेस की ओर न जाकर आम आदमी पार्टी की ओर बहुमत में मुड़ गया।उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस ने दलित बिरादरी के पूर्व सांसद व मायावती के काफी करीबी रहे बृजलाल खाबड़ी को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दिया है।खड़गे व खाबड़ी कितना दलित वोटबैंक कांग्रेस से जोड़ पाते हैं,यह भविष्य के गर्भ में हैं।उत्तर भारत मे अभी जाटव दलित बसपा से खिसकने की स्थिति में नहीं दिख रहा।


उत्तर प्रदेश में जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर ही नसीमुद्दीन सिद्दीकी, नकुल दुबे, अजय राय,वीरेन्द्र चौधरी(कुर्मी),योगेश दीक्षित,अनिल यादव को प्रांतीय/क्षेत्रीय अध्यक्ष बनाया गया है।कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग से एक तिहाई आबादी वाला अतिपिछड़ा वर्ग वंचित ही रह गया।भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता व कांग्रेस पार्टी के नेता चौ.लौटनराम निषाद ने बताया कि उत्तर प्रदेश में 33-34 फीसद अतिपिछड़ों की आबादी है।जिसमें निषाद, कश्यप,लोधी,कुशवाहा/मौर्य, राजभर,चौहान,पाल/बघेल,साहू,प्रजापति,विश्वकर्मा प्रमुख हैं।इन्हीं अतिपिछड़ी जातियों की सत्ता परिवर्तन में अहम भूमिका रहती है।अतिपिछड़ी जातियों का एआईसीसी में भी प्रतिनिधित्व लगभग शून्य है।पूरे देश में निषाद मछुआरा एक ऐसा समुदाय है,जो लगभग हर राज्य में निर्णायक है।वर्तमान में पिछड़ी,अतिपिछड़ी जातियाँ भाजपा व सपा के ही साथ हैं।कांग्रेस के साथ अतिपिछड़ों को जोड़ने के लिए कांग्रेस को बड़ी संजीदगी से विश्वास में लेना होगा।लोकसभा चुनाव-2009 में निषाद जातियाँ अनुसूचित जाति आरक्षण के मुद्दे पर मजबूती से कांग्रेस के साथ जुड़ी थीं, लेकिन अब तीतर बीतर हैं।