राजनीतिक चौसर पर जातियों की गोट बिछाने में जुटे राजनीतिक दल

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मिशन-2022 में निर्णायक भूमिका में रहेंगी अतिपिछड़ी जातियाँ।

“राजनीतिक चौसर पर जातियों की गोट बिछाने में जुटे राजनीतिक दल”।

 उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरण में अतिपिछडी ,अत्यंत पिछड़ी व निषाद/मछुआरा जातियों की मिशन -2022 में खास भूमिका रहेगी।सपा, बसपा,भाजपा में जो दल 60% हिस्से को अपने पाले में करने में सफल होगा,वह दल नं-1 पर रहेगा।कई दल अतिपिछड़ों को अपने पाले में करने के प्रयास में जुटे हैं।भाजपा बिखराव की राजनीति में माहिर है।उसकी रणनीति रहती है कि या तो येन-केन-प्रकारेण अतिपिछड़ों, अतिदलितों को अपने पाले में किया जाय या इन्हें एकजुट न होने दिया जाय।विकासशील इंसान पार्टी के संस्थापक सह बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री मुकेश सहनी की निगाह निषाद वोटबैंक पर लगी है,इसके लिए वे सामाजिक न्याय चिंतक व सोशल इंजीनियरिंग के माहिर चौ. लौटनराम निषाद को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी देकर यूपी मिशन पर लगाये हुए हैं।मुकेश सहनी की अभी तक जो रैलियां(ग़ाज़ीपुर,मिर्ज़ापुर,वाराणसी,आगरा,सुल्तानपुर, अम्बेडकर नगर/आज़मगढ़, बलिया, प्रयागराज,जौनपुर,अयोध्या में)हुई हैं,वे सभी निषाद बहुल क्षेत्रों में ही हुई हैं और गोरखपुर,सिद्धार्थनगर/बस्ती, फतेहपुर,औरैया,बरेली/बदायूँ, मुजफ्फरनगर/सहारनपुर,उन्नाव में भी इसी वोटबैंक को ध्यान में रखकर आरक्षण अधिकार जनचेतना रैलियाँ प्रस्तावित हैं।बिहार में वीआईपी राजग गठबंधन की साझीदार है,पर उत्तर प्रदेश में सहनी अकेले 169 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा कर रहे हैं।पिछले 3 चुनावों को देखा जाय तो निषाद वोटर बहुमत में भाजपा के साथ थे।भाजपा निषाद वोट में सेंधमारी व बिखराव के लिए निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद को एमएलसी बनाकर भाजपा में अंदरखाने विलय की स्थिति में पहुँचा दी है।संजय निषाद अपने समुदाय को अपने साथ जोड़ने के लिए अपने स्वागत के नाम पर कार्यक्रम करा रहे हैं,पर वांछित समर्थन नहीं मिल रहा है।वीआईपी संस्थापक मुकेश सहनी व प्रदेश अध्यक्ष चौ.लौटनराम निषाद के नारे-“आरक्षण का राजपत्र व शासनादेश नहीं,तो समर्थन व गठबंधन नहीं”,की काट नहीं मिल रही।

निषाद वोट की बढ़ी है राजनीतिक अहमियत

राजनीतिक व मीडिया गलियारे में निषाद वोट बैंक की चर्चा तेजी से बढ़ी है। वीआईपी ने 2 जुलाई को वीआईपी तरीके से लखनऊ में पार्टी की लांचिंग की।इसके बाद 25 जुलाई को फुलन देवी की प्रतिमा स्थापित कराने के मुद्दे से तो उत्तर प्रदेश में राजनीतिक चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया।सारे दल निषाद वोट को अपने पाले में करने के लिए हाथ पैर मार रहे हैं। 30 अक्टूबर को भाजपा ने इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में निषाद जातियों का प्रतिनिधि सम्मेलन बुलाया गया।प्रचारित किया गया था कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अनुसूचित जाति आरक्षण की घोषणा करेंगे।पर,मुख्यमंत्री नहीं आये।उनकी जगह उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य आये।इस सम्मेलन में वीआईपी के सैकड़ों कार्यकर्ता “आरक्षण नहीं तो वोट नहीं” कि दफ़्तियाँ लहराते हुए नारेबाजी करने लगे।वीआईपी की लालटोपी देकर केशव प्रसाद मौर्य ने इन्हें सपाई व यादव कहते हुए बाहर निकालने का आदेश दिए।जिससे काफी गहमागहमी की स्थिति पैदा हो गयी। विगत 1 नवम्बर को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी योगी के गृह क्षेत्र गोरखपुर में सफल सम्मेलन कीं जिसमे बड़ी संख्या में निषाद जुटे थे।निषाद वोटबैंक को ध्यान में रखते हुए निषाद वोटरों को लुभाने के लिए कहीँ कि-नाव निषादों की माँ है जिनसे इनकी रोजी रोटी चलती है।कांग्रेस की सरकार बनने पर निषादों का अधिकार वापस किया जाएगा।गोरखपुर में नाथ पंथ के संस्थापक मत्स्येंद्रनाथ जी के नाम से विश्वविद्यालय खोला जाएगा।नाथपन्थ के संस्थापक मत्स्येंद्रनाथ जी निषाद मछुआरा जाति के थे।वीआईपी की चहलकदमी से निषाद वोटबैंक की अहमियत काफी बढ़ गयी है।हर दल निषाद वोटरों को अपने पाले में करने के लिए अपने हथकंडे अपना रहे हैं।

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का पिछली बार भाजपा से गठबंधन था।मंत्रिमंडल से हटने के बाद उन्होंने दर्जन भर जातिगत आधारित छोटे छोटे दलों का गठबंधन भागीदारी संकल्प मोर्चा के नाम से बनाये।अब देखना होगा कि सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव इस मोर्चा के मित्र दलों को कैसे साधते हैं।एआईएमआईएम को भाजपा की बी टीम कहा जाता है,जो मोर्चा के साथ दिखे थे।अब देखना होगा कि ओबैसी का अगला निर्णय क्या होता है।राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव व सामाजिक न्याय चिंतक लौटन राम निषाद ने मिशन-2022 में अतिपिछड़ों की भूमिका के सम्बन्ध में कहा कि-अतिपिछड़े ही 2022 में निर्णायक रहेंगे,अतिपिछड़ों का जिसको साथ,यू पी की सत्ता उसके हाथ।
निषाद वोट को अपने साथ जोड़ने में जुटे राजनीतिक दल

निषाद पार्टी व विकासशील इंसान पार्टी जहाँ निषाद वोटबैंक आधारित दल हैं,जिनमे काफी रस्साकशी का खेल रहा है।निषाद पार्टी जहां वीआईपी को बाहरी व बिहारी पार्टी बता रही है,वही वीआईपी निषाद पार्टी पर आरक्षण के मुद्दे को छोड़कर एमएलसी के एक पद पर समझौता कर भाजपा की गोंद में बैठने का आरोप लगा रही है। 20 नवम्बर को निषादों की राजधानी कहे जाने वाले गोरखपुर में वीआईपी संस्थापक आरक्षण अधिकार जनचेतना रैली करने जा रहे हैं,वही निषाद पार्टी प्रमुख संजय निषाद गृहमंत्री अमित शाह की उपस्थिति में लखनऊ में सरकार बनाओ,अधिकार पाओ रैली की तैयारी कर रहे हैं।भाजपा,कांग्रेस,सपा अपने अपने स्तर से निषाद वोटबैंक को साधने में जुट गए हैं।
3-4 प्रतिशत मतांतर से बनता बिगड़ता है सत्ता का खेल

विधान सभा चुनाव-2007 में सपा को 25.75%,बसपा को 29.65%,भाजपा को 16.50%,2012 में सपा को 29.13%,बसपा को 25.91%,भाजपा को 15.17% तथा लोकसभा चुनाव-2014 में सपा को 22.6%,बसपा को 19.95% व भाजपा को 42.3% वोट मिला था।लोकसभा चुनाव-2019 में भाजपा को 39.3%,सपा को 21.8% व बसपा को 22.1% वोट शेयर मिला था।यदि सुभासपा के साथ वीआईपी का गठबंधन हो गया तो भाजपा की लड़ाई काफी कठिन हो जायेगी।फिरहाल,सपा-सुभासपा ने 27 अक्टूबर को मऊ में साझा मंच लगाकर गठबंधन की कवायद को आगे बढ़ा दिया है,लेकिन इसे स्थिर नहीं कहा जा सकता।कारण कि ओमप्रकाश राजभर कब किसके साथ पलटी मार जाएं।सपा ने सही ढंग से अतिपिछड़ों को नहीं जोड़ा तो बिहार की स्थिति हो जायेगी।

भाजपा पिछडों को जोड़ने के लिए पिछड़ा वर्ग मोर्चा की ओर से पिछड़ा वर्ग सम्मेलन करा रही है और यादव,निषाद, कुर्मी,चौहान, राजभर,लोधी,प्रजापति ,कुशवाहा, मौर्य,पाल,विश्वकर्मा सहित 38 जातियों का सम्मेलन कराने जा रही है।सपा सुप्रीमो खुद रथयात्रा लेकर चल रहे हैं।पूर्व में जनवादी पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय सिंह चौहान व महान दल के अध्यक्ष केशवदेव मौर्य के नेतृत्व में बलिय व पीलीभीत से रथयात्रा निकलवाये थे।राजपाल कश्यप के नेतृत्व में सामाजिक न्याय यात्रा व प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम के नेतृत्व में किसान पटेल यात्रा निकालने का मकसद चौहान, कुशवाहा, मौर्य,शाक्य,कुर्मी,निषाद, कश्यप व अतिपिछड़ों को सपा से जोड़ने की मुहिम का हिस्सा है।राष्ट्रीय महासचिव इंद्रजीत सरोज दलित विशेषकर पासी जाति को जोड़ने के लिए यात्रा पर निकले हैं। लगभग 5 वर्षों के बाद सपा की प्रदेश कमेटी घोषित हुई,जिसमे सिर्फ 6 यादवों को स्थान दिया गया।पिछडों में 9 निषादों व सवर्णों में 10 ब्राह्मणों को स्थान दिया गया।सपा की जो प्रदेश कमेटी घोषित की गई है,वह सपा पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष चौ.लौटनराम निषाद की माइक्रो सोशल इंजीनियरिंग की नकल है।
प्रदेश के सामाजिक समीकरण में मुस्लिम-17.3%,चमार/जाटव-11.46%,गैर जाटव दलित जातियां-9.11% जिसमें पासी-3.27%,धोबी-1.34%,कोरी-1.11%,वाल्मीकि-0.61%,खटीक-0.38%,धानुक-0.32%,कोल-0.23%,गोंड-0.22% व् अन्य दलित -1.60% है।
भाजपा गैर जाटव व गैर यादव जातियों को अपने पाले में करने की कवायद में जुटी है।यादवों में भी बिखराव के लिए यादव सम्मेलन कराने जा रही है।सामाजिक न्याय समिति-2001 व उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग सामाजिक न्याय समिति-2018 के अनुसार कुल ग्रामीण जनसंख्या में हिन्दू,मुस्लिम सवर्ण जातियां-20.94%,ओ बी सी-54.05%,एस सी-24.95%,एस टी-0.6% थे।ओबीसी में यादव-10.49%,ईबीसी-10.22% तथा एमबीसी-33.34% थे।सेन्सस-2011 के अनुसार मुस्लिम-17.3%,एस सी-20.53% व एस टी-0.57% हैं।उ प्र की कुल जनसंख्या में यादव-8.60%,निषाद/मछुआ जातियां-12.91%,मौर्य/कुशवाह/शाक्य-4.85%,कुर्मी-4.01%,लोधी/किसान-3.57%,पाल/बघेल-2.38%,प्रजापति-1.84%,बढ़ई/विश्वकर्मा-1.28%,राजभर-1.31%,चौहान-1.26%,लोहार-0.98%,कानू/भुर्जी-0.77%,गुजर-0.92%,जाट-1.97%,नाई/सबिता-0.35%,कलवार-0.45%,बरई-0.30%,बियार-0.25%,बंजारा,सोनार,अरख,गोसाई,बारी, जोगी अदि-0.90% हैं।
विधानसभा चुनाव-2007 में बसपा को सपा से 3.90% अधिक मत के साथ 217 व 2012 में सपा को बसपा से 3.22% अधिक मतों के साथ 224 सीटें मिलीं।2017 में भाजपा को 41.2% वोट शेयर पर अपना दल एस की 8 व सुभासपा की 4 सीटों के साथ 325 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।सपा को 21.8% व बसपा को 19.6% वोट शेयर मिला था। मिशन-2022 में जो दल 32-33% मत पायेगा,उसकी सरकार बनेगी।अतिपिछड़ों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होगी।सपा अपने यादव-मुस्लिम-पिछड़ा व बसपा दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण समीकरण को पुख्ता करने में जुटी हुई हैं तो भाजपा को सवर्ण,बनिया के साथ अतिपिछड़े व अतिदलित वोट की आस है।किसान वर्ग जो भाजपा से काफी नाखुश है,यदि सपा-रालोद का गठबंधन बना रहा तो पश्चिम में सपा-रालोद गठबंधन को लाभ मिलेगा।लेकिन 2 नवम्बर को जो घटनाक्रम घटित हुआ,उससे तो यही लग रहा है कि शायद ही अंत समय तक रालोद सपा के साथ रहे। जिस विमान से रालोद प्रमुख छोटे चौधरी जयंत चौधरी को दिल्ली जाना था, उसी से अखिलेश को भी जाना था।लेकिन जयंत उस विमान की उड़ान छोड़कर प्रियंका गांधी के साथ कांग्रेस के निजी विमान से दिल्ली गए।
अलग-2 क्षेत्र में अलग-2 जातिगत समीकरण

उत्तर प्रदेश को मुख्यरूप से 6 क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है।पूर्वांचल, मध्य, पश्चिम, बुन्देलखण्ड,ब्रिज व रुहेलखण्ड अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग जातिगत समीकरण है।निषाद, चमार/जाटव,मुस्लिम,मौर्य/कुशवाहा/शाक्य/सैनी,ब्राह्मण लगभग हर क्षेत्र में उपस्थिति दर्ज कराते हैं।विश्वकर्मा, नाई, प्रजापति,तेली,गड़ेरिया/पाल भले ही कम संख्या में पाए जाते हैं,पर कुछ न कुछ हर क्षेत्र में मिलते हैं।पूर्वांचल के अलावा हर क्षेत्र में लोधी/किसान प्रभावी है।पूर्वांचल,मध्य,बुन्देलखण्ड,रुहेलखण्ड खण्ड क्षेत्र में कुर्मी का प्रभाव क्षेत्र है।बुंदेलखंड, रुहेलखण्ड व पश्चिम के सहारनपुर, मेरठ,आगरा मण्डल में यादव कम प्रभावी हैं,लगभग दर्जन भर सीटों पर ही असर रखते हैं।पूर्वांचल की 91 सीटों पर निषाद/बिन्द,22 पर राजभर व 16 सीटों पर चौहान निर्णायक हैं।पूर्वांचल की ढाई दर्जन सीटों पर कुर्मी व डेढ़ दर्जन सीटों पर कुशवाहा/मौर्य मजबूत असर रखते हैं।उत्तर प्रदेश की लगभग 90 सीटों पर मुस्लिम वोटरों का मजबूत असर है,वही पश्चिम की 30-31 सीटों पर जाट व 12-13 सीटों पर गूजर जाति का विशेष प्रभाव है।बुंदेलखंड की 19 सीटों में 4 पर यादव प्रभाव रखते हैं।इस क्षेत्र में लोधी,पाल,प्रजापति,कुशवाहा व निषाद आधा आधा दर्जन से अधिक सीटों को प्रभावित करते हैं।