शिल्प एवं कला से होगा आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश का स्वप्न साकार

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अनिल वशिष्ठ

आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश के स्वप्न को साकार बनाने में स्थानीय शिल्पकला एक मजबूत कड़ी है। परम्परागत कला को रोजगार के रूप में विकसित करके ही आत्म-निर्भरता के लक्ष्य को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। इस मंत्र को प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने आत्मसात कर लिया है। आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश के रोडमेप के लिए तीन दिन तक विषय विशेषज्ञों, आर्थिक नीति सलाहकारों के साथ अगस्त-2020 से विस्तृत विचार-मंथन के उपरांत उसमें स्थानीय संसाधनो का बैहतर इस्तेमाल कर स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहित करना, “एक जिला-एक उत्पाद”, “लोकल फॉर वोकल” जैसे आधारभूत विषय उभर कर आऐ है, इन पर कार्य करते हुए 2023 तक आत्म-निर्भरता में लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकेगा।

इस लक्ष्य की पूर्ति में “ग्रामोद्योग” की महती भूमिका होगी। इस पर तेजी से कार्य किया जा रहा है।

देश में शिल्पकला की अक्षुण परम्परा

भारत वर्ष में शिल्पकला की अक्षुण परम्परा रही है, ईसा से 2500 वर्ष पूर्व हड़प्पा एवं सिंधु घाटी की सभ्यता से लेकर आधुनिक भारत और अब आत्म-निर्भर भारत से आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश तक शिल्पकला की यह परम्परा निरंतर जारी है। समृद्ध भारत में शिल्पकारों की कला की खनक को पूरी दुनिया सदैव से महसूस करती आ रही है।

कोरोना काल ने स्थानीय बाजार, स्थानीय उत्पाद के महत्व को सिद्ध कर दिया है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के आत्म-निर्भर भारत से लेकर आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश के स्वप्न को साकार बनाने में ग्रामीण भारत अहम् भूमिका अदा कर रहा है। ग्रामीण और शहरी अंचल में रहने वाले स्थानीय शिल्पी परम्परागत शिल्प तैयार कर अपनी अलग पहचान बनाने में सफल हो रहे हैं। यही शिल्प उनकी रोजी-रोटी का जरिया बना है। इनके उत्पादों को बाजार मुहैया कराने के लिये एक प्लेटफार्म प्रदान करने का काम राज्य सरकार द्वारा किया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मिल रही है पहचान

चंदेरी और महेश्वर के शिल्पियों ने अपने सधे हुए हाथों से करघों में ऐसा ताना-बना बुना कि, पूरी दुनिया उनकी कला की दीवानी हो गई है। सूती और रेशमी धागे से तैयार साड़ियाँ, सलवार-सूट, बरबस ही अपना ध्यान खींच लेती हैं। इसी तरह धार जिले में बाघ की ब्लॉक प्रिंट ने भी अपनी अलग पहचान बनाई है। धार जिले के धरा प्रिंट सेंटर में माण्डू क्षेत्र की आदिवासी युवतियों द्वारा ब्लॉक प्रिंट चंदेरी और महेश्वरी साड़ियाँ तैयार की जा रही हैं। इनकी डिमांड ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर जैसे विकसित शहरों में बढ़ रही है।

ई-कामर्स के माध्यम से लोकल फार ग्लोबल बनाने की पहल

मध्यप्रदेश में मई-1990 से ग्रामोद्योग विभाग स्थापना के साथ ही ग्रामोद्योग के सुदृढ़ीकरण के लिए लगातार अग्रसर है। हाथकरघा संचालनालय, रेशम संचालनालय के साथ-साथ संत रविदास म.प्र. हस्तशिल्प एवं हाथकरघा विकास निगम, मध्यप्रदेश माटी कला बोर्ड के माध्यम से स्थानीय शिल्पियों का कौशल उन्नयन कर उनके उत्पादों को बाजार मुहैया कराये जा रहे है।

लोकल फॉर वोकल के बाद अब ”लोकल फॉर ग्लोबल” बनाने के तर्ज पर प्रदेश के शिल्प और शिल्पकारों को नई पहचान दिलाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार का खादी-ग्रामाद्योग विभाग सक्रिय है।

ग्रामोद्योग उत्पादों को ई-कामर्स प्लेटफार्म से जोड़ने के जो प्रयास किए जा रहे है, उससे हमारे कारीगरों के हौंसलो और कला को नई उड़ान मिल सकी है।

प्रदेश और देश में बेचे जाने वाले उत्पाद अब विदेशों में आसानी से पहुँच रहे हैं। प्रदेश के हाथकरघा एवं हस्तशिल्प उत्पादों के ब्रॉण्ड ”मृगनयनी” खादी एवं ग्रामोद्योग के ब्रॉण्ड ”कबीरा” एवं ”विंध्यवैली” को प्रमुख ई-कॉमर्स प्लेटफार्म ”अमेजॉन” एवं ”फ्लिपकार्ट” तथा रेशम वस्त्रों के ब्रॉण्ड ”प्राकृत” को ”फ्लिपकार्ट” से जोड़ा गया है। ”विंध्यवैली” ब्रॉण्ड के अन्तर्गत दैनिक उपयोग के साबुन, शैम्पू, हेयर ऑयल, च्यवनप्राश, आँवला, मुरब्बा, जैम, सॉस, सैनेटाइजर, दाल, बेसन, आटा, दलिया जैसे प्रोडक्ट को राष्ट्रीय और अर्न्तराष्ट्रीय बाजार मुहैया हो रहा है।

खादी ग्रामोद्योग बोर्ड तथा म.प्र. हस्तशिल्प तथा हाथकरघा विकास निगम मृगनयनी प्रदेश और प्रदेश के बाहर एम्पोरियम और शो-रू के माध्यम से उत्पादों को बाजार मुहैया करा रहा है।