जॉब ऑफर लेटर को पोस्ट करना पत्नी के रोजगार का अपर्याप्त सबूत-बॉम्बे हाईकोर्ट

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हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24-सोशल मीडिया पर जॉब ऑफर लेटर को पोस्ट करना पत्नी के रोजगार का अपर्याप्त सबूत- बॉम्बे हाईकोर्ट

अजय सिंह

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक वैवाहिक मामले में एक महिला को अंतरिम गुजारा भत्ता देने का आदेश देते हुए कहा कि नौकरी की पेशकश के बारे में केवल सोशल मीडिया पोस्ट करने का मतलब यह नहीं है कि वह वास्तव में कार्यरत थी।’एक रिट याचिका पर विचार करते हुए औरंगाबाद पीठ के जस्टिस संदीप वी. मार्ने ने याचिकाकर्ता-पत्नी को भरण-पोषण देने से इनकार करने वाले फैमिली कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी-पति ने ऐसा कोई वास्तविक प्रमाण नहीं दिया कि उसकी पत्नी कार्यरत है।

हाईकोर्ट ने कहा, ”सोशल मीडिया पोस्ट के अलावा, प्रतिवादी ने यह साबित करने के लिए कोई अन्य ठोस सामग्री रिकॉर्ड पर नहीं रखी कि याचिकाकर्ता ने वास्तव में कोई रोजगार हासिल किया है या वह काम कर रही है और कमा रही है …. इसलिए यह मान लेना सुरक्षित होगा कि याचिकाकर्ता किसी भी रोजगार में संलग्न नहीं है और उसके पास खुद के लिए आय का कोई स्रोत नहीं है।”

अदालत ने आगे दोहराया कि अगर पत्नी के पास नौकरी नहीं है, तो केवल उच्च शैक्षणिक योग्यता रखना,उसको अंतरिम भरण-पोषण देने से पूरी तरह इनकार करने का कारण नहीं हो सकता है।

जलगांव फैमिली कोर्ट के समक्ष पक्षकारों के बीच हुई शादी को रद्द करने की कार्यवाही लंबित है। कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण की मांग करने वाले याचिकाकर्ता के आवेदन को निम्नलिखित आधारों पर खारिज कर दिया – 1) उसके पास उच्च योग्यताएं हैं और, 2) उसने अपने सोशल मीडिया स्टेटस पर एक पोस्ट अपलोड किया था कि उसे लंदन की एक कंपनी में नौकरी मिल गई है । इसलिए उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

सोशल मीडिया पोस्ट याचिकाकर्ता के वकील एस वी देशमुख ने प्रस्तुत किया कि पति ने यह दिखाने के लिए कोई सामग्री पेश नहीं की है कि उसकी पत्नी को वास्तव में कोई नौकरी मिली है या वह कहीं भी काम कर रही है। उसे नौकरी की पेशकश करने वाले कई ईमेल आए थे और उसने इसे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया। हालांकि, वह ऑफर फर्जी निकला।

प्रतिवादी के लिए वकील ए.ए. निंबालकर ने याचिकाकर्ता के फेसबुक और व्हाट्सएप एकाउंट के प्रिंट आउट का हवाला देते हुए कहा कि उसे न केवल यूके स्थित एक कंपनी में नौकरी की पेशकश की गई थी और उसका वेतन 2000 पाउंड था, बल्कि उसे बधाई देने वाले संदेशों पर दी गई प्रतिक्रियाएं से पता चलता है कि उसने वास्तव में प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था।

फैमिली कोर्ट ने निश्चित रूप से यह निष्कर्ष नहीं निकाला था कि पत्नी को वास्तव में नौकरी मिल गई है या वह उस नौकरी की पेशकश के परिणामस्वरूप काम कर रही है जिसे उसने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था।

यह माना गया था कि उसकी उच्च योग्यता के कारण उसे नौकरी मिलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि यह निष्कर्ष गलत था क्योंकि फैमिली कोर्ट ने खुद माना है कि केवल सोशल मीडिया पोस्ट अपलोड करना याचिकाकर्ता के रोजगार के बारे में मामला बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट को यह नहीं मान लेना चाहिए था कि उसे नौकरी सिर्फ इसलिए मिली क्योंकि उसके पास उच्च योग्यता है।

कोर्ट ने कहा कि पति बैंक स्टेटमेंट, इनकम टैक्स रिटर्न आदि जैसी ठोस सामग्री पेश कर सकता था,जिनसे साबित होता है कि उसकी पत्नी को वास्तव में नौकरी मिली है और वह कमा रही है। हालांकि, उस तरह का कुछ भी रिकॉर्ड पर पेश नहीं किया गया है। निंबालकर ने तर्क दिया कि या तो सोशल मीडिया पोस्ट की जानकारी को सच मान लिया जाना चाहिए या यदि यह गलत है तो पत्नी को उसके सोशल मीडिया पर फर्जी नियुक्ति पत्र पोस्ट करने के ‘अवांछनीय कृत्य’ के कारण कोई राहत नहीं दी जानी चाहिए।

अदालत ने सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता का आचरण सराहनीय नहीं है और उसे ऑफर की वास्तविकता की पुष्टि किए बिना पोस्ट नहीं बनाना चाहिए था। हालांकि, यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि इस ऑफर के परिणामस्वरूप वास्तव में नौकरी मिली थी क्योंकि इसका कोई ठोस सबूत नहीं है।

कोर्ट ने कहा,”इस स्तर पर यह निर्धारित करना मुश्किल है कि क्या उसे वास्तव में धोखा दिया गया था या वह केवल तथ्यात्मक रूप से गलत जानकारी पोस्ट करके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रशंसा और लोकप्रियता हासिल करने का प्रयास कर रही थी।। वास्तविक रोजगार के किसी भी ठोस सबूत के अभाव में, यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि ऑफर वास्तव में उसके लिए एक नौकरी में फलीभूत हुआ। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद कि याचिकाकर्ता-पत्नी वास्तव में कार्यरत नहीं है, मेरे विचार में, उसके लिए अदालतों के दरवाजे बंद नहीं किए जा सकते हैं, भले ही उसका आचरण पूरी तरह से दोष से मुक्त न हो।”

उच्च शैक्षणिक योग्यता

देशमुख ने प्रस्तुत किया कि भरण-पोषण से केवल इसलिए इनकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि पत्नी के पास उच्च योग्यताएं हैं जबकि वह वास्तव में बेरोजगार है। निंबालकर ने ममता जायसवाल बनाम राजेश जायसवाल के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया और कहा कि अगर पत्नी में कमाने की क्षमता है लेकिन वह कमा नहीं रही है, तो उसे भरण-पोषण नहीं दिया जा सकता है क्योंकि उसे आसानी से नौकरी मिल सकती है।

इसके अलावा, उसकी मां राजनीतिक रूप से जुड़ी हुई है और यहां तक कि याचिकाकर्ता ने भी कुछ राजनीतिक कामों में शामिल होना स्वीकार किया है जो दर्शाता है कि उसके पास आय के पर्याप्त स्रोत हैं। अदालत ने ममता जायसवाल के तथ्यों को मौजूदा मामले से अलग बताया क्योंकि उस मामले में पत्नी भरण-पोषण बढ़ाने की मांग कर रही थी।

अदालत ने आगे कहा कि उस मामले में पत्नी केस दायर होने से पहले नौकरी करती थी। हालांकि, वर्तमान मामले में पति का यह तर्क नहीं है कि उसकी पत्नी पहले नौकरी करती थी और आय अर्जित कर रही थी। अदालत ने कहा, ”इस प्रकार ममता जायसवाल (सुप्रा) मामले ने यह कानून नहीं बनाया है कि केवल उच्च योग्यता रखने के कारण पत्नी किसी भी तरह का भरण-भोषण पाने की हकदार नहीं है।”

अदालत ने शैलजा बनाम खोबन्ना के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का उल्लेख किया, जिसमें कमाने की क्षमता और वास्तव में कमाई के बीच अंतर बताया गया है और यह माना गया है कि कमाई की क्षमता फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए भरण-पोषण की राशि को कम करने का कारण नहीं हो सकती है।

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि पति यह साबित करने में विफल रहा है कि पत्नी वास्तव में कार्यरत है। अदालत ने कहा कि कथित तौर पर उसकी मां की राजनीतिक पोजिशन है और याचिकाकर्ता की अपनी राजनीतिक व्यस्तता अप्रासंगिक है।

पति ने वेतन प्रमाण पत्र और बैंक स्टेटमेंट पेश की और अपनी मासिक आय 78,598 रुपये बताई। पत्नी ने अगस्त, 2018 के महीने की एक प्रविष्टि का हवाला देते हुए यह तर्क दिया कि उसके पति का वेतन 1,33,377 रुपये है। अदालत ने कहा कि वेतन प्रमाण पत्र और पति द्वारा दिए गए हलफनामे पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है, ”मेरे विचार से, बैंक स्टेटमेंट में एक बार की गई प्रविष्टि, प्रतिवादी पति द्वारा अर्जित सटीक वेतन का संकेत नहीं हो सकती है।” इसलिए, अदालत ने फैमिली कोर्ट की कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान याचिकाकर्ता को 7,500 रुपये का अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया है।

मामला संख्या-रिट याचिका संख्या-2668/2021