ठाकरे के ठाठ को लगी ठेस

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सवाल गठबंधन की सरकार गिरने का नहीं, बल्कि महाराष्ट्र खास कर मुंबई में राष्ट्रवादी विचारधारा के कमजोर होने का है।उद्धव ठाकरे को सत्ता का मोह छोड़कर शिवसेना की राष्ट्रवादी विचारधारा को मजबूत करना चाहिए।

एस0 पी0 मित्तल

महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से चलने वाली उद्धव ठाकरे की सरकार अब अंतिम सांसे ले रही है। इसीलिए उद्धव ठाकरे ने 22 जून की रात को मुख्यमंत्री आवास खाली कर दिया और अपने पिता बाला साहब ठाकरे द्वारा निर्मित आवास मातोश्री में आ गए हैं। उधर असम की राजधानी गुवाहाटी में शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे के पास 37 से भी ज्यादा विधायकों का जुगाड़ हो गया है। शिवसेना के सांसद भी शिंदे के समर्थन में खड़े हो गए हैं। सांसद और विधायक जिस तरह उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना से अलग हो रहे हैं, उससेे प्रतीत होता है कि कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से चलने वाली सरकार और व्यवस्था में इन जनप्रतिधियों का दम घुट रहा था। सवाल महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार के गिरने का नहीं है, बल्कि राष्ट्रवादी विचारधारा के कमजोर होने का है। सब जानते हैं कि बाला साहेब ठाकरे ने मुंबई में किन हालातों में शिवसेना का गठन किया था। उस समय राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग खास मराठी मानुष स्वयं को असुरक्षित समझ रहा था, तब बाला साहेब ने शिवसेना का गठन कर राष्ट्रवादी विचारधारा के लोगों को सुरक्षित किया। तब बाला साहेब चाहते तो स्वयं मुख्यमंत्री बन जाते, लेकिन राष्ट्रवादी विचारधारा को मजबूत बनाए रखने के लिए ठाकरे ने सरकार में कभी कोई पद नहीं लिया।

यह बात अलग है कि भाजपा और शिवसेना के गठबंधन वाली सरकार उन्हीं के इशारे पर चलती थीं। बाला साहेब ठाकरे के निधन तक ठाकरे परिवार सत्ता से दूर रहा। लेकिन ढाई वर्ष उद्धव ठाकरे ने अपने पिता वाला साहेब की भावनाओं के विपरीत स्वयं मुख्यमंत्री बने की जिद पकड़ ली। 288 सीटों में से 56 सीटें मिलने पर भी उद्धव चाहते थे कि वे ही मुख्यमंत्री बने। 106 विधायकों वाली भाजपा ने जब उद्धव की शर्त को नहीं माना तो कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन गए। यानी बाला साहेब ने जिंदगी भर जिन लोगों से संघर्ष किया, उन्हीं से उद्धव ने हाथ मिला लिया। पिछले ढाई वर्ष में महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी विचारों का क्या हश्र हुआ, यह पूरे देश ने देखा। जो दाऊद इब्राहिम मुंबई हमले का मास्टरमाइंड रहा, उसके समर्थक मजबूत हो गए। दाऊद और उसके परिजनों की संपत्तियां सत्ता में बैठे लोगों ने ही खरीद ली।

उद्धव ठाकरे की नाक के नीचे वे ताकते मजबूत हुई जो देश को कमजोर करना चाहती है। उद्धव ठाकरे माने या नहीं, लेकिन मुख्यमंत्री बनने की उनकी जिद ने महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी विचारधारा को कमजोर किया है। अब उद्धव को चाहिए कि मुख्यमंत्री का पद त्याग कर फिर से शिवसेना को मजबूत करें, ताकि राष्ट्रवादी विचारधारा को मजबूती मिले। उद्धव की जिद ने ठाकरे परिवार की स्थिति को भी कमजोर किया है। ठाकरे परिवार के सामने जो नेता धीमी आवास में भी बोलने की स्थिति में नहीं थे, उन्होंने सीधे चुनौती दे दी है। उद्धव ठाकरे को अपनी स्थिति का अंदाज़ा इससे लगा लेना चाहिए कि 55 में से 40 विधायक मुंबई छोड़ कर गुवाहाटी चले गए हैं। उद्धव ठाकरे को संजय राउत जैसे बड़बोले नेताओं से भी सावधान रहने की जरुरत हे। बदली हुई परिस्थितियों में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना असली हो गई है। उद्धव ठाकरे जितना जल्दी एनसीपी और कांग्रेस से पीछा छुड़ाने, उतना ही फायदा होगा।

उद्धव को अपने अहम को छोड़कर शिवसेना को मजबूत बनाए रखने की ओर ध्यान देना चाहिए। एकनाथ शिंदे ने जो भाजपा के सरकार सरकार बनाने का जो प्रस्ताव रखा है, उसे भी ठाकरे को स्वीकार करना चाहिए। ढाई वर्ष पहले महाराष्ट्र की जनता ने भाजपा और शिवसेना के गठबंधन को ही जनादेश दिया था। 288 में से भाजपा और शिवसेना को 160 से भी ज्यादा सीटें मिली थीं। लेकिन तब उद्धव ठाकरे ने भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस और एनसीपी का हाथ थाम लिया। उद्धव ठाकरे की जिद से ढाई वर्ष में महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी विचारधारा को काफी नुकसान हुआ है। यदि उद्धव ठाकरे अभी कांग्रेस और एनसीपी के चक्कर में फंसे रहे तो ठाकरे परिवार की स्थिति और कमजोर होगी।