राम की नैया पार लगाने वाले केवट निषाद की नैया मंझधार में….

संतोष कुमार नागर
वरिष्ठ पत्रकार

उत्तर प्रदेश की ग्रामीण जनसंख्या में निषाद/मछुआ समुदाय की 13 अतिपिछड़ी जातियों की संख्या 7.98% प्रतिशत से अधिक है जो चुनावी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या में इनकी 1931 की जनगणना के अनुसार 10 प्रतिशत से अधिक है।2002 के विधानसभा चुनाव में ये बहुमत के साथ सपा के साथ थीं और 10-10,2-20 प्रतिशत बसपा,भाजपा के साथ बिखरी हुई थीं।2007 में ये बसपा के साथ बहुमत में हो लीं तो 2012 में 90 प्रतिशत सपा से जुड़ गई। 2017 में इन जातियों सहित अधिकांश गैर यादव पिछड़ी जातियां भाजपा की खेवनहार बन गईं।राजनीतिक दलों ने अनुसूचित जाति के आरक्षण का लालीपॉप दिखाकर राजनीतिक लाभ लिया।पर,लगभग 2 दशक हो गए,इन अतिपिछड़ी व परम्परागत पुश्तैनी पेशेवर जातियों की आस पूरी नहीं हो पायी।

आरक्षण आंदोलन के सूत्रधार चौ.लौटनराम निषाद ने कहा कि सपा,बसपा,भाजपा,कांग्रेस सहित कई दलों ने चुनाव घोषणा पत्र में निषाद मछुआ समुदाय सहित अन्य जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कराने का वादा किया,सपा व बसपा सरकार ने केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भी भेजा,लेकिन यह सब ढाक के तीन पात ही साबित हुए। 5 वर्ष से अधिक समय हो गया,प्रयागराज उच्च न्यायालय खंडपीठ में मुख्य न्यायाधीश की पीठ में सुनवाई की तारीखें से हर महीना, दो महीने में लगती है,पर सरकार इस सम्बंध काउन्टर एफिडेविट दाखिल ही नहीं की।कोर्ट ने कई बार फटकार लगाई,पर उत्तर प्रदेश सरकार हीलाहवाली कर काउंटर एफिडेविट दाखिल ही नहीं किया,जिससे इस मामले की सही तस्वीर सामने नहीं आ पा रही है।जिस निषादराज ने वनगमन के समय राम को श्रृंगबेरपुर में शरण दिया, केवट से गंगा पार कराया,आज उसी निषादराज के वंशजों की नैया मंझधार में फंसी है,पर रामभक्त बनने वाली भाजपा सरकारें भी इन्हें न्याय देने से मुँह फेर रही हैं।


17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का मामला डेढ़ दशक पुराना है।राजनीतिक दलों ने अनुसूचित जाति के आरक्षण का लालीपॉप दिखाकर राजनीतिक लाभ अब तक लिया। 17 में से 13 अतिपिछड़ी जातियां निषाद समुदाय की हैं। पिछले संसद सत्र में संविधान (अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां) आरक्षण संशोधन विधेयक पेश होने वाला था। पर संसद में बिल ही पेश नहीं हुआ।राजनीतिक दलों के लिए अतिपिछड़ी जातियाँ दुधारू गाय सरीखी हैं।

उत्तर प्रदेश की ग्रामीण आबादी में लगभग 17 फीसद हैं 17 अति पिछड़ी जातियाँ…

17 अति पिछड़ी जातियों में 13 उपजातियां- मछुआ, मल्लाह, बिन्द, केवट, धीमर, धीवर, गोड़िया,कहार , कश्यप, रैकवार, मांझी, तुरहा, बाथम आदि निषाद समुदाय की हैं। जिनकी संख्या 12.91 प्रतिशत है। भर, राजभर 1.31 प्रतिशत व कुम्हार, प्रजापति 1.84 प्रतिशत हैं। उत्तर प्रदेश की ग्रामीण जनसंख्या में 17 अतिपिछड़ी जातियों की संख्या 17 प्रतिशत के करीब है, जो चुनावी दृष्टिकोण से खासी महत्वपूर्ण है। 2007 में ये बसपा के साथ थीं तो 2012 में सपा की तरफ मुड़ गयीं। 2017 में तो इन जातियों सहित अधिकांश गैर यादव पिछड़ी जातियां भाजपा की खेवनहार बन गईं। 2004 से 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का मुद्दा गर्म है। राजनीतिक दलों के लिए ये महज वोटबैंक बनकर रह गयी हैं। राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ.लौटनराम निषाद ने कहा कि सपा, बसपा की पूर्ववर्ती सरकारों ने केंद्र सरकार को पत्र व प्रस्ताव भेजकर अनुसूचित जाति में शामिल करने की सिफारिश की। इसके बाद भी आजतक इन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं मिला।


10 मार्च, 2004 को तत्कालीन सपा सरकार ने निषाद समुदाय की 13 उपजातियों को एससी में सम्मिलित करने की संस्तुति केंद्र सरकार को भेजी। आरजीआई ने सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय के हवाले से उत्तर प्रदेश शासन से इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का औचित्य व मानवशास्त्रीय अध्ययन रिपोर्ट मांगा। समाज कल्याण विभाग, उत्तर प्रदेश शासन ने उ.प्र. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान भागीदारी भवन गोमतीनगर, लखनऊ से वृहद सर्वेक्षण कराया।समाज कल्याण विभाग ने औचित्य सहित 403 पृष्ठ का नृजातीय अध्ययन रिपोर्ट 31 दिसंबर,2004 को केन्द्र सरकार को भेजा। पुनः आरजीआई ने 18 बिंदुओं का जवाब मांगा। उत्तर प्रदेश शासन ने 16 मई, 2005 को इन 18 बिंदुओं का जवाब भेजा। इसके बाद भी केंद्र सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया। केन्द्र सरकार द्वारा निर्णय न लेने के कारण तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की अधिसूचना कार्मिक अनुभाग-2 से 10 अक्टूबर, 2005 को जारी करा दिया। इस निर्णय को असंवैधानिक करार देते हुए डा. भीमराव आंबेडकर पुस्तकालय एवं जनकल्याण समिति गोरखपुर ने उच्च न्यायालय इलाहाबाद खंडपीठ में स्थगनादेश के लिए याचिका दायर कर दिया। उच्च न्यायालय ने 20 दिसम्बर, 2005 को अधिसूचना को स्थगित कर दिया। एससी/एसटी की सूची में किसी भी प्रकार के संशोधन का अधिकार भारतीय संसद के पास निहित है। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 341 व 342 में संशोधन आवश्यक है।


2007 में सत्ता परिवर्तन के बाद 13 मई,2007 को मायावती मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 30 मई,2007 को पहली ही कैबिनेट बैठक में 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए केन्द्र सरकार के पास विचाराधीन प्रस्ताव को वापस मंगाकर रद्द करने का निर्णय लिया। केन्द्र सरकार ने 6 जून, 2007 को प्रस्ताव उत्तर प्रदेश सरकार को वापस भेज दिया। प्रदेश सरकार ने इसे रद्द कर शून्य कर दिया। निषाद संगठन मायावती सरकार के इस निर्णय के विरुद्ध धरना प्रदर्शन करने लगे। निषाद जातियों की नाराजगी को देखते हुए मुख्यमंत्री मायावती ने 4 मार्च,2008 को प्रधानमंत्री के नाम अर्द्धशासकीय पत्र भेजकर अनुसूचित जाति में शामिल करने का अनुरोध किया।


3 जुलाई,2015 को योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में आयोजित निषाद मछुआरा सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि मंच से आश्वासन दिए थे कि अब निषादों के अधिकार,आरक्षण व सम्मान की लड़ाई भाजपा लड़ेगी। 5 सितम्बर,2012 को भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने दिल्ली के मावलंकर ऑडिटोरियम में मछुआरा दृष्टि पत्र जारी करते हुए वादा किये थे कि 2014 में भाजपा सरकार बनने पर आरक्षण की विसंगतियों को दूर कर सभी निषाद मछुआरा जातियों को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का आरक्षण दिलाया जाएगा।पर,फिशरमैन विज़न डाक्यूमेंट्स/मछुआरा दृष्टि पत्र का भी संकल्प 8 वर्ष बाद भी अधूरा है।राम की नैया के खेवनहार केवट व राम को वनवास काल में शरण देने वाले निषादराज के वंशजों की नैया मंझधार में फँसी है।राम के नाम पर राजनीति करने वाली भाजपा ने भी इनके साथ न्याय न कर वादाखिलाफी ही कर रही।इस सम्बंध में लौटनराम निषाद ने कहा कि आज तो देश व प्रदेश में भाजपा की डबल इंजन की सरकार है,तो अब अतिपिछडों की समस्या का समाधान करने में देरी क्यों?क्या लंदन,अमेरिका में भाजपा सरकार बनने के बाद निषादों की आस पूरी होगी….?


आरक्षण तो मिला नहीं,छीन गया पुश्तैनी पेशा-लौटनराम निषाद

निषाद मछुआ समुदाय की जातियों का परम्परागत पुश्तैनी पेशा नौकाफेरी,बालू मोरम खनन,निकासी,मत्स्याखेट,शिकारमाही, मत्स्यपालन, सिंघाड़ा उत्पादन व नदी कछार या कटरी में खरबूजा, तरबूज आदि की खेती रहा है।पर,वर्तमान में इसके पुश्तैनी पेशों पर भू-माफियाओं,घाट माफियाओं,मत्स्य व बालू माफियाओं के कब्जा हो गया है।जब हेमवती नंदन बहुगुणा जी प्रदेश के मुख्यमंत्री थे,तो उस समय पुश्तैनी पेशेवर निषाद जातियों को बालू,नदी घाट पट्टा का शासनादेश किया गया जो 1990 तक जारी रहा।जब कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो निषाद जातियों के सभी परम्परागत पेशों को सार्वजनिक कर नीलामी प्रथा के अंतर्गत ला दिए।1993 में सपा-बसपा गठबंधन की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने राष्ट्रीय निषाद संघ की मांग पर मत्स्यपालन पट्टा व बालू मोरम खनन व निकासी पट्टा का एकाधिकार निषाद जातियों व मत्स्यजीवी सहकारी समितियों को देने का शासनादेश जारी किए। जून 1995 में गठबंधन टूटने पर भाजपा की मदद से मायावती मुख्यमंत्री बनीं।उन्होंने शासनादेश में संशोधन कर अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों व अन्य पिछड़ी जातियों को भी देने का नियम बना दिया।2017 में भाजपा सरकार बनने पर तो योगी सरकार ने रही सही कसर पूरी कर निषाद मछुआरों के सभी परंपरागत पुश्तैनी पेशों को सार्वजनिक नीलामी के अंतर्गत लाकर निषादों को अधिकार विहीन कर दिए।