ओबीसी जनगणना कराने से कौन राष्ट्रीय क्षति..!

115
ओबीसी जनगणना कराने से कौन राष्ट्रीय क्षति..!
ओबीसी जनगणना कराने से कौन राष्ट्रीय क्षति..!

सेन्सस-2011 के आधार पर एससी, एसटी,धार्मिक अल्पसंख्यक व भाषाई जनसँख्या घोषित की गई,पर ओबीसी की नहीं। “ओबीसी की जनगणना कराने से ही कौन सी राष्ट्रीय क्षति हो जाएगी।

लौटनराम निषाद

देश में सबसे पहले 1881 में जातिगत आधार पर सम्पूर्ण जनगणना ब्रिटिश हुकूमत द्वारा कराई गई।अंतिम बार जाति आधारित जनगणना 1931 में कराई गई।सेन्सस-1941 में भी जातिगत जनगणना कराई गई,परन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण आँकड़े घोषित नहीं किये जा सके।भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने बताया कि सेन्सस-1931 के अनुसार ओबीसी की जातियों की संख्या 52.10 प्रतिशत थी।देश का संविधान लागू होने के बाद 1951 में भी जनगणना कराई गई लेकिन इसमें सिर्फ एससी, एसटी की ही जातिगत जनगणना कराई गई।

उन्होंने कहा कि भारत सरकार के गृह मंत्रालय से सम्बंधित रजिस्ट्रार जनरल एंड सेन्सस कमिश्नर द्वारा हर दशवें वर्ष में जजनगणना कराई जाती है।सेन्सस-2011 में यूपीए-2 की सरकार ने सामाजिक-आर्थिक- जातिगत जनगणना(सोसियो-इकोनॉमिक-कास्ट सेन्सस) कराया।लेकिन जब भाजपा सरकार द्वारा 30 जून,2015 को जनगणना के आँकड़े घोषित किये गए तो ओबीसी का डाटा जारी नहीं किया गया।सेन्सस-2011 के अनुसार एससी, एसटी,धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग(मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई, बौद्ध,जैन, पारसी,रेसलर) व अधार्मिक, दिव्यांग, ट्रांसजेंडर आदि के साथ भाषाई आधार पर जनगणना की घोषणा कर दी गयी।उन्होंने कहा कि आखिर सरकार ओबीसी के जनसांख्यिकी आँकड़े घोषित करने से परहेज क्यों कर रही है?ओबीसी की जनसंख्या घोषित करने से कौन सी राष्ट्रीय क्षति हो जाएगी?ओबीसी के पीएम के होते हुए भी ओबीसी की जनगणना कराने से आनाकानी की जा रही है।जो पिछड़ी जातियों के साथ घोर अन्याय है।जब ओबीसी आरक्षण से सम्बंधित कोई मामला न्यायालय में जाता है तो प्रश्न खड़ा किया जाता है कि ओबीसी की जनसंख्या का प्रामाणिक आँकड़ा उपलब्ध नहीं है।


निषाद ने बताया कि जनगणना- 2011 के मुताबिक, देश की कुल आबादी में 24.4 प्रतिशत हिस्सेदारी दलितों की थी, जिसमे अनुसूचित जाति (एससी) की जनसंख्या 16 करोड़ 66 लाख 35 हजार 700 थी, जो कुल आबादी का 16.2 प्रतिशत है।जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी 8 करोड़ 43 लाख 26 हजार 240 थी और यह देश की कुल जनसंख्या का 8.2 फीसदी है।मण्डल कमीशन के अनुसार ओबीसी की संख्या का आंकलन 52.10 प्रतिशत किया गया था,वही 2015 नेशनल सैंपल सर्वे(एनएसएसओ) के अनुसार हिन्दू ओबीसी 43 प्रतिशत व आरजीआई के अनुसार अनुमानित 45 प्रतिशत बताई गई,लेकिन इसकी प्रमाणिकता नहीं है।सेन्सस-2021 में जातीय व वर्गीय जनगणना कराया जाना आवश्यक है।संविधान के अनुच्छेद-246 के अनुसार जनगणना कराए जाने का प्राविधान है।उन्होंने कहा कि जब सवर्ण जातियों का कोई आयोग नहीं बना व न ही जनगणना कराई गई तो किस आधार पर उन्हें संविधान व उच्चतम न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध 48 घण्टे में ईडब्ल्यूएस के नाम 10 प्रतिशत आरक्षण दे दिया गया?


निषाद ने सेन्सस-2011 के हवाले से बताया कि 79.80 प्रतिशत हिन्दू,14.23 प्रतिशत मुस्लिम,2.30 प्रतिशत ईसाई, 1.72 प्रतिशत सिक्ख,0.70 प्रतिशत बौद्ध,0.37 प्रतिशत जैन,0.06 प्रतिशत पारसी व 0.82 प्रतिशत रेसलर व अधार्मिक वर्ग की आबादी थी।भाषाई जनगणना के आधार पर हिन्दी भाषी-43.63%, मराठी-7.09%, तमिल-5.89%, बंगलाभाषी-8.30%,उर्दू-4.34%,तेलगू-6.93%,गुजराती-4.74%,पंजाबी भाषी- 2.83% सेन्सस-2011 के अनुसार थे।उन्होंने कहा कि धार्मिक व भाषा के आधार पर जनगणना होती है,एससी, एसटी की होती है,सरकार शेर,चीता,भालू,गाय,मगरमच्छ , घड़ियाल,डॉल्फिन आदि का आँकड़ा इकट्ठा कराती है,पर ओबीसी की जनगणना कराने से वादाखिलाफी करते हुए पीछे हट गयी है।उन्होंने एससी, एसटी के साथ ओबीसी की भी जनगणना कराने की मांग किया है।उन्होंने कहा कि कास्ट सेन्सस संवैधानिक मुद्दा है।भारतीय संविधान के अनुच्छेद-15(4),16(4) व 16(4-ए) की भावना के अनुसार जातिगत व वर्गीय आँकड़ा आवश्यक है।कहा कि जब एससी, एसटी को जनसंख्या के अनुपात में कार्यपालिका व विधायिका में समानुपातिक आरक्षण कोटा दिया जाता है तो ओबीसी के साथ नाइंसाफी व सौतेला व्यवहार संविधान सम्मत नहीं है।