क्या मिटेगा चाइनीज लाईटों से इंडिया का तिमिर

176
विनोद यादव
. विनोद यादव

क्या मिटेगा चाइनीज लाईटों से इंडिया का तिमिर,या गहरा जायेगा मंहगाई से न छंटने वाला अंधेरा। मिट्टी के दीप,गुल्लक, तराजू, गुड्डा- गुडिय़ा, हाथी घोडे़ को आकर्षक बनाने वाला कुम्हार आज परेशान।

रोशन रहता है क्या हर घर दीपावली में ? जबाब आता हैं नहीं,हर घर में रोशनी नहीं हो पाती।लोग कहते हैं चिराग तले अँधेरा। यह कटु सत्य, किसी कुम्हार के घर आपने देखो हो दीप जलता हुआ।कहाँ से देखोगे,दीप जलाने को तेल चाहिये और तेल डेंढ सैं रूपये लीटर हैं रूई तो खैर सस्ती हैं। लेकिन जब कमाई नहीं तो जलें कैसे यह सवाल सरकार से जरुर हैं खैर आजकल चलन में दिया ही नहीं है।मँहगी -मँहगी लाइटें हैं चाइना वाली।फिर कैसे हो दीवाली इंडिया की।फ्री का राशन और झोली भर भाषण से तो पेट भरेगा नहीं सवाल यह हैं कि गरीबों को दीपावली मनाने का हक है या नहीं।

दीपों के त्योहार अयोध्या भले प्रकाशमय रहें लेकिन पूरे प्रदेश में एक ऐसा तबका हैं जो उजालों में आने के लिए प्रतिदिन संघर्ष कर रहा हैं। मगर समाजिक राजनैतिक और आर्थिक तीनों रुप से अंधेरे में हैं अर्थव्यवस्था कमजोर होती है तो होने दो।चीन के सामान से दीवाली मनायेंगे।क्या मिट सकेगा चाइना की लाइटों से भारत का तिमिर?या गहरा जायेगा न छँटने वाला अँधेरा….? खैर दिये की कीमत तुम क्या जानों इससे हमारें घरों के चूल्हे जलते हैं मिट्टी से बने दीपों की दुकान सजाए बैठें सड़क के किनारे एक दुकानदार से महिला ने पूछा।”सुनो! कैसे दिए भैया दिया।””बीस के दस।” मुस्कुरा कर जवाब दिया उसने।”अरे!इतने महंगे?” उनकी आंखें फैल कर बड़ी हो गयी।”क्या करें बहनजी। सब कुछ तक महंगा हो गया है।”तो! इसका क्या मतलब? कौन सा मिट्टी खरीदनी पड़ती है तुम्हें। मुफ्त की मिट्टी मुफ्त का पानी। फिर भी इतना महंगा बेचते हो।

“मिट्टी भी खरीदनी पड़ती है बहनजी। शहर में ऐसी मिट्टी मिलती कहाँ है और रहा पानी, वो भी सरकार मुफ्त कहाँ देती है। फिर आजकल बिजली वाले चाक हो गए हैं तो बिजली बिल भी देना पड़ता है। फिर मेहनत भी तो लगती है। भट्टे में पकाना भी पड़ता है। कितना खर्च है देखिए। मुश्किल से कुछ बच पाता है।” दुकानदार ने सारा हिसाब समझाया।”ठीक है भैया। फिर भी कुछ तो डिस्काउंट बनता है ना। मैं पचास दिये ले लूंगी।” उन्होंने पचास ऐसे बोला मानो पांच सौ हों।”बहन जी! नब्बे रुपए दे दीजिएगा।” दुकानदार को ग्राहक छोड़ना उचित नहीं लगा।”बस! अस्सी के दो भैया। इससे एक रुपये ऊपर नहीं दूंगी मैं।” थोड़ा अकड़ कर उन्होंने कहा।”न बहन जी। नहीं हो पायेगा।” दुकानदार ने विनम्रता से हाथ में पकड़ा पैकेट पीछे कर लिया।महिला ताव से घूमी और कार में बैठकर ये जा वो जा।राजधानी दिल्ली से लेकर शहरों तक और शहरों से लेकर जिले तक बड़ा हो या छोटा मॉल सब चाईनीज झालरों की सजावट से जगमग हो रहें हैं और सरकार एक लाख दीपों को लेकर दीपोत्सव कर रहीं हैं खैर उसकी अपनी खुशियां हैं शायद ओ इसी के बहाने बेरोजगारी ,मंहगाई और हत्या ,बालात्कार जैसी घटनाओं पर प्रकाश की पुंज नहीं डालना चाहती हैं ।

खैर जिनके पांव फूटे बेवाई ओ क्या जाने पीर पराई वाली कहावत हैं ।दीवाली की सजावट से जगमग हो रहा शहर अपनी अलौकिकता को इस कदर दिखावटी शोहरत में ओढे पड़ा हैं जैसे फूस का छप्पर। जगह जगह बर्तन, क्रॉकरी, सजावट की चीजें, और भी जाने क्या क्या अटा पड़ा है। भीड़ इतनी की चलने को जगह नहीं। ट्रालियों में सामान भरे हुए लोग बिल काउंटर के आगे लाइन लगाए खड़े हुए हैं। कुछ लोग घण्टो से खड़े हैं।”अरे देखिए. ! दिये तो भूल गए लेना।” महिला ने पति से कहा।एक किनारे में टेबिल पर पैकेट्स में सजे हुए दिये रखे हुए हैं। बोर्ड लगा हुआ है- “नदी की मिट्टी से बने हुए दीपक 100 रुपए के दस, ऑफर प्राइज 50 रुपये।”महिला ने बिल काउंटर पर लगी हुई लाइन को देखा और जल्दी से पांच पैकेट ट्राली में रख लाइन में लगने के लिए बढ़ गयी।ट्राली में पड़े हुए दिये कुम्हार की किस्मत पर हंस रहे थे।

क्या मिटेगा चाइनीज लाईटों से इंडिया का तिमिर

राष्ट्रवाद की बात करने वाले शायद गरीबों को राष्ट्रवादी नहीं मानते न उनके हक की बात करतें हैं। पिछलें एक कई दशकों से देखा हैं सरकार कुम्हारों को भलें आधुनिक बना दिया बिजली से चलने वाले चाक देकर लेकिन उनकी डिमांड बहुत कम हैं आज हाट बाजारों में।कुम्हारों के चाक की रफ्तार तेज तो हुई हैं। दीपावली को बचे हैं कुछ शेष ही दिन हैं।ऐसे में जिले के कुम्हारों के चाक की रफ्तार तेज हो गई है। कुम्हार मिट्टी के आकर्षक दिए खिलौने बनाने में जुट गए है। जिले के कुम्हारों के हाथ चाक पर तेजी से चल रहे है और वह मिट्टी के दिए, खिलौने, गुल्लक, गुड्डा-गुड़िया, हाथी घोड़े को आकर्षक तरीके से बनाने मे जुट गए हैं ,मिट्टी के बर्तन बनाने वाले गोसाईगंज बाजार के कुम्हार बताते है कि यह हमारा पुश्तैनी धंधा है, इसी से जीविका चलती है, लेकिन अब बाजार में रंगीने लाइटे आ गई है, जिससे लोगों ने दीयों का उपयोग कम कर दिया है, फिर भी आस है कि इस दिपावली पर उनके दियों की अधिक बिक्री होगी. कुम्हारों ने बताया कि सालों से यह कार्य कर रहें। दीपावली से पहले बिक्री बहुत कम रहती है, लेकिन दीपावली पर होने वाली बिक्री का इंतजार रहता है. इस बार दिवाली पर दियों की मांग बढ़ने की उम्मीद है, जिसे देखते हुए दिये बनाये जा रहे है।

उन्होंने कहा कि रंगीन लाइटों से घर सजाया जा सकता है, लेकिन पूजा पाठ, धार्मिक अनुष्ठान के लिए दियों का ही उपयोग किया जाता है. इसे देखते हुए दिया बनाने के काम में तेजी आई है. सामान्य दिया से लेकर रंग बिरंगे आकर्षक डिजाइन के दीपक भी तैयार किये जा रहे है।ग्रामणी महादेव पाण्डये बताते हैं कि आज भी हम लोग मिट्टी के दिए ही खरीदते हैं घरों से लेकर खेतों तक उसी का उपयोग कर रहें हैं हम तो आज भी अपने लोगों के यहां से ही खरीदें हैं चाईनीज लाईटों को तो शहरीं लोगों ही ज्यादा प्रयोग कर रहें हैं। पंक्तियां आज भी चरितार्थ हैं बना कर दीप मिट्टी के जरा सी “आस” मैंने भी पाली है। मेरी मेहनत को खरीदो यारों मेरे घर भी “दीवाली” है।यह ध्यान सनातनियो को जरूर रखना चाहिए जो हर बात पर हिंदू होने का प्रमाणपत्र देते हैं और खुद चाईनीज लाईटें अपने घरों पर लगाएं बैठे हैं। ये हमारी आपकी जिम्मेदारी हैं कि नहीं सवाल यह हैं। गरीबों की होली दीवाली ही नहीं बल्कि इनके भोजन तक बेरोजगारी मंहगाई का कब्ज़ा है। इस पर हम चीन के सामनों को नाहक कोसें। लक्जरी गाडियों से चलने वाले लोग भी सिर्फ़ राजनीति के मंचों से गरीबों के हितैषी हैं शायद उनके अंदर भी पैसों का सामंत हावी हैं।

संविधान की शपथ लेने वाले लोगों आईए एक शपथ और हम सब मिलकर लेते हैं इस दीपावली के पर्व पर इन मेहनतकश गरीब कुम्हारों से भी कुछ न कुछ जरूर खरीदें वह भी बिना किसी तोलमोल के। ताकि ओ भी अपने घरों में सुख और संतोष के साथ दीपावली का दीप जला सकें, क्या ये हमारा आपका दायित्व नहीं है.? ये हम से कुछ विशेष अपेक्षा भी नहीं कर रहे हैं। बस अपनी मेहनत को मान्यता और उसका मूल्य हमसे चाह रहे हैं।लेकिन बड़ी बड़ी बाते करने वाले सफेद पोश एक छोटा सहयोग मांगने और करने पर ऐसी प्रतिक्रिया देते हैं जैसे आपको जानते पहचानते नहीं,शायद उनके नाम और कद को अपने ही कुछ सहयोग करके लिख कर ,संवार कर बढ़ाया हो लेकिन वहीं वाली बात हैं मन में राम बगल में छूरी वाली बात हैं।जबतक हम और आप संकल्प की भावना नहीं पैदा करेगें तब तक ऐसे आधे अधूरे सपनों को लेकर हम जिंदा रहेगें।