उत्तर प्रदेश में पिछड़ों के लिए घमासान

172

अत्यंत पिछड़ी जातियाँ विधानसभा चुनाव -2022 में निभाएँगी अहम भूमिका …!

    उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरण में उत्तर प्रदेश पिछड़ावर्ग सामाजिक न्याय समिति-2019 के अनुसार प्रदेश की ग्रामीण जनसँख्या में  सामान्य वर्ग (हिन्दू-मुस्लिम) की सँख्या-20.94%,अन्य पिछड़ावर्ग -54.05%,अनुसूचित जाति -24.95% व अनुसूचित जनजाति -0.06% हैं।अन्य पिछड़े वर्ग को 3 उपश्रेणियों-पिछड़ावर्ग, मध्यवर्ती पिछड़ावर्ग व अत्यंत पिछड़ावर्ग या पुश्तैनी पेशेवर जातियों में विभक्त किया जा सकता है। मध्यवर्ती पिछड़ी जातियों में कुर्मी,लोधी,जाट,गूजर, कलवार,सोनार,अर्कवंशी, गोसाईं शामिल हैं,जिनकी संख्या 10.22% है।पिछड़ा वर्ग या यादव की सँख्या 10.48% व अत्यंत पिछड़ावर्ग की सँख्या 33.34% है।

      मध्यवर्ती पिछड़ी जातियों में कुर्मी -4.01%,लोधी -3.27%,जाट -1.94%,गूजर -0.92%,कलवार -0.56%,सोना र-0.54%,अर्कवंशी -0.41%,गोसाईं -0.45% हैं।अत्यंत पिछड़ी  में निषाद/कश्यप -6.98%,कुशवाहा/मौर्य/सैनी -4.85%,पाल/गडरिया -2.39%,प्रजापति -1.84%,तेली/साहू -2.17%,बढ़ई/लोहार -2.25%,नाई -1.62%,नोनिया -1.26%,राजभर -1.31%,कान्दू/भुर्जी -0.77% हैं। अनुसूचित जातियों में चमार/जाटव -13.89%,पासी -3.97%,धोबी-1.57%,कोरी-1.34%,वाल्मीकि-0.74%,खटिक-0.45%,धानुक-0.39%,गोंड-0.31%,कोल -0.27% व अन्य दलित जातियाँ -1.94% हैं।जिन 17 अति पिछड़ी जातियों की बात की जाती है,उनकी कुल आबादी में सँख्या -10.14% है।विगत विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति के आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा के साथ चली गईं थीं,वे आगामी चुनाव में भाजपा से छिटक कर आ सकती हैं,कारण कि सपा सरकार द्वारा अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए भेजे गए प्रस्ताव को भाजपा सरकार द्वारा निरस्त कर शून्य की स्थिति में पहुंचा दिया गया।राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ.लौटन निषाद ने भाजपा पर वादाखिलाफी व दगाबाजी का आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा ने 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाने का वादा किया था।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में अभी करीब सवा साल बाकी है, लेकिन सियासी दल अभी से ही राजनीतिक समीकरण दुरुस्त करने में जुट गए हैं। सूबे में सभी दलों की नजर ओबीसी समुदाय के वोटबैंक पर है, जिन्हें साधने के लिए सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष तक अपनी-अपनी पार्टी की कमान यूपी में पिछड़े समुदाय के हाथों में दे रखी है। ऐसे में देखना होगा कि उत्तर प्रदेश का ओबीसी समुदाय किस पार्टी पर भरोसा जताता है। उत्तर प्रदेश की सियासत में पिछड़ा वर्ग की अहम भूमिका रही है। माना जाता है कि करीब 50 फीसदी ये वोट बैंक जिस भी पार्टी के खाते में गया, सत्ता उसी की हुई। 2017 के विधानसभा और 2014 व 2019 के लोकसभा में बीजेपी को पिछड़ा वर्ग का अच्छा समर्थन मिला, नतीजतन वह केंद्र और राज्य की सत्ता पर मजबूती से काबिज हुई। ऐसे ही 2012 में सपा ने भी ओबीसी समुदाय के दम पर ही सूबे की सत्ता पर काबिज हुई थी जबकि 2007 में मायावती ने दलित के साथ अति पिछड़ा दांव खेलकर ही चुनावी जंग फतह किया था।

भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने 5 अक्टूबर,2013 में फिशरमैन विजन डाक्यूमेंट्स जारी करते हुए संकल्प लिया था कि सरकार बनने पर निषाद मछुआ समुदाय की जातियों को आरक्षण की विसंगति को दूर कर सभी मछुआरा जातियों एससी/एसटी का दर्जा दिलाया जाएगा और नीली क्रांति का विकास किया जाएगा। इसके ठीक उलट केंद्र की भाजपा ने उत्तर प्रदेश की सपा सरकारों द्वारा 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए भेजे गए प्रस्ताव को निरस्त/रद्द कर दिया। 17 अतिपिछड़ी जातियों की संख्या -10.14% है,जो काफी निर्णायक है और राजनीतिक खेल बनाने-बिगाड़ने की स्थिति में है।अखिलेश यादव की सरकार ने 5 अप्रैल को महाराजा निषादराज व कश्यप ऋषि जयंती के लिए सार्वजनिक अवकाश घोषित किया था,जिसे योगी सरकार ने खत्म कर दिया।

सार्वजनिक नीलामी द्वारा मत्स्यपालन व ई-टेंडरिंग द्वारा बालू मोरम खनन जैसे निषाद मछुआरों के पुश्तैनी पेशे को छीन लिया। मत्स्यपालन को दिए गए कृषि के दर्जे व लोहिया आवास योजना की तरह मछुआ आवास की धनराशि अखिलेश यादव की सरकार द्वारा 3.05 लाख किया गया था,जिसे भाजपा सरकार ने खत्म कर दिया। 

    2017 के विधानसभा चुनाव के मतांतर को छोड़ दिया जाय तो 2002,2007 व 2012 के विधानसभा चुनाव में सत्ता परिवर्तन 3 से 4 प्रतिशत के अंतर से हुआ है। विधानसभा चुनाव -2012 में सपा को 29.1% व बसपा को 25.9% वोट मिला था। विधानसभा चुनाव -2017 में सपा का मत प्रतिशत 28 था तो बसपा को 22.2% मिला। लोकसभा चुनाव -2019 में सपा को 22.20% व बसपा को 19.60% वोट शेयर मिला था। आगामी चुनाव में अतिपिछड़ी जातियों का बड़ा भाग भाजपा से छिटक कर सपा के साथ आ सकता है और दलित वर्ग विशेषकर मायावती का जातिगत वोट भी बसपा से कटकर सपा के साथ शिफ्ट हो सकता है। मायावती की नीतियों से घुटन महसूस कर रहा दलित वर्ग तेजी से बसपा छोड़ सपा के साथ जुड़ रहा है।

       भाजपा को सत्ता के शिखर पर पहुंचाने में अतिपिछड़ी व अतिदलित जातियों की अहम भूमिका रही है।अतिपिछड़ी जातियाँ जब जिस दल के साथ गईं,उसी की प्रदेश में सरकार बनती रही है।मान्यवर कांशीराम के “जिसकी जितनी सँख्या भारी,उसकी उतनी हिस्सेदारी” नारे को भाजपा ने पूरी तरह धरातल पर उतारा,जिसका उसने खूब राजनीतिक लाभ उठाया। कांशीराम जी के नारे को सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव बार बार दुहराते हैं,पर कथनी-करनी में अंतर जैसा ही अभी तक दिख रहा है।

यादव-मुस्लिम छाप पार्टी से मुक्त नहीं हो पा रही, सपा- समाजवादी पार्टी के अभी तक जो 83 जिला व महानगर अध्यक्ष घोषित हुए हैं,उसमें 42 यादव व 18 मुस्लिम हैं। 3-3 कोयरी,जाट,2-2 पाल,गूजर व 1-1 केवट,कश्यप,धोबी,कुर्मी,ब्राह्मण,राजपुर,कायस्थ,विश्वकर्मा,वैश्य,राजभर जाति के हैं। बिना सैनिक के सेनापति नरेश उत्तम – नरेश उत्तम पटेल 2017 में सपा के प्रदेश अध्यक्ष बनाये गए,पर 4 वर्ष हो गए,अभी तक प्रदेश करगकरिणी का गठन नहीं हो पाया।उत्तम बिना सेना के सेनापति बने हुए हैं।उत्तम प्रभावहीन व बेअसर प्रदेश अध्यक्ष साबित हो रहे।अपनी जाति पर तो इनकी पकड़ नगण्य है। अध्यक्ष के बजाय इनकी भूमिका लेखाकार की बन गयी है।

अभी जिले महानगर का भी संगठन पूरा नहीं – 22 अगस्त,2019 को प्रदेश के सभी अनुषांगिक संगठन व जिला/महानगर  इकाइयों को भंग कर दिया गया।डेढ़ वर्ष का समय बीत जाने के बाद भी पुनर्गठन नहीं हो पाया।अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ,महिला सभा,सांस्कृतिक प्रकोष्ठ,अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष की अभी तक घोषणा नहीं हो पाई।अमेठी,आजमगढ़,पीलीभीत, लखीमपुरखीरी,कन्नौज,शामली,फर्रुखाबाद, रामपुर,अलीगढ़ महानगर,मथुरा महानगर,रामपुर नगर,फर्रुखाबाद नगर के अध्यक्षों का भी नाम नहीं घोषित हुआ है।

यूथ संगठन का काम भी अधूरा- दिसम्बर,जनवरी-2019-20 में ही चारों फ्रंटल यूथ संगठनों के प्रदेश अध्यक्षों की घोषणा कर तो दी गयी,पर अभी तक प्रदेश व जिला पदाधिकारियों, अध्यक्षों की घोषणा नहीं हो पाई। पहली बार दिखा पिछड़ावर्ग प्रकोष्ठ के असर- समाजवादी पार्टी में पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ पार्टी के जन्मकाल से ही बना है।जिसके प्रदेश अध्यक्ष रामनारायण साहू,राम आसरे विश्वकर्मा, नरेश उत्तम,दयाराम प्रजापति आदि बनाये गए।पर जब 16 मार्च,2020 को चौ0 लौटनराम निषाद को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तो लोगों को मालूम हुआ कि सपा में पिछड़ावर्ग प्रकोष्ठ भी है। निषाद ने अल्पकाल में ही बाकायदा प्रदेश की टीम गठित करने के बाद क्षेत्र, जिला,विधानसभा स्तर तक की इकाई गठित करवा डाली। माइक्रो सोशल इंजीनियरिंग आधार पर पिछड़ी,अतिपिछड़ी जातियों को अहमियत देने से सपा से दूर चली गयी जातियाँ भी सपा की ओर मुड़ने लगी थीं। लौटनराम निषाद की बैचारिकी व सामाजिक न्याय के प्रति बेबाक टिप्पणी से पिछड़ी-दलित जातियों में स्वीकार्यता बढ़ी।पर एकाएक इनकी बढ़ती स्वीकार्यता व पिछड़ा-दलित नेता की छबि से खुन्नस खाये नेताओं ने हाईकमान का कान भरकर प्रदेश अध्यक्ष पद से छुट्टी करवा दिया। पहली बार देखा गया कि नेतृत्व के निर्णय के विरूद्ध व लौटनराम निषाद के समर्थन में जोर शोर से आवाज़ उठने लगी।सपा नेतृत्व ने लौटनराम को पद से हटा कर भाजपा व आरएसएस के मन का काम कर दिया।

उपचुनाव परिणाम से भी सीख नहीं ले रहे अखिलेश-ब्राह्मण जाति की आबादी बमुश्किल 5 या 6 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। यह भाजपा में भी पांव जमाये हुए है और सपा,बसपा,कांग्रेस की भी नैया पार लगाने का दम्भ भर रहा है। ब्राह्मणों के झाँसे में पड़ सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव सत्ता की मृगमरीचिका देख रहे हैं,जो राजनीतिक भूल है। अगर नहीं सम्भले तो 22 में बाइसिकिल नहीं बल्कि 22 में ….. कील की स्थिति बन जाएगी। उपचुनाव के परिणाम से अखिलेश को सम्भल जाना चाहिए।जब प्रदेश में ब्राह्मण आक्रोश व भाजपा सरकार से नाराजगी दिख रही थी,तब ब्राह्मणों ने सपा का साथ नहीं दिया तो 2022 में कितना ब्राह्मण वोट मिलेगा,आकलन किया जा सकता है।

प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम खुद कुर्मी बहुल घाटमपुर के प्रभारी रहे,पर पूरी तरह नकारा साबित हुए।पार्टी चौथे स्थान पर ही नहीं गयी 16 हजार वोट तक सीमित रह गयी। बिकरू के करीब होने के बाद भी ब्राह्मण सपा के साथ नहीं आया। बांगरमऊ में भी सपा तीसरे स्थान पर खिसक गई। जहां नवरत्नों में शामिल सुनील साजन,अभिषेक मिश्रा,मनोज पांडेय,अनुराग भदौरिया,आनन्द भदौरिया, राजपाल कश्यप,पवन पांडेय आदि डेरा डाले हुए थे।

विधान परिषद के सपा उम्मीदवार रहे नीरस व निष्प्रभावी- सपा ने विधान परिषद चुनाव में अहमद हसन को 5वीं बार व राजेन्द्र चौधरी को दूसरी बार उम्मीदवार बनाया,जो बिल्कुल नीरस व निष्प्रभावी है। इन्हें उच्च सदन में भेजने से पार्टी जनाधार पर कोई असर नहीं पड़ेगा।ये …….. मोहरे हैं। मुस्लिम व जाट ही बनाना था तो नए चेहरों को भेजना चाहिए था।अतिपिछड़ों को भेजा गया होता तो प्रदेश में चर्चा होती और निश्चित रूप से कुछ न कुछ पार्टी का जनाधार बढ़ता।

प्रदेश अध्यक्ष व प्रभारी के लिए उठ रही आवाज़- समाजवादी पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन की मांग अलग अलग क्षेत्रों से उठ रही है। पार्टी के लिए अनुत्तम व बेअसर साबित …..को छुट्टी देने की आवाज़ उठ रही है। संगठन को नया नेतृत्व व नई धार दिए बिना सपा का मिशन -2022 कठिन होगा। लौटनराम निषाद को प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव को प्रदेश प्रभारी बनाने की मांग उठ रही है। लौटनराम निषाद को हटाकर राजपाल कश्यप को पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष बनाने पर संगठन ठंडे बस्ते में चला गया है। कोरोना काल भी लौटनराम निषाद जिले जिले जाकर संगठन को जिस तरह विस्तारित कर रहे थे,उससे लगने लगा था कि पिछड़ावर्ग प्रकोष्ठ मेनबॉडी से आगे निकल जायेगा।ऐसी चर्चा चट्टी चौराहे व पार्टी कार्यालय पर होने लगी थी। 

    सपा नेतृत्व को मिशन -2022 के लिए अतिपिछड़ी, दलित जातियों को जोड़ने के लिए विशेष अभियान चलाना शुरू करना होगा।टिकट वितरण में भी  जातिगत सामाजिक समीकरण को बेहतर तरीके से साधने पर जोर देना होगा। लोधी,सैनी,निषाद, बिन्द, कुशवाहा,शाक्य,कुर्मी,राजभर,चौहान,पाल,बघेल,धनगर,पासी,धोबी,गूजर, विश्वकर्मा, प्रजापति,किसान आदि को पार्टी से जोड़ने पर ध्यान दिए बगैर मिशन-2022 में 351प्लस दूर की कौड़ी साबित होगी।   

भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा जैसी मुख्य पार्टियों के प्रदेश अध्यक्ष पिछड़ी जाति से हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह कुर्मी जाति से आते हैं जबकि इसी जाति के नरेश उत्तम को सपा ने प्रदेश अध्यक्ष बना रखा है, वहीं, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू अति पिछड़ी कही जाने वाली कानू जाति आते हैं और ऐसे ही बसपा के प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर अति पिछड़े समुदाय के राजभर समाज से आते हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में जब बात पिछड़े वर्ग की आती है तो यादव को छोड़कर अन्य पिछड़ी जातियों की सियासत काफी अलग खड़ी नजर आती है। यादव वोटर लंबे समय से ठीक वैसे ही सपा के साथ जुड़े हुए हैं जैसे दलित बसपा का दामन थामे हैं, इसीलिए अखिलेश यादव ने अपने पंरापरागत 9 फीसदी यादव वोट बैंक के साथ पिछड़े समुदाय के आने वाले दूसरी सबसे बड़ी आबादी कुर्मी को साधने के लिए नरेश उत्तम को सूबे में पार्टी की कमान दे रखी है। हालांकि, 2019 लोकसभा चुनाव में भी नरेश उत्तम ही पार्टी संभाल रहे थे, लेकिन कुर्मी समुदाय को सपा के पाले में लाने में सफल नहीं रहे हैं। 

ओबीसी में एक और बड़ा वोट बैंक लोध जाति का है, जो बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है। उत्तर प्रदेश के 23 जिलों में लोध वोटरों का दबदबा है, जिनमें रामपुर, ज्योतिबा फुले नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, महामायानगर, आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, पीलीभीत, लखीमपुर, उन्नाव, शाहजहांपुर, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, कन्नौज, कानपुर, जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा ऐसे जिले हैं, जहां लोध वोट बैंक पांच से 10 फीसदी तक है. वहीं, मल्लाह समुदाय भी करीब 6 फीसदी है, जो कि गंगा नदी के किनारे स्तिथि जिलों में हैं। 

उत्तर प्रदेश में कुर्मी और मौर्या समाज करीब 13 फीसदी हैं।कुर्मी और मौर्य समुदाय को साधकर बीजेपी ने 2017 का चुनाव जीता था। जातिगत आधार पर देखें तो उत्तर प्रदेश के सोलह जिलों में कुर्मी और पटेल वोट बैंक छह से 12 फीसदी तक है, इनमें मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर और बस्ती जिले प्रमुख हैं। वहीं, ओबीसी की मौर्या जाति का तेरह जिलों का वोट बैंक सात से 10 फीसदी है। इन जिलों में फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, कन्नौज, कानपुर देहात, जालौन, झांसी, ललितपुर और हमीरपुर हैं।