एक बंदर घुड़की जो काम कर गई !

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जो लोग बंदर का स्वभाव जानते हैं वह बंदर घुड़की का मतलब अच्छी तरह समझते है। बंदर स्वभाव से अत्यंत डरपोक होता है पर प्रदर्शित ऐसे करता है कि आप पर हमला कर देगा और यदि आप डर गये तो वह आप पर झपट्टा मार देगा पर यदि आपने उसे डपट दिया तो दुम दबाकर भाग जायेगा।ऐसी ही एक बंदर घुड़की 1989 में कश्मीर में आतंकवादियों ने दी थी जब उन्होंने तत्कालीन गृहमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबैया सईद का अपहरण कर फिरौती के रूप में पॉच ख़तरनाक दुर्दांत आतकवादीयो को छुड़वा लिया था ।

जैसा कि सभी जानते हैं कि वीपी सरकार की सरकार में गृह मन्त्री मुफ़्ती साहब की बेटी का उनके गृहमंत्री बनने के एक सप्ताह के अंदर ही अस्पताल से लौटते वक़्त अपहरण कर लिया गया था और बेटी की रिहाई के एवज़ में पॉच ख़तरनाक आतंकवादीयो को छोड़ने की शर्त रखी थी । उस समय फ़ारूख अब्दुल्ला साहब जम्मू कश्मीर के मुख्य मन्त्री थे जो किसी भी क़ीमत पर आतंकवादियों को छोड़ने के पक्ष में नहीं थे क्योंकि उनका मानना था कि अगर सरकार झुक गई तो कश्मीर और देश को इसकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी ।

कश्मीर की एक बेटी का आतंकवादियों द्वारा अपहरण करने से पूरी घाटी में बेहद रोष फैल गया था और आतंकवादियों के समर्थक भी इस हरकत से बेहद आहत थे। फ़ारूख साहब और कुछ नागरिक संगठन बिना शर्त लड़की को छोड़ने का आतंकवादियों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे थे पर मुफ़्ती साहब का परिवार इससे संतुष्ट नहीं था। उस समय कश्मीर में आईबी के प्रमुख रहे दुलत साहब का भी मानना था कि रूबैया को बिना किसी सौदेबाज़ी के आतंकवादियों पर दबाव बनाकर छुड़वाया जा सकता था ।

मुफ़्ती परिवार अपने स्तर से अपने पारिवारिक मित्र रहे तत्कालीन इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज श्री मोतीलाल भट्ट के ज़रिये आतंकवादियों से सीधे संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे।कश्मीर के तत्कालीन मुख्य सचिव श्री मूसा रजा ने भी इस तथ्य की पुष्टि की थी कि उन्हें जस्टिस भट्ट से संपर्क करने के लिये कहा गया था।अपहरण की घटना के कुछ दिन बाद केन्द्र सरकार ने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री श्री आईके गुजराल व आरिफ़ मोहम्मद खान को श्रीनगर भेजा और फ़ारूख अब्दुल्ला साहब को धमकी दिलाई गई कि यदि वह नहीं माने तो उनकी सरकार बर्खास्त कर दी जायेगी । यद्यपि फ़ारूख साहब ने चेतावनी भी दी कि यदि आतंकवादियों की बात मान ली गई तो इसकी बहुत भारी क़ीमत देश को चुकानी पड़ेगी पर उनकी बात नहीं मानी गई और पॉच ख़तरनाक आतंकवादीयो को छोड़कर रूबैया सईद को रिहा कराया गया ।

फ़ारूख साहब ने कितना सही कहा था क्योंकि इस घटना के बाद कश्मीर घाटी एक बार तो पूरी तरह आतंकवादियों के रहमोकरम पर हो गई थी । वरिष्ठ नौकर शाह श्री वजाहत हबीबुल्ला साहब का भी मानना था कि केंद्र सरकार आतंकवादियों के समक्ष झुक गई थी और फ़ारूख साहब की सलाह को दरकिनार कर दिया गया था। इस घटना के बाद कश्मीर घाटी में आतंकवादियों ने जो तांडव किया था वह तो अब इतिहास बन चुका है और आज तक कश्मीर घाटी अशांत है।इस घटना पर पाकिस्तान के प्रसिद्ध अख़बार “द डॉन” ने अपने संपादकीय में लिखा था कि यह एक ” बंदर घुड़की थी जो काम कर गई ” ।

(लेख अशोक कुमार पांडेय जी की पुस्तक कश्मीर और कश्मीरी पंडित पर आधारित है।)