भारत के गौरव हैं स्वामी विवेकानंद

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आज पूरा देश स्वामी विवेकानंद की 156वीं जयंती मना रहा है। हर साल 12 जनवरी को उनकी जयंती मनाई जाती है। इस दिन को पूरे देश में ‘युवा दिवस ‘ के रूप में मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे जिनका रोम-रोम राष्ट्रभक्ति में डूबा हुआ था। वे जितना ईश्वर में विश्वास करते थे उतना ही वे दीनहीनों की सेवा करना सच्ची ईश्वर पूजा मानते थे। विवेकानन्द जी पर अपने गुरु का पूरा प्रभाव था. विवेकानन्द एक व्यापक दृष्टिकोण रखने वाले युवा सन्यासी थे. उन्होंने कभी निजी मुक्ति को जीवन का लक्ष्य नहीं बनाया । उनका एकमात्र लक्ष्य करोड़ों भारतीयों के जीवन का उत्थान था। स्वामी विवेकानंद आज भी करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं।

“उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये।” विवेकानंद की यह पंक्तियां आज भी युवाओं को ऊर्जावान करने में काफी उपयोगी है। उस समय जबकि भारत अंग्रेजी दासता में अपने को दीन-हीन पा रहा था, भारत माता ने एक ऐसे लाल को जन्म दिया जिसने भारत के लोगों का ही नहीं, पूरी मानवता का गौरव बढ़ाया । उन्होंने विश्व के लोगों को भारत के अध्यात्म का रसास्वादन कराया । इस महापुरुष पर संपूर्ण भारत को गर्व है ।उनकी शिक्षाएं और मूल्यवान विचार भारत की सबसे बड़ी दार्शनिक संपत्ति हैं।

विवेकानन्द जी का जन्म 12 जनवरी सन 1863 को कोलकाता (कलकत्ता) के एक कायस्थ परिवार में हुआ था। बचपन में उनका नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त उस समय कलकत्ता हाईकोर्ट के एक वकील थे। स्वामी विवेकानन्द ने अपने विचारों से सारी दुनिया में भी भारत का मान बढ़ाया था। सन 1893 में उन्होंने अमेरिका के शिकागो में आयोजित ‘विश्व धर्म सम्मेलन ‘ में दुनिया को हिंदुत्व और आध्यात्म का पाठ पढ़ाया था। यहाँ उन्होंने भारतीय संस्कृति और भारतीय ज्ञान से दुनिया को परिचित कराया था। उन्होंने आध्यात्मिकता से परिपूर्ण भारतीय वेदांत दर्शन को अमेरिका और यूरोप के क्षितिज पर फैलाया था। स्वामीजी उनका रहन-सहन इतना साधारण था कि उनके ज्ञान और उनके व्यक्तित्व के पीछे ये चीजें मायने नहीं रखती थी। मोह-माया से दूर रहनेवाले स्वामीजी का मानना था कि व्यक्ति के आचरण से ही उसकी सच्ची पहचान होती है। वो कहते थे कि किसी व्यक्ति की संस्कारशीलता वस्त्र या आभूषण आदि से नहीं, बल्कि कर्म की श्रेष्ठता से प्रदर्शित होती है।उनके जीवन से जुड़े कई ऐसे प्रसंग हैं जिनसे सुखी और सफल जीवन की प्रेरणा मिलती है। 4 जुलाई, 1902 वे अपने नश्वर शरीर को त्याग कर अमर हो गये।

आधुनिक वेदांत और राज योग के उनके दर्शन युवाओं के लिए बहुत प्रेरणा हैं। उन्होंने बेलूर मठ, रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो विवेकानंद की धार्मिक और आध्यात्मिक शिक्षाओं का प्रसार करता है और शैक्षिक और सामाजिक कार्यों में भी संलग्न है। स्वामी विवेकानंद की जयंती 1985 के बाद से हर साल 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाई जाती है। यह उत्सव युवा पीढ़ियों को प्रेरित करने के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों में विवेकानंद के धर्मपरायण आदर्शों को उभारने में मदद करता है।

भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने वाले विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी, सन्‌ 1863 को हुआ. उनका घर का नाम नरेंद्र दत्त था। पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखने वाले उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त अपने पुत्र को भी अंग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे।

 विदेशों में भारतीय संस्कृति की सुगंध बिखरने वाले स्वामी विवेकानन्द एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु, जिन्होंने धर्म को व्यवहारिक बनाया तथा भारतीय सभ्यता के निर्माण और संस्कृति के प्रसार के लिए हमेशा समर्पित रहे। ये सही अर्थ में युवाओं के प्रेरणा स्रोत और युवा भारत के स्वप्नदृष्टा थे।तुम अपनी अंतरात्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ कहने वाले स्वामी विवेकानंद आत्म गौरव की अनूठी मिसाल हैं। गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था, ‘यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए।’

लेकिन यह सिर्फ जानने भर की बात नहीं है वरन कई जानकार लोग मानते हैं कि इस देश की समस्याओं के लिहाज से भी विवेकानंद के विचार उनके जाने के एक सदी बाद भी प्रासंगिक बने हुए हैं- न सिर्फ भारत के नीति निर्धारकों के लिए बल्कि विकास की पश्चिमी अवधारणा का अंधानुकरण करते उसके समाज के लिए भी जोकि आज भी उनके विचारों की उपेक्षा ही करता है।गरीब और गरीबी को लेकर किस तरह का रवैया अपनाया जाना चाहिए, यह बताते हुए विवेकानंद कहते हैं, ‘हर व्यक्ति को भगवान की तरह देखो।

आप किसी की मदद नहीं कर सकते, बस उसकी सेवा कर सकते हैं। अगर आपके पास अधिकार हैं तो यह समझें कि भगवान के बच्चों की सेवा खुद उसकी ही सेवा है। गरीबों की सेवा का काम पूजा भाव से करो।’ वे आगे कहते हैं, ‘जब तक करोड़ों लोग भूखे और वंचित रहेंगे तब तक मैं हर उस आदमी को गद्दार मानूंगा जिसने गरीबों की कीमत पर शिक्षा तो हासिल की लेकिन, उनकी चिंता बिल्कुल नहीं की।’ विवेकानंद हिंदू धर्म के प्रति बहुत उत्साही थे और भारत और विदेशों दोनों में हिंदू धर्म के बारे में लोगों के बीच नई समझ बनाने में बहुत सफल रहे।

वह अपने गुरु, रामकृष्ण परमहंस से बहुत प्रभावित थे जिनसे वे भामा समाज की यात्रा के दौरान मिले थे। 1893 में ‘विश्व धर्म संसद’ के दौरान स्वामी विवेकानंद द्वारा दिए गए शिकागो संबोधन ने हिंदू धर्म को शुरू करने, ध्यान, योग को बढ़ावा देने और पश्चिम में आत्म-सुधार के अन्य भारतीय आध्यात्मिक तरीके को बढ़ावा देने में मदद की।चार वर्षों में विदेशों में धर्म-प्रचार के बाद विवेकानन्द भारत लौटे । भारत में उनकी ख्याति पहले ही पहुंच चुकी थी । उनका भव्य स्वागत किया गया ।

स्वामी जी ने लोगों से कहा – ” वास्तविक शिव की पूजा निर्धन और दरिद्र की पूजा में है, रोगी और दुर्बल की सेवा में है । ” भारतीय अध्यात्मवाद के प्रचार और प्रसार के लिए उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की । मिशन की सफलता के लिए उन्होंने लगातार श्रम किया, जिससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया । 4 जुलाई, 1902 ई. को रात्रि के नौ बजे, 39 वर्ष की अल्पायु में ‘ ॐ ‘ ध्वनि के उच्चारण के साथ उनके प्राण-पखेरू उड़ गए । परंतु उनका संदेश कि ‘ उठो जागो और तब तक चैन की साँस न लो जब तक भारत समृद्ध न हो जाय ‘ – हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा ।

विवेकानंद जी शिकागो में अपने भाषण में कहते है- “आपके इस जोरदार और स्नेह पूर्ण स्वागत से मेरा हृदय प्रफुल्लित हो गया है। मैं आपको दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म की तरफ से धन्यवाद देता हूं, मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं मैं आपको सभी हिंदुओं की तरफ से आभार व्यक्त करता हूं। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म में हूं जिसने दुनिया को सहनशीलता एवं जरूरत पड़ने पर मदद की है। हम विश्व के सभी धर्म को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं जिसने इस धरती के सभी देश और धर्म से परेशान और सताये गये लोगों को शरण दी है।

स्वामी विवेकानंद के कुछ विचार निम्नांकित हैं जो सभी को एक गरिमामय समाजोन्मुख जीवन देने की प्रेरणा देते हैं –

  • – उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाये।
  • -सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा।
  • -दिल और दिमाग के टकराव के बीच हमेशा दिल की सुनो।
  • -अगर तुम्हें खुद पर भरोसा नहीं है तो तुम सबसे बड़े नास्तिक हो।-सबसे बड़ा धर्म है अपने स्वभाव के प्रति सच्चे होना। स्वयं पर विश्वास करो।
  • -विश्व एक व्यायामशाला है जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
  • -बाहर की दुनिया बिलकुल वैसी है, जैसा कि हम अंदर से सोचते हैं। हमारे विचार ही चीजों को सुंदर और बदसूरत बनाते हैं।
  • -तुम गीता पढ़ने के मुकाबले फुटबॉल खेलने से स्वर्ग के ज्यादा करीब होगे।
  • -जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं है।
  • -एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।
  • -कभी भी यह मत सोचो कि तुम्हारे लिए, तुम्हारी आत्मा के लिए कुछ भी नामुमकिन है।
  • -तुम्हें अंदर से सीखना है सबकुछ। तुम्हें कोई नहीं पढ़ा सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। अगर यह सब कोई सिखा सकता है तो यह केवल आपकी आत्मा है।
  • -सच्चाई के लिए कुछ भी छोड़ देना चाहिए, पर किसी के लिए भी सच्चाई नहीं छोड़ना चाहिए।
  • -सबसे पहले यह अच्छे से जान-समझ लो कि हर बात के पीछे एक मतलब होता है। देश के ऐसे युगपुरुष को कोटि कोटि नमन।

भाइयों, मैं आपको एक पंक्तियां सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन में स्मरण किया है और जो आज लाखों लोगों के द्वारा दोहराया जाता है – जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में जाकर एक समुद्र में गिरती है उसी तरह मनुष्य भी अपना अलग-अलग मार्ग चुनता है वह देखने में कितना भी कठिन, टेढ़ा मेढ़ा क्यों ना हो अंत मे वह जाकर भगवान तक ही पहुंचता है।गीता में इस बात का प्रमाण बताया गया है जो भी मुझ तक आता है चाहे वह कैसा भी और किसी तरह हो, मैं उस तक पहुंचता हूं लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें आखिर में वह मुझ तक ही पहुंचते हैं।सांप्रदायिकताएं और कट्टरताएं लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है।

यह धरती कितनी ही बार खून से लथपथ हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं।अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नति कर रहा होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा। ” स्वामी विवेकानंद भारत के एक महान व्यक्तित्व थे जिन्होंने हमारे राष्ट्र को दुनिया के सामने दिखाया और वैश्विक दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया। उनका शिक्षण और दर्शन आज भी वर्तमान समय में प्रासंगिक  है और आधुनिक युग के युवाओं का मार्गदर्शन करता है।

विवेकानंद ने कहा था – “कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है. ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है. अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं।” और फिर आगे कहते है- “जिस क्षण मैंने यह जान लिया कि भगवान हर एक मानव शरीर रुपी मंदिर में विराजमान हैं, जिस क्षण मैं हर व्यक्ति के सामने श्रद्धा से खड़ा हो गया और उसके भीतर भगवान को देखने लगा  उसी क्षण मैं बन्धनों से मुक्त हूँ, हर वो चीज जो बांधती है नष्ट हो गयी, और मैं स्वतंत्र हूँ।” विवेकानंद जी के उत्साही, ओजस्वी एवं अनंत ऊर्जा से भरपूर विचार और दर्शन जन-जन को प्रेरणा देते रहेंगे। स्वामी जी धीरज, साहस, पवित्रता और अनवरत कर्म से सफलता का राजमार्ग बता गए हैं।