संसद को गिरा कर खेत बना दो-मुन्नवर राणा

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करनाल में उपद्रवियों ने मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर की किसान महापंचायत का पंडाल उखाड़ा।आखिर भड़काने की यह कौन सी शायरी है। फिर इसी विचार धारा के लोग अवार्ड वापस करते हैं।

एस पी मित्तल

मुन्नवर राणा को देश का ख्याति प्राप्त शायर माना जाता है। दिल्ली की सीमाओं पर जब हजारों किसान डेढ़ माह से धरना देकर बैठे हैं, तब 10 जनवरी को मुन्नवर राणा का कहना रहा कि संसद को गिराकर खेत बना दो। उस संसद को गिराने की बात कही गई है जहां देश को चलाने के लिए कानून बनाए जाते हैं। जब संसद ही गिरा दी जाएगी तो फिर देश में क्या बचेगा?

क्या मुन्नवर राणा जैसी सोच रखने वाले भारत में लोकतंत्र को खत्म करना चाहते हैं। लोकतंत्र की पहचान तो संसद ही है। भारत की संसद का तो इतिहास रहा है। ऐसी संसद को गिराकर खेत बनाने से किसका भला होगा? दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों की वजह से देश को प्रतिदिन करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है।

दिल्ली महानगर के करोड़ों लोग परेशान हो रहे हैं। हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं, ऐसे माहौल में किसानों को भड़काने वाले संदेश दिए जा रहे हैं। इसी का परिणाम रहा कि 10 जनवरी को हरियाणा के करनाल के कैमला में आयोजित किसान महापंचायत के मंच और पंडाल को गिरा दिया गया। इस महापंचायत को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर संबोधित करने वाले थे।

इस महापंचायत में करनाल के किसानों को बताया जाता कि केन्द्र सरकार के नए कृषि कानून कितने फ़ायदेमंद हैं। लेकिन उपद्रवियों ने मुख्यमंत्री के आने से पहले ही मंच और पंडाल को तोड़ डाला। हालांकि पुलिस ने उपद्रवियों के खिलाफ मुकदमें दर्ज कर लिए हैं, लेकिन सवाल उठता है कि मांगे मनवाने का यह कौन सा तरीका है?

जब दिल्ली की सीमाओं पर डेढ़ माह से धरना प्रदर्शन किया जा सकता है, तब क्या कोई मुख्यमंत्री अपनी बात जनता के बीच नहीं रख सकता? आखिर मुख्यमंत्री की किसान महापंचायत से प्रदर्शनकारियों को इतनी बैचेनी क्यों हुई? क्या धरना देने वालों को इस बात का डर था कि करनाल की महापंचायत के बाद दिल्ली की सीमाओं पर बैठे लोग अपने चले जाएंगे? लेाकतंत्र में हर किसी को अपना पक्ष रखने का अधिकार है।

भारत में अभी लोकतंत्र कायम है, यह बात अलग है कि कुछ लोग संसद को गिराने का संदेश दे रहे हैं। संसद कब करेगी, यह तो पता नहीं, लेकिन देश में फिलहाल लोकतंत्र कायम रहेगा। मुन्नवर राणा जैसी सोच रखने वाले देश पर काबिज होंगे, तब शायद संसद को भी गिरा दिया जाए। गंभीर बात तो यह है कि संसद को गिराने की सोच रखने वाले ही अवार्ड वापस करते हैं। देश की जनता को ऐसे दोहरे चरित्र वालों से सावधान रहने की जरुरत है।