सिकन नहीं-अब तक बेऔलाद रहा टाटा खानदान…!

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टाटा परिवार भारतीय उद्योगपतियों और लोक हितैषियों का परिवार है, जिसने लोहा और इस्पात के कारख़ानों, सूती कपड़ों की मिलों और पनबिजली संयत्रों की स्थानपना की, जो  भारत के औद्योगिक विकास में महत्त्वपूर्ण साबित हुए।टाटा परिवार’ मूलत: पूर्व बड़ौदा रियासत  का पारसी पुरोहित परिवार है। इस परिवारके उद्योग-ऐश्वर्य की नींव जमशेदजी टाटा  (1839-1904 ई.) ने रखी थी। बंबई (वर्तमान मुंबई) में ‘एल्फ़िंसटन कॉलेज’ में शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1858 ई. में वह अपने पिता की निर्यात व्यापार कंपनी में शामिल हुए और अमेरिका,चीन, यूरोप व जापान में इसकी शाखाओं की स्थापना में मदद की। 1872  में उन्होंने वस्त्र निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया और 1877 में नागपुर तथा बाद में बंबई और कुर्ला में मिलों की स्थापना की। उनके उद्यम कार्यकुशलता, श्रमिक संरक्षण नीतियों और उत्कृष्ट क्षेणी के रेशों के उपयोग के लिए विख्यात थे। उन्होंने भारत में कच्चे रेशम के उत्पादन की भी शुरुआत की और बंबई क्षेत्र के पनबिजली संयंत्रों की भी योजना बनाई, जो उनकी मृत्यु के बाद ‘टाटा पावर कंपनी’ बनी।

कार से लेकर नमक तक बेचने वाले टाटा ग्रुप को आखिर कार अपना वारिस मिल ही गया। अरबो वाले टाटा समूह की मुख्य कंपनी टाटा सन्स के नये उत्तराधिकारी की घोषणा हुई, जिनका नाम सायरस मिस्त्री है। 43 साल के सायरस के नाम का खुलासा खुद रतन टाटा ने किया। यहां आपको बता दें कि रतन टाटा दिसम्बर 2012 में रिटायर होंगे, इसके बाद सायरस उनका पद संभालेंगे।

अगर आज रतन टाटा विवाहित होते और उनकी अपनी कोई संतान होती तो शायद आज टाटा ग्रुप का चेयर मैन वो ही होता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि अगर ऐसा होता तो इतिहास अपने आप को दोहरा नहीं पाता। आपको जानकर हैरत होगी कि देश के बड़े घरानों में से एक टाटा ग्रुप के फाउंडर चेयरमैन को छोड़कर किसी भी चैयरमैन का कोई वारिस नहीं था।

सन् 1887 में टाटा एंड संस की स्थापना करने वाले जमशेदजी नुसेरवांजी के बड़े बेटे सर दोराबजी टाटा सन् 1904 में अपने पिता के निधन के बाद कंपनी की कमान संभाली। लेकिन 1932 में वो भी परलोक सिधार गये। लेकिन उस समय कंपनी को संभालने वाला कोई नहीं था, क्योंकि सर दोराबजी टाटा की कोई संतान नहीं थी।

इसे संजोग ही कहे कि विश्व के मानचित्र में भारत को औधोगिक रूप में मजबूत करने वाले टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा की शादी नहीं हुई। हालांकि उन्हें मुहब्बत तो कई बार हुई लेकिन वो शादी के बंधन में नहीं बंध पायी। कुछ समय पहले एक टीवी न्यूज चैनल के कार्यक्रम में रतन टाटा ने खुद इस राज से पर्दा उठाया था।

इसलिए इस बार कंपनी की कमान उनकी बहन के बड़े बेटे सर नॉवरोजी सकटवाला को दे दी गयी। लेकिन सर नॉवरोजी सकटवाला की 1938 में अक्समात मृत्यु हो जाने के बाद जेआरडी टाटा को टाटा ग्रुप सौंपा गया। यहां आपको बता दें कि जेआरडी टाटा जमशेदजी टाटा के चचेरे भाई के बेटे थे। जिन्होंने भारत को पहली एयरलाइंस सुविधा मुहैया करायी। लेकिन अफसोस जेरआरडी टाटा की भी कोई औलाद नहीं थी।

इसलिए 1991 में कंपनी की कमान रतन टाटा को सौंपी गयी। यहां आपको बता दें कि रतन टाटा नवल टाटा के बेटे थे, जिन्हें जमशेद जी ने गोद लिया था। उसके बाद तस्वीर आपके सामने है, क्योंकि रतन टाटा के बाद टाटा ग्रुप का अगले वारिस सायरस मिस्त्री हैं। आपको बता दें कि सायरस मिस्त्री रतन टाटा के सौतेले भाई के सगे साले हैं। इसे संजोग ही कहे कि विश्व के मानचित्र में भारत को औधोगिक रूप में मजबूत करने वाले टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा की शादी नहीं हुई।

हालांकि उन्हें मुहब्बत तो कई बार हुई लेकिन वो शादी के बंधन में नहीं बंध पायी। कुछ समय पहले एक टीवी न्यूज चैनल के कार्यक्रम में रतन टाटा ने खुद इस राज से पर्दा उठाया था। अरबों की मिल्कियत के मालिक टाटा को एक बार नहीं बल्कि चार बार प्यार हुआ था। तीन बार की मोहब्बत तो यूं ही तफरी के लिए थी, लेकिन अपनी चौथी मुहब्बत के बारे में रतन टाटा ने कहा था, कि जब वह अमेरिका में काम कर रहे थे तो उनका प्यार बेहद गहरा हो गया था। लेकिन केवल इसलिए शादी नहीं हो पायी क्योंकि उन्हें वापस भारत आना था।

यह पूछे जाने पर कि जिनसे उन्हें प्यार हुआ था उनमें से कोई क्या अभी भी उनसे मिलता है तो उन्होंने हां में जवाब दिया, लेकिन इस मामले में आगे बताने से इनकार कर दिया था। यह है देश के एक ऊंचे खानदान का रोचक सच जिसे जानने का हक आप सभी को है। जहां टाटा ग्रुप ने नमक और चाय पत्ती से घर की गृहणियों का दिल जीता वहीं आम आदमी की पहुंच में नैनो कार पहुंचा कर एक असंभव सपना पूरा कर दिया । इसलिए ऐसे खानदान पर हर भारतवासी को गर्व है और हर भारतवासी उन्हें तहे दिल से सलाम करता है।