सुप्रीम कोर्ट कृषि कानूनों की क्रियान्विति पर रोक लगाने को तैयार

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कृषि कानूनों को रद्द करने की जिद पर अड़े किसानों को क्या सुप्रीम कोर्ट का दखल पसंद आएगा।कृषि कानूनों की क्रियान्विति पर रोक लगाने को सुप्रीम कोर्ट तैयार।सीजेआई बोबड़े ने सभी को फटकार लगाई।

एस0पी0 मित्तल

दिल्ली – 11 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में किसान आंदोलन और केन्द्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को लेकर लंबी सुनवाई हुई। सीजेआई एसए बोबड़े का प्रयास रहा कि किसी भी तरह समस्या का समाधान निकाला जाए। इसलिए जस्टिस बोबड़े ने केन्द्र सरकार से लेकर किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों तक को खरी खरी सुनाई।

समस्या के समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट अब 12 जनवरी को कोई अंतरिम आदेश कर सकता है। देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर पिछले डेढ़ माह से जमे किसानों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट नए कृषि कानूनों की क्रियान्विति पर रोक लगाने को तैयार हो गया है। लेकिन जस्टिस बोबड़े ने स्पष्ट कर दिया कि हम कानून पर कोई रोक नहीं लगा रहे है। कोर्ट का उद्देश्य फिलहाल क्रियान्विति को रोकना है। ताकि हालातों को नियंत्रित किया जा सके।

सुनवाई के दौरान जस्टिस बोबड़े ने कहा कि सरकार किसान आंदोलन से निपटने में असफल रही है। गत 17 दिसम्बर को सुनवाई के दौरान सरकार से मामले को निपटाने के लिए कहा गया था, लेकिन सरकार ने कोई ठोस कार्यवाही नहीं की। इसलिए अब कोर्ट को ही आदेश जारी करने पर पड़ रहे हैं। जस्टिस बोबड़े ने जहां केन्द्र सरकार की कार्यशैली पर आपत्ति जताई वहीं किसान यूनियनों के वकीलों से जानना चाहा कि दिल्ली की सीमाओं पर महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों को क्यों बैठाया गया है? उन्होंने कहा कि जब कोरोना संक्रमण का प्रकोप जारी है, तब धरना स्थल पर सोशल डिस्टेंसिंग का भी ख्याल नहीं रखा जा रहा है।

भले ही भी तक आंदोलन शांतिपूर्ण रहा हो, लेकिन हिंसा कभी भी हो सकती है। हिंसा होने पर हम सबकी जिम्मेदारी होगी। जस्टिस बोबड़े ने किसानों के द्वारा रास्ता रोके जाने को भी दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि हम किसी को आंदोलन करने से तो नहीं रोक सकते, लेकिन आंदोलन कारियों की वजह से आम लोगों को भी कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।

जस्टिस बोबड़े ने किसान यूनियनों के वकीलों से पूछा कि यदि कृषि कानूनों की क्रियान्विति पर रोक लगाई जाती है तो क्या वे धरना समाप्त कर देंगे? सुनवाई के दौरान किसान आंदोलन को लेकर कोर्ट का रुख नरम नजर आया। इस पर याचिकाकर्ताओं के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि कोर्ट ऐसा कोई संदेश नहीं दे जिससे रास्ता जाम करने वालों को जायजा ठहराया जाए।

सरकार के वकील ने भी कहा कि जो कानून संसद में बना है, उस पर सुप्रीम कोर्ट रोक नहीं लगा सकता है। 11 जनवरी की सुनवाई में जस्टिस बोबड़े ने सभी पक्षों को फटकार लगाई है ऐसे में सवाल उठता है कि जो किसान कानूनों को रद्द करने की जिद पर अड़े हुए है, क्या वे सुप्रीम कोर्ट के दखल को स्वीकार करेंगे?

11 जनवरी को सुनवाई शुरू होने से पहले ही किसानों के कई प्रतिनिधियों ने टीवी चैनलों पर कह दिया था कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट पर कोई भरोसा नहीं है। यदि सुप्रीम कोर्ट हमें हटने का आदेश देगा तो भी हम दिल्ली की सीमाओं पर बैठे रहेंगे। यहां यह उल्लेखनीय है कि जब सीएए कानून के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग में धरना लगाया गया था, तब भी सुप्रीम कोर्ट ने समस्या के समाधान के लिए कमेटी गठित की थी। लेकिन यह कमेटी भी अपने उद्देश्य में विफल रही।

शाहीन बाग का धरना कोरोना के फैलने की वजह से ही समाप्त हुआ। एक बार फिर वैसी से ही हालात दिल्ली की सीमाओं पर हो गए हैं। कृषि कानूनों को रद्द करने को लेकर पंजाब के किसान बड़ी संख्या में दिल्ली के बाहर पिछले डेढ़ माह से बैठे हुए हैं। हालांकि सरकार के साथ 8 दौर की बातचीत हुई है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला है। सरकार के प्रतिनिधि किसानों की आशंकाओं को दूर करने का प्रयास लगातार कर रहे हैं, लेकिन किसान यूनियनें कानूनों को रद्द करने पर अड़ी हुई है।

सरकार ने भी स्पष्ट कर दिया है कि कानून किसी भी स्थिति में रद्द नहीं होंगे क्योंकि ये कानून किसानों के हित में है। देश का आम किसान कृषि कानूनों को लेकर खुश है, इसीलिए नए कृषि कानून के दायरे में करोड़ों किसानों ने अपना पंजीयन करा लिया है। सरकार का यह भी कहना है कि दिल्ली के बाहर जो किसान आंदोलन कर रहे हैं, वे पूरे देश के किसानों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।