24 दिसम्बर से प्रसपा गांव-गांव पद यात्रा अभियान चलाएगी-शिवपाल यादव

74

लखनऊ, शिवपाल यादव ने अलग -2 माध्यमों से और संवाद के विभिन्न मंचों पर सैकड़ों बार यह बात कही है कि समाजवादी धारा के सभी लोग एक मंच पर आएं और एक ऐसा तालमेल बनें जिसमें सभी को सम्मान मिल सके और प्रदेश का विकास हो सके । आप सभी इस बात के साक्षी रहे हैं।
जहां तक समाजवादी पार्टी का प्रश्न है, अब तक मेरे इस आग्रह पर पर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई है और न ही इस विषय पर मेरी समाजवादी पार्टी के नेतृत्व से कोई बात हुई है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मेरी मंशा स्पष्ट होने के बावजूद बात आगे नहीं बढ़ पा रही है ।

प्रसपा का स्वतंत्र अस्तित्व बना रहेगा और पार्टी विलय जैसे एकाकी विचार को एक सिरे से खारिज करती है और अपने पार्टी पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को यह विश्वास दिलाती है कि उनके सम्मान के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा। मैं एक बार फिर गैर भाजपा दलों की एकजुटता का आह्वान करता हूं।

हम लगातार संगठन को मजबूत करने पर कार्य कर रहे हैं। 24 दिसम्बर से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में गांव-गांव पद यात्रा अभियान चलाएगी। इस पद यात्रा का उद्देश्य प्रदेश के हर गांव में पहुंचना और पार्टी के विचारों को जनता तक पहुंचाना है। पार्टी इस संकल्प को ‘गांव-गांव पहुंचे प्रसपा जन के पांव’ के नारे के साथ आगे बढ़ाएगी।

भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने गांव, गरीब, किसान, पिछड़े, दलित, व्यवसायी, मध्यवर्ग और युवाओं को सिर्फ छला है। सरकार शिक्षा, सुरक्षा, सम्मान, रोजगार और इलाज उपलब्ध करा पाने में पूर्णतया नाकामयाब रही है। बेटियों को सुरक्षा और न्याय न दे पाने की वजह से जनता में सरकार के खिलाफ बहुत गुस्सा है।

कृषि विरोधी बिल के खिलाफ दिल्ली आ रहे पंजाब व हरियाणा के किसानों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने से रोका जा रहा है, कड़ाके की सर्दी के बावजूद उन पर आंसू गैस, लाठियां व वॉटर कैनन चलाया जा रहा है। अन्नदाताओं पर ऐसा अमानवीय अत्याचार करने वालों को सत्ता में बने रहने का अधिकार नहीं है।लोकतंत्र में सांकेतिक विरोध प्रदर्शन का अधिकार सभी को है, यही लोकतंत्र की ताकत है, बड़ी सी बड़ी समस्याओं को बातचीत के द्वारा हल किया जा सकता है, जन आकांक्षा के दमन और लाठीचार्ज के लिए लोकतंत्र में कोई जगह नहीं है ।इसके मद्देनजर किसानों और विपक्ष की आम सहमति के बिना बनाए गए, इन कानूनों पर केन्द्र सरकार पुनर्विचार करे।

भाजपा सरकार में सबसे परेशान किसान हैं। उन्हें फसल का लागत मूल्य भी नहीं मिल रहा है। पिछले साल जो धान 2400 रुपये क्विंटल बिका था वह इस बार 1100 से 1300 रुपये के बीच बिक रहा है। गन्ने का समर्थन मूल्य पिछले कुछ सालों से एक रुपया भी नहीं बढ़ा है और अभी तक पिछले साल के गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं हुआ है।

नए कानूनों के तहत सरकार मंडियों को छीनकर कॉरपोरेट कंपनियों को देना चाहती है। अधिकांश छोटे जोत के किसानों के पास न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए लड़ने की ताकत है और न ही वह इंटरनेट पर अपने उत्पाद का सौदा कर सकते हैं। इससे तो किसान बस अपनी जमीन पर मजदूर बन के रह जाएगा। इन कानूनों के तहत सरकार ने देश के अन्नदाताओं पर आजादी के बाद का सबसे बड़ा हमला किया है। सरकार के इन तथाकथित सुधारों में न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई चर्चा नहीं है।

आज अगर चौधरी चरण सिंह, लोहिया और समाजवादियों की विरासत सत्ता में होती तो अन्नदाताओं के साथ इतना बड़ा छल नहीं हो सकता था।इस कानून के जरिये केंद्र सरकार कृषि का पश्चिमी मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाहती है लेकिन सरकार यह बात भूल जाती है कि हमारे किसानों की तुलना विदेशी किसानों से नहीं हो सकती क्योंकि हमारे यहां भूमि-जनसंख्या अनुपात पश्चिमी देशों से अलग है और हमारे यहां खेती-किसानी जीवनयापन करने का साधन है वहीं पश्चिमी देशों में यह व्यवसाय है। किसान अपने जिले में अपनी फसल नहीं बेच पाता है, वह राज्य या दूसरे जिले में कैसे बेच पायेगा। क्या किसानों के पास इतने साधन हैं और दूर मंडियों में ले जाने में खर्च भी तो आयेगा।