आखिर कब तक नवरत्नों के घेरे में रहेंगे महाराज ……

103

[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”इस समाचार को सुने”]

राजू यादव

भाजपा की रणनीति पर आप दूरदृष्टि की नजर से देखते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि पार्टी पूरी तरह से मिशन-2024 के मूड में हैं। लोकसभा चुनाव में भले डेढ़ साल का वक्त बचा है लेकिन भाजपा ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। हर स्तर पर समन्वय बनाने की कोशिश की जा रही है।

त्तर प्रदेश में भाजपा की जीत का सिलसिला निरंतर जारी है। निरंतर जीत के बावजूद वह हर चुनाव मे जीत के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देती है। उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनाव में सपा का गढ़ माने जाने वाली रामपुर और आजमगढ़ सीट पर भाजपा ने शानदार जीत दर्ज की है। अब भाजपा आगामी 2024 के रण की तैयारी में जुट गई है।भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है। रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में जीत के बाद मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने भी कहा कि 2024 में भाजपा प्रदेश की सभी 80 सीटें जीतेगी। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए भाजपा अभी से जमीन पर जुट गई है। भाजपा पहले जीती हुई सीटों के साथ-साथ उन सीटों पर खासतौर से फोकस किया जा रहा है जिन्हें पिछले चुनाव में भाजपा हार गई थी।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जहां प्रथम बार मुख्यमंत्री बनने पर अपनी और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की सीट हारी थी वही उत्तर प्रदेश में दोबारा सरकार बनाने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपना वर्चस्व और नेतृत्व क्षमता दिखाते हुए सपा के गढ़ आजमगढ़ को गढ़ किया। आजमगढ़ से सांसद रहे विपक्षी दल के नेता जहां छह लाख से ज्यादा वोट पाकर विजई हुए थे वहीं उनकी पार्टी का प्रत्याशी ही नहीं अपितु उनका भाई तीन लाख से ज्यादा वोट पाकर चुनाव परास्त हुआ, इसके विपरीत भाजपा का प्रत्याशी पिछली बार से भी कम वोट पाकर विजई घोषित हुआ। अगर हम दूसरी सीट की चर्चा करते हैं तो वह है रामपुर रामपुर से मुस्लिम नेता आजम खान ने अपनी सीट से इस्तीफा दिया था और उन्होंने अपने चहेतों को सीट से उतारा जो 40 हजार से अधिक मतों से पराजित हुआ। यही नेता रामपुर के मसीहा कहे जाने वाले अपने गढ़ को बचाने में बुरी तरह से असफल हुए। विपक्षी पार्टियों को उत्तर प्रदेश में हुए चुनाव से इस बात का सबक लेना चाहिए कि युद्ध छोटा हो या बड़ा युद्ध युद्ध होता है। युद्ध में कभी भी अपने प्रतिद्वंदी को अपने से कमतर नहीं आंकना चाहिए, अगर आप अपने प्रतिद्वंदी को अपने से कमतर आंकते हैं वही आपके परास्त होने का सबसे बड़ा कारण साबित होता है।

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के 2 सीटों पर हुई जीत योगी का कद कहीं ना कहीं देश में मोदी के बराबर जाकर खड़ा करता है। प्रदेश हो या देश अब आमजन में आवाज उठने लगी है कि मोदी के बाद योगी आदित्यनाथ प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे। आज देश में मोदी के बाद सबसे ज्यादा मांग उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की होने लगी। अब हम इस बात को यहीं पर छोड़ते हैं इस पर चर्चा 2024 के नतीजे आने के बाद की जाएगी।

अब हम यहां से ले चलते हैं विपक्ष की ओर देखते हैं वहां क्या हो रहा है…..

सपा के तथाकथित प्रवक्ता एवं प्रभारी उत्तराखंड एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री ने एक दरबारी की भूमिका निभाते हुए अपने वक्तव्य में कहा है कि इधर जबसे लोकसभा उपचुनाव- 2022 के नतीजे आये हैं भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कुछ ज्यादा ही इतरा रहा है। एक दूसरे को मिठाई खिलाना, एक दूसरे की पीठ थपथपाना लोकतंत्र का उपहास है। हालांकि भाजपा इस सच्चाई से अवगत है कि इन चुनावों में भी जीत के लिए वहीं सब धांधली की गई जैसी सन् 2022 के आम विधानसभा चुनावों में की गई थी।भाजपा यह बात बहुत अच्छी तरह जानती है कि अखिलेश यादव के विराट व्यक्तित्व और स्वच्छ छवि के सामने भाजपा तमाम अनियमितताएं करके भी टिक नहीं सकती। यह कैसी विडम्बना है कि जनहित में बिना कोई विकास कार्य किए कपटपूर्ण राजनीति की जा रही है और उसे ही अपनी उपलब्धियों में शामिल किया जाता है। लोकतंत्र में ऐसे बुरे दिन क्या कभी हो सकते हैं कि नैतिक मूल्यों पर आधारित राजनीति को परास्त करने की साज़िश हो, और इसे ही अपनी सफलता का मूल समझा जाने लगे….?

………. शायद इसी को कहते हैं घर की फूट और बाहर वालों की लूट ………

जनाधार मुक्त तथाकथित राष्ट्रीय पार्टी के प्रवक्ता एवं प्रभारी उत्तराखंड चौधरी जी ने दरबारी का ऐसा काला चश्मा पहना है कि राजा को खुश करने के अलावा उन्हें और कुछ दिखाई ही नहीं पड़ता जीत के जश्न में एक दूसरे से खुशी व्यक्त करने के लिए खुशी छोटी हो या बड़ी एक दूसरे को लड्डू खिलाकर ही अभिवादन करता है। अब चौधरी जी अपने राजा को खुश करने के लिए ऐसा चाहते हैं कि भाजपा जीत की खुशी में भी अपने साथियों को तीखी मिर्ची खिलाकर खुशी का इजहार करें, ऐसा तो भाजपा करने से रही क्योंकि भाजपा को किसी चौधरी को खुश नहीं करना है। आज उप चुनाव जीतने के बाद भाजपा जहां क्षेत्र में अपने संगठन को मजबूत करने में जुट गई है वही हार का रोना रोने वाला दल ना तो उपचुनाव में बाहर निकला ना अभी तक हार की समीक्षा कर पा रहा है। लोकसभा उपचुनाव में अगर विपक्ष का बड़ा दल यह चाहता कि मुझे लोकसभा चुनाव लड़कर जीतना है तो वह कम से कम सपा का गढ़ कही जाने वाली आजमगढ़ को जरूर गढ़ कर सकता था। लेकिन चौधरी जी जिसे अपना सुप्रीमो मानते हैं और उन्हीं के गठबंधन का एक राजभर नेता उन पर भर भर कर आरोप लगाता है कि हम तो क्षेत्र में मेहनत कर रहे थे और वह ऐoसीo में पड़े मौज ले रहे थे । ऐसे में कैसे जीत होगी अब तो दूसरा दल छोड़िए उनका गठबंधन भी आरोप लगा रहा है। जो आरोप लगा रहा मेरी समझ से वह पूर्णता सत्य कह रहा है।जिस जनपद की जनता ने आपको सर आंखों पर बिठाया हो और जीत के बाद वहां आप उस जनता के दीदार के लिए भी ना जाए काम तो दूर की बात है। बिना दीदार के ही आपने वहां का रण छोड़ दिया और अपने भाई को रण में अभिमन्यु की भांति अकेला छोड़ दिया। अभिमन्यु रूपी धर्मेंद्र ने अपने सामर्थ्य के हिसाब से युद्ध लड़ा लेकिन अकेला पड़ गया जिसे सत्ता दल के धुरंधर रणबांकुरों ने मिलकर रणनीति के साथ परास्त कर दिया। परास्त होने के बाद अभिमन्यु रूपी योद्धा ने अपना दर्द बयां कर दिया कि मैं एक आम कार्यकर्ता नहीं बल्कि सुप्रीमों का भाई हूं इसलिए मैं जिद नहीं कर पाया।शायद यहां पर हमारे आदरणीय भ्राता श्री सपा सुप्रीमो जी प्रचार के लिए आए होते तो आज मुझे यह दिन देखना नहीं पड़ता। सपा ने जिस उम्मीदवार को आजमगढ़ से उतारा था वह वास्तव में समाजवादी पार्टी का एक उभरता हुआ चेहरा बेदाग चेहरा है।जिस पर नेतृत्व की क्षमता भी है और अपनी बात रखने की वाकपटुता भी।चाहे वह आजमगढ़ जनता के बीच हो या फिर सदन में हो वह अपने बातों को तत्वों के आधार पर ही रखता है।अब इस पराजित युद्ध को 2024 में होने वाले रण के लिए युद्ध का मैदान भी ढूंढना मुश्किल होगा क्योंकि एक दल से आए हुए नेता को सपा ने एमएलसी बनाकर उच्च सदन भेजा है और इस पराजित योद्धा की युद्ध भूमि से उन्हें की सुपुत्री विजेता है। तो संकट के बादल अब इस योद्धा के सामने भी मंडरा रहे हैं।इसे भी अब भविष्य के गर्भ में ही छोड़ते हैं वक्त आने पर इसकी भी चर्चा की जाएगी।

चौधरी जी अपनी नेता की चापलूसी करने मैं करने में चरम को भी पार कर जाते हैं से नहीं चूकते हैं और कहते हैं कि अखिलेश यादव के सहज,सरल, बेदाग और सक्षम नेतृत्व से भाजपा सहमी-सहमी रहती है। शायद यह बात कुछ हद तक सत्य भी है लेकिन जब से वह अपने नवरत्नों से गिरे हैं, अब असत्य सी लगने लगी है।उन्हें या उनके कानों को सिर्फ अपने नवरत्नों की बातों पर ही यकीन रहा है। इसलिए वह जनता के बीच खुलकर नहीं आ पा रहे और जनता से दूर होते जा रहे हैं जैसा कि चौधरी जी ने ऊपर कहा की सरल स्वभाव के हैं मैं उसमें थोड़ा संशोधन करता हुआ कहूंगा कि वह सरल स्वभाव के थे,लेकिन उनके नवरत्नों ने उन्हें आमजन से दूर कर दिया है।सपा सुप्रीमों के पिताजी को पूरा देश सुभाष चंद्र बोस के बाद नेताजी के नाम से जानता है।नेता जी ने शायद यह उपाधि अपने संघर्षों से पाई है किसी तरह के नवरत्नों से घिरकर नहीं पाई है।अब उत्तर प्रदेश में बहुत लोगों की सांसें सिर्फ नेताजी की सांसों तक टिकी है।नेताजी की सांसो तक उनका रिश्ता सपा से रहने वाला भी है। क्योंकि नेताजी के एहसान बहुतों पर है। आखिर नेताजी तो नेताजी हैं।

आज उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी के नवरत्न अपने महाराज को खुश करने में ही लगे रहते हैं। चापलूसी के मद में इतने मुक्त इतने मुक्त मगन हो चुके हैं,उन्हें यह नजर नहीं आ रहा है कि जहां उत्तर प्रदेश में किसी भी दल को लगातार दूसरी बार सरकार बनाने का मौका नहीं मिला और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में पूर्ण योग योग की स्थापना करते हुए उत्तर प्रदेश में दोबारा अपना शासन स्थापित करने में सफल रहा। जब विपक्ष अपने राजा को बहलाने के लिए कवि की भांति उसकी छवि की प्रशंसा करते रहिए और छवि रूपी जनता को उस से विमुख होने के लिए मजबूर करते रहिए।अगर यहीं कवि छवि रूपी जनता को युवराज से मिलाते रहते तो आज युवराज शायद राज्य में राज कर रहा होता।इन्हीं नवरत्नों से पीड़ित चाचा श्री ने विधानसभा में कहा था कि अगर युवराज इस राज की थोड़ी सी सलाह मान ली होती तो आज यह राज कर रहे होते और जो सत्ता में बैठे हैं वह विपक्ष में होते और जो नेता प्रतिपक्ष कि सीट पर बैठे हैं वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में विराजमान होते। लेकिन सत्ता और संबंधों के बीच में अभिमान आ गया जो अरमान पर पानी फेर गया।

आज जिस भाजपा का विपक्षी दल लोकतंत्र की दुहाई देकर अपनी कमजोरी छुपा रहे हैं। वही सत्तादल प्रत्येक क्षेत्र में अपने विजय श्री को हासिल करता हुआ निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। चाहे फिर वह विधानसभा में बहुमत हो या फिर विधान परिषद में बहुमत हो या फिर राज्यसभा का बहुमत हो या फिर लोकसभा बहुमत हो। सत्ता के प्रत्येक क्षेत्र में वह अपने संकल्प को ध्यान में रखकर लक्ष्य की ओर निरंतर प्रगति के पथ पर बिना रुके बिना थके आगे बढ़ रहा है। विपक्ष उसकी काट नहीं ढूंढ पाता है जब मौका आता है तब विपक्ष एक दूसरे से टकरा कर फिर चकनाचूर हो जाता है। आखिर कब तक विपक्ष अपनी लाचारी की दुहाई देता रहेगा। यह बात ठीक है कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी अब मौन हो गया है, लेकिन जब तक आप सड़कों पर आकर विरोध नहीं करेंगे तब तक लोकतंत्र का चौथा खंभा आपकी बात को कैसे उठा पाएगा। इस पर भी कहीं न कहीं विपक्ष को ही विचार करना पड़ेगा और परखना भी पड़ेगा।

—– जिस व्यक्ति को समय की परख नहीं है, वह कितना भी चतुर या होशियार ही क्यों न हो, जीवन में कभी सफल नहीं हो सकता। ——


सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को घेरे रहने वाले ‘नवरत्नों’ की वजह से ही वह विधानसभा चुनाव के बाद सरकार नहीं बना पाए। प्रदेश की जनता उन्हें वोट देने को तैयार थी, लेकिन अफसोस वह खुद वोट लेने को तैयार न थे। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के लोकसभा उपचुनाव में आजमगढ़ की जनता भी पलके बिछाए सपा सुप्रीमों का इंतजार कर रही थी लेकिन सपा सुप्रीमों वहां न गए। नतीजा यह हुआ पूर्वांचल की जनता ने उन्हें उन्हीं आंखों की पलकों में आंसू भर उन्हें या उनके दल को वहां से विदा कर दिया। अगर वह आजमगढ़ गए होते तो आजमगढ़ को गढ़ भी किए होते और रामपुर के महाराजा से कई गुना आगे बढ़ गया होता। अफसोस वह सोच ना सके।

[/Responsivevoice]