आख़िर क्यों गंगापुत्र छीन रहे गंगापुत्रों का रोजगार

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आख़िर क्यों गंगापुत्र छीन रहे गंगापुत्रों का रोजगार, विलास क्रूज चलाने से मल्लाह समाज नाराज़,कहा कि ‘हमारी आजीविका की नाव डुबोने पर तुली है भाजपा सरकार’ बनारस के मल्लाहों का कहना है कि गंगा माँ ने मोदी जी को इसलिए नहीं बुलाया था की वह उनके पुत्रों को निगल जाएं।

दुनिया के सबसे लंबे रिवर क्रूज एमवी गंगा विलास ने बनारस के उन मल्लाहों की चिंता बढ़ा दी है जिनकी ज़िंदगी में पहले से ही हज़ारों झंझावत हैं। बताया जा रहा है कि इस क्रूज के संचालन से पर्यटन उद्योग को नई रफ्तार मिलेगी, लेकिन मल्लाहों को लगता है कि भाजपा सरकार उनकी आजीविका की नाव पूरी तरह डुबो देने पर तुली है। वाराणसी से डिब्रूगढ़ जाने के लिए बहुप्रचारित एमवी गंगा विलास क्रूज 10 जनवरी 2023 को रामनगर बंदरगाह पर पहुंचा। इस क्रूज पर स्विट्जरलैंड का 32 सदस्यीय दल सवार हो चुका है। पीएम नरेंद्र मोदी शुक्रवार को वर्चुअल झंडी दिखाकर रविदास घाट से इसे रवाना करेंगे। यह लग्ज़री क्रूज भारत और बांग्लादेश के पांच राज्यों में 27 नदी प्रणालियों में करीब 3,200 किमी की दूरी तय करेगा।

एमवी गंगा विलास क्रूज को दुनिया के सामने देश का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए लग्ज़री सुविधाओं से सुसज्जित किया गया है। इस क्रूज पर सवार पर्यटक यूपी, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम के अलावा बांग्लादेश के शहरों में 50 से अधिक विश्व विरासत स्थलों की सैर करेंगे। 36 पर्यटकों की क्षमता वाले इस क्रूज में 18 सुइट्स हैं, जिन्हें 38-38 लाख रुपये में बुक किया गया है। हर यात्री को 13 लाख रुपये चुकाने होंगे। इनक्रेडिबल बनारस पैकेज की कीमत 1 लाख 12 हज़ार रुपये है। इस पैकेज में गंगा घाट से लेकर रामनगर तक का पर्यटन भी शामिल है। यह यात्रा चार दिनों की होगी। बनारस में एक दिन की यात्रा का किराया 300 डॉलर यानी करीब 25 हज़ार रुपये है

कोलकाता से बनारस पैकेज का किराया 4,37,250 रुपये हैं, जबकि कोलकाता से बांग्लादेश की राजधानी ढाका तक की यात्रा के लिए भी इतने ही रुपये चुकाने होंगे। कोलकाता से मुर्शिदाबाद राउंड ट्रिप के लिए 2,92,875 रुपये देने होंगे। इस क्रूज से सरकारी तंत्र भले ही उत्साहित है, लेकिन बनारस के मल्लाह खासे नाराज़ हैं। साल 2018 में जब बनारस की गंगा में पहली मर्तबा अलखनंदा क्रूज उतारा गया था तब भी मल्लाहों ने कड़ा विरोध किया था। उस समय करीब 18 दिनों तक गंगा में नावों का संचालन बंद रहा। धनकुबेर पहले रोड पर कमाई करते थे अब वो नदी में उतर गए हैं। उनके क्रूज हमारे पारंपरिक धंधे पर डाका डाल रहे हैं। हम यहां नीचे घाट पर सैलानियों का इंतजार करते रह जाते हैं और वो ऊपर से ही अपने क्रूज की ऑनलाइन बुकिंग कर लेते हैं। पीएम नरेंद्र मोदी हमारे सांसद है, लेकिन हमारे हितों की उन्हें तनिक भी चिंता नहीं है। पर्यटन विभाग हमें मिटाने पर उतारू है। इनके क्रूज ही दौड़ेंगे तो हमारी नावें कहां चलेंगी? हालात ऐसे ही रहे तो हमारे समाज का करोबार ही खत्म हो जाएगा। वो अपने क्रूज पर एक-दो लोकल आदमी रखेंगे और मल्लाहों का धंधा ठप करा देंगे।

क्रू के मालिक राज सिंह ने बताया कि गंगा विलास क्रूज की लंबाई 62 मीटर है। ये क्रूज पूरी तरह से मेड इन इंडिया है। इसे तैयार करने में करीब 68 करोड़ का खर्च आया था। उन्होंने कहा कि अगर इस क्रूज को विदेश में तैयार किया जाता तो इसका खर्च दोगुना हो जाता। यह क्रूज मेक इन इंडिया के मानदंड पर पूरी तरह से खरा उतरता है।

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बनारस की गंगा में सरकारी संरक्षण में चल रहे आधा दर्जन क्रूज क्या कम थे जो यहां फाइव स्टार सुविधा वाले क्रूज को उतार दिया गया। पहले जो भी विदेशी पर्यटक आते थे वो हमारी नावों से ही गंगा विहार करते थे। हमारे धंधे को छीनने के लिए एमबी गंगा विलास क्रूज को लाया गया है। आगे भी जो क्रूज बनारस की गंगा में उतारे जाएंगे वो नाविकों की रोजी-रोटी छीनेंगे और बाद में वही हमें पूरी तरह बर्बाद कर देंगे।

बनारस की रेत पर जब टेंट सिटी बसाई जा रही थी तब डंका पीटा गया कि बनारस के मल्लाह मालामाल होंगे। टेंट सिटी वाले इतने चतुर निकले कि उन्होंने अपनी निजी नौकाएं गंगा में उतार दीं और हमारे समाज के कुछ चापलूसों को अपने यहां नौकरी पर रख लिया। चाहे विश्वनाथ कॉरिडॉर हो या फिर टेंट सिटी, अगर सिर्फ गुजरातियों को ठेका दिया जाएगा तो सरकार पर सवाल ज़रूर खड़ें होंगे। भाजपा को माझी समुदाय का सिर्फ वोट चाहिए, लेकिन उनकी नीति-रीत सिर्फ गुजरातियों के लिए है। वो हमारे खेमे के लोगों को तोड़कर बड़ी चालाकी से अपना सिस्टम बना लेते हैं। खुद को तथाकथित खांटी बनारसी बताने का दम ठोंकने वाले यूं ही चुप्पी साधे रहे तो एक दिन वो भी आएगा जब उन्हें भी इस शहर से रुखसत होना पड़ेगा। तब न बनारसियत बचेगी, न इस शहर की मौजमस्ती। डंका बजेगा तो सिर्फ गुजरात के ठेकेदारों और कॉरपोरेट घरानों का। शायद मोदी सरकार चाहती है कि वहां गुजरात के लोग आकर व्यापार करें और बनारस के लोग नौकर-चाकर बनकर उनकी गुलामी करें।

बनारस में 35 हज़ार नाविकों के सामने संकट के हालात बनारस में 85 गंगा घाटों के किनारे बसे करीब 32 से 35 हज़ार मल्लाहों की ज़िंदगी नौकायन से ही चलती है। यहां करीब 1500 नांव हैं और हर नाव पर करीब चार लोग काम करते हैं। सरकारी संरक्षण में चलाए जा रहे क्रूजों के चलते इनकी आमदनी घटकर आधी रह गई है, ऐसा नाविकों का कहना है। गंगा में एक के बाद एक नए आलीशान क्रूजों को चलाए जाने से मल्लाह समुदाय अपने पारंपरिक पेशे को लेकर खासा आशंकित है। पर्यटकों को नौकायन कराने वाले दुर्गा माझी राजघाट पर गंगा के किनारे अपनी पत्नी रानी देवी और बच्चों के साथ लकड़ी जलाकर ठंड से बचने की जद्दोजहद करते नज़र आए। शाम करीब सात बजे हमारी मुलाकात हुई तो गंगा में उतारी गई नई-नवेली एमबी गंगा विलास क्रूज से नाविकों को होने वाले भविष्य के संभावित खतरे गिनाने शुरू कर दिए।

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डबल इंजन की सरकार में लग्ज़री क्रूज चलाने और टेंट सिटी बसाने पर जितना सरकारी धन खर्च किया जा रहा है उतना मल्लाहों के बच्चों की पढ़ाई में लगा देते तो उनकी जय-जयकार होती। क्रूजों के चलने से बनारस में नौकायन का पारंपरिक धंधा चौपट हो रहा है और गंगा घाटों पर तामझाम व ढकोसला बढ़ रहा है। टेंट सिटी का खेल और क्रूज चलाने के खेल-तमाशे ऐसे ही चलते रहे तो शायद हमारे पास सहेजने के लिए कुछ बचेगा ही नहीं।

वोकल फॉर लोकल और स्टार्टअप इंडिया के जुमले से मल्लाहों की जिंदगी कठिन होती जा रही है। अक्टूबर 2018 में स्टार्टअप इंडिया के तहत नार्डिक क्रूजलाइन कंपनी को बनारस की गंगा में अलकनंदा क्रूज चलाने का लाइसेंस दिया गया। इनके बाद जलपरी, ब्रिजलामा और जुखासो (गुलेरिया कोठी) जैसे तमाम प्राइवेट क्रूज गंगा में व्यापार के मकसद से उतार दिए गए। अलखनंदा क्रूज का लोकार्पण करने आए सीएम योगी आदित्यनाथ ने मल्लाहों को भरोसा दिलाया था कि उनके हितों की अनदेखी नहीं की जाएगी, लेकिन सरकार के सारे वादे झूठे निकले। दुनिया के सबसे लंबे रिवर क्रूज एमवी गंगा विलास ने बनारस के उन मल्लाहों की चिंता बढ़ा दी है जिनकी ज़िंदगी में पहले से ही हज़ारों झंझावत हैं।

गंगा तेरा पानी अमृत झर झर बहता जाये, हर भूले भटके इंसान को सच्ची राह दिखाएं।

कोई वजू करे तेरे जल से, कोई मूरत को नहलाए।

यह सब कुछ अब फिल्मी गानों की बातें बन कर रह जाएगा।

युगो युगो से पूजनीय जिस पतित पावनी मां गंगा के किनारे के शहरों ऋषिकेश और हरिद्वार में शराब और मांसाहार का विक्रय और सेवन भी नहीं हुआ करता है उसी मां गंगा की छाती पर अब देसी और विदेशी धनकुबेरों के मनोरंजन के लिए चलने वाले गंगा बिलास क्रूज पर सनातन संस्कृति की धार्मिक मान्यता और आस्थाओं की धज्जियां उड़ाई जायेंगी।सनातन संस्कृति पर हमला होने के बावजूद भी अपना मुंह सील लेने वाले धर्म और राजनीति के अंध भक्तों से कहना चाहूंगा कि आप से तो अच्छे इस देश के माइक्रो माइनॉरिटी जैन समाज ही है जिसने अपनी आस्था के केंद्र को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने पर राष्ट्रव्यापी आंदोलन खड़ा करके सरकारों को अपने आदेश वापस लेने पर मजबूर कर दिया।

बनारस की माँ गंगा में करीब आधा दर्जन क्रूज पहले से ही चलाए जा रहे थे और अब एक नए विशाल क्रूज को प्रधानमंत्री मोदी ने 13 जनवरी, 2023 को हरी झंडी दिखा दी हैं। बनारस के नाविक तीन तो पहले ही हो गये थे अब तो तेरहा भी हो रहे हैं। बताया जा रहा है कि इस क्रूज के संचालन से पर्यटन उद्योग को नई रफ्तार मिलेगी, लेकिन मल्लाहों को लगता है कि भाजपा सरकार उनकी आजीविका की नाव पूरी तरह डुबो देने पर तुली है। बनारस की गंगा में एक के बाद एक नए क्रूज उतारे जाने से नाराज़ दुर्गा कहते हैं, अलकनंदा क्रूज में एक यात्री को दो घंटे का सफर करने के लिए जीएसटी के साथ करीब 900 रुपये किराया देना पड़ता है, जबकि इतने ही समय के लिए सैलानियों से हम जब 50 रुपये मांगते हैं तो वो आनाकानी करते हैं।

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जब से क्रूज चलाए जा रहे हैं, तब से हमारा धंधा मंदा पड़ गया है। सरकारी संरक्षण में गंगा में चलाए जा रहे क्रूजों से मुकाबला करने के लिए बड़ी नाव बनाने के लिए नाविकों ने कर्ज लिया तभी लॉकडाउन आ गया। हम कर्ज के दलदल में बुरी तरह फंसते चले गए। हमारे ऊपर हर महीने हज़ारों रुपये सिर्फ ब्याज चढ़ रहा है। समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे अदा करें? हालात ये हैं कि हमने अपनी पत्नी को जो गहने बनवा रखे थो वो भी बिक गए। आप ही बताइए, आखिर हम कैसे अपनी ज़िंदगी चलाएंगे? हमारे जैसे तमाम मल्लाह तंगी के शिकार हैं। गंगा पुत्र आज गंगा पुत्र को ही क्यों उजाड़ रहा है समझ में यह नहीं आ रहा है कि खुद को गंगा का बेटा बताकर बनारस से चुनाव लड़ने आए मोदी जी आखिर मल्लाहों के दुश्मन क्यों बन गए हैं। हमारी कई पीढ़ियां नाव चलाते-चलाते मिट गईं और अब भाजपा सरकार हमें मिटाने पर तुल गई है। ऐसे में आखिर हम क्या खाएंगे, परिवार कैसे पालेंगे। जमीन जायदाद भी तो नहीं है कि खेती-बाड़ी ही कर लेते। बनारस में बहुत से नाविक दूसरे काम की तलाश कर रहे हैं।ऐसे में जो नाविक बचे हैं यही हाल रहा तो वह भी कब तक यह काम करेंगे? कई नाविक तो यह भी कह रहे हैं कि जब सरकार हमारा धंधा छीन लेगी तो हमें काम की तलाश में शहर छोड़ना ही पड़ेगा। आखिर बिना कमाई के कब तक कोई खाएगा। यहां कोई दूसरा काम भी तो नहीं है।

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प्रधानमंत्री मोदी काशी के कायाकल्प के लिए जो ड्रीम प्रोजेक्ट तैयार किया है उसमें गंगा विलास क्रूज काफी अहम है। इससे बनारस में पर्यटन को नया आयाम मिलेगा। गंगा विलास क्रूज पर 51 दिनों की यात्रा के दौरान सैलानी पटना, कोलकाता, कारीरंगा समेत 50 पर्यटन स्थलों का दर्शन कर सकेंगे। गंगा विलास क्रूज कुल 27 नदी प्रोजेक्ट से होकर गुजरेगा।गंगा विलास क्रूज दुनिया का सबसे लंबा रिवर क्रूज है जिसके अंदर ‘फाइव स्टार होटल’ जैसी सुविधाएं हैं। दुनिया के सबसे लंबे रिवर क्रूज पर एक दिन का खर्च करीब 25 हजार रुपये है। भारतीयों और विदेशियों के लिए टिकट की कीमत में कोई अंतर नहीं रखा गया है। पूरे 51 दिनों की यात्रा पर आपको लगभग साढ़े 12 लाख रुपये खर्च करने होंगे।गंगा विलास के टिकट की कीमत को लेकर शिपिंग और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने जानकारी दी है कि इस पर 1 दिन का खर्च 24,692.25 रुपये या 300 डॉलर होगा। पूरे 51 दिनों की यात्रा पर आपको लगभग 12.59 लाख रुपये या 1,53,000 डॉलर से ज्यादा खर्च होंगे। गंगा विलास क्रूज के लिए बुकिंग की सुविधा अब तक नहीं खुली है। अभी यह निश्चित नहीं है कि गंगा विलास की सभी बुकिंग का प्रबंधन कौन करेगा। सूत्रों के अनुसार पर्यटक गंगा विलास को अंतरा लक्ज़री रिवर क्रूज़ वेबसाइट के माध्यम से बुक कर सकते हैं।आप Antara Luxury River Cruises की ऑफिशियल वेबसाइट के माध्यम से गंगा विलास क्रूज के लिए टिकट बुक कर सकते हैं।

गंगा पर अधिकार चाहते हैं मल्लाह बनारस का मल्लाह समुदाय यह मानता रहा है कि गंगा और उससे जुड़े पेशे पर उसका पहला अधिकार है। यह समुदाय पीढ़ी दर पीढ़ी गंगा में नाव चलाना, मछली मारना, गोताखोरी करना और बालू निकालने का काम करता रहा है। माझी समाज के लोग खासतौर पर इन्हीं कामों में पारंगत होते हैं, लेकिन कुछ सालों से सरकार और पैसे वाले लोगों का गंगा में हस्तक्षेप तेजी से बढ़ा है। बेकारी का आलम यह है कि बहुत से मल्लाह अपने पारंपरिक पेशे को छोड़कर शहर में निर्माणाधीन इमारतों में ईंटा-गारा ढोने के लिए विवश हैं। गंगा घाटों पर बहुत से नाविक मिल जाएंगे जो बोहनी (पहली कमाई) तक के लिए तरसते नज़र आते हैं। गंगा में नौकायन कराने वाले गोकुल निषाद बचपन से चप्पू चलाते रहे हैं। लाकडाउन के बाद उन्हें अपनी नाव बेचनी पड़ी। लाचारी में अब उन्हें एक सेठ की दुकान पर काम करना पड़ रहा है। दुकान में गोकुल का मन भले ही नहीं लगता, लेकिन पेट की आग उन्हें गंगा में घाटों की तरफ जाने से रोक देती है। इसके बावजूद वो छुट्टी के दिनों में घाटों पर पहुंच जाते हैं। वह कहते हैं, शाम के समय जब धनकुबेरों की लग्ज़री क्रूजों में रंग-बिरंगी बत्तियां जलती हैं तो हमारे दिल जलते हैं।

गंगा घाटों पर पसरे सन्नाटे और सैकड़ों की तादाद में ठांव से बंधी नावें हमारे समुदाय के बेकारी की कहानी बयां कर रही होती हैं। बनारस के मल्लाहों से बात करने पर साफ तौर से नए-नए नियमों के प्रति इस समाज की नाराज़गी नज़र आती है। लगता है कि यह समुदाय पिछले कुछ सालों से अपने पारंपरिक पेशे को लेकर जद्दोजहद कर रहा है। जो समुदाय बिना किसी बंदिश के सैकड़ों सालों से गंगा से अपना जीवनयापन कर रहा था। मौजूदा भाजपा सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर आए दिन उनपर नए-नए नियम थोपती जा रही है और मल्लाह समुदाय को उन नियमों का पालन भी करना पड़ रहा है। आज मल्लाह समुदाय का जीवन यापन कर पाना दुर्लभ हो रहा है। तथाकथित गंगा पुत्र गंगा पुत्रों की जान लेने को आतुर दिख रहा है।

गंगा में जब कोई डूबता है तो बाहर निकालने के लिए हमें ही पानी में उतारा जाता है और वाहवाही जल पुलिस व एनडीआरएफ के जवान लूट लेते हैं। बनारस में सिर्फ पांच दर्जन गोताखोर हैं, वादे करने के बाद भी सरकार ने सुविधाएं नहीं दी।

डबल इंजन की सरकार हर साल नया खेल-तमाशा करती है। इस बार विदेशियों को लेकर एक नया हाईफाई क्रूज आया है, जिसका उद्घाटन मोदीजी करने वाले हैं। इसलिए गंगा घाटों के किनारे तामझाम शुरू हो गया है। रंग-बिरंगी लाइटों से घाटों को जगमग किया जा रहा है। वो रोशनी हमारे आंखों में चुभती है और दिलों में भी। बनारस में कोई यह बताने वाला नहीं है कि ठोस काम करने के बजाय फिजूलखर्ची पर पानी की तरह पैसा क्यों बहाया जा रहा है? वो हमारे बारे में क्यों नहीं सोचते?  गंगा रेत पर बसे लोगों ने कहा कि क्या रेत पर टेंट सिटी बसा देने से हमारे दिन पलट जाएंगे? हमारे बच्चों के पेट की ऐंठती हुई अतड़ियों का इलाज न लग्ज़री क्रूज हैं, न टेंट सिटी। हम इतना ज़रूर जानते हैं कि पीएम और सीएम जब-जब बनारस आते हैं तो पुलिस वाले डंडे फटकार कर हमारी नौकाएं बंद करा देते हैं। हमारे तीन छोटे बच्चे-विजय, हेमंत और विष्णु की ज़िंदगी कैसे चलेगी, इसकी चिंता किसी को नहीं है….?

आख़िर क्यों गंगापुत्र छीन रहे गंगापुत्रों का रोजगार