भाजपा के कदम पीछे हटने लगे

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कदम पीछे हटाने की रणनीति-

दिनेश कुमार गर्ग

7 वर्ष में पहली बार 3 कदम पीछे और वह भी तब जब किसान आन्दोलन लगभग दम तोड चुका है । प्रधानमंत्री मोदी को समझ पाना असम्भव सा है । यह कदम वापसी कौन सा सन्देश दे रही है शायद कोई ही समझ पाये फिर भी अनुमान लगाने में क्या हर्ज ?


1- पंजाब का इलेक्शन सामने है वहां के किसानों ने ही आन्दोलन में ज्यादा प्रतिभाग किया है , अब उन्ही से वोट पाना है । पंजाब में चन्नी सरकार कांग्रेस की वह सरकार है जो अमरिन्दर सिंह सरकार की तरह रीढ वाली नहीं है । कांग्रेस की कमान को संचालित करने वाले समूह में एक से बढकर एक महानुभाव हैं जो आतंकवादियों पर , पाकिस्तान पर और चीन पर मेहरबान रहते हैं पर बहुसंख्यक समाज को आतंकवादी बताने मानवता का शत्रु साबित करने में तुले रहते हैं । ऐसे कन्फ्यूज्ड नेताओं के हाथ की खिलौना सरकार किसी विषम परिस्थिति में सेना के प्रति , देश के प्रति कैसा रवैया अपनाएगी आप सब समझ सकते हैं। आप सभी जानते हैं कि इन लोगों की ही मूर्खताओं से सिख समुदाय का एक तबका खालिस्तान समर्थक पेड वर्कर्स की फालोइंग करने लगा है । यानी इन लोगों ने कश्मीर ही नहीं , पंजाब में भी अलगाववाद के बीज बो दिये हैं और अब इसका प्रमाण गत 26 जनवरी को लाल किले पर खालिस्तानी झण्डे का फहराना है। यानी पंजाब में अब समाज सन् 1971 वाला नहीं रह गया ।


2-कोई नया बडा काम लाइन में है और उसके विरुद्ध किसान आन्दोलन जैसा प्रतिरोध हो सकने का अनुमान लगाकर मोदी जी ने एक मोर्चे को ठंडा कर दिया है।


3 – भारत के उत्तर और उत्तर और उत्तर पश्चिम में चीन-पाकिस्तान की संयुक्त शक्ति के किसी संभावित प्रहार के पहले आन्तरिक असन्तोष के बिन्दुओं को हाशिये पर डालना और आन्तरिक व्यवस्था बनाये रखना । पिछले सात वर्षों मे मोदी को समझ में आ गया है कि भारत के अधिकांश राजनीतिक दल राष्ट्रीयता की विचारधारा से बहुत दूर परिवारवाद,वंशवाद और अन्य संकीर्ण राजनीतिक लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्ध रहने लगे हैं , उनमें भारत के दूरगामी हितों की राजनीतिक दृष्टि नहीं है । मूर्खों और उच्छृखलों की सभा में सभापतित्व और नेतृत्व निर्वाह में कदम पीछे हटाना ही जरूरी हो जाता है ।


4 – भारत में केवल निजी स्वार्थ के लिए जीने वाले लोगों संगठनों की भरमार है । वे इतने मूर्ख और उच्छृंखल हैं कि जिस डाल पर बैठे उसी को काटने में लग जाने का उनका अब तक का इतिहास रहा है । 4- चीन-पाकिस्तान से भी बडा कोई भारी रिस्क निकट भविष्य में होने का अनुमान कर दाड़ी वाले अनुभवी प्रधानमंत्री ने असन्तोष को फैलाने और लम्बे अर्से तक जीवित रखने की सामर्थ्य दिखाने वाले आन्दोलनजीवियों को बिना औजार करने की रणनीतिक बनाई हो ।


5 – मोदी जी ने कदम पीछे हटने के साथ एक पांसा और फेंका है – किसानों के हित के लिए नयी व्यवस्था बनाने के लिए एक समिति का गठन । यह इसलिए की आन्दोलनजीवियों को समिति की बहसों में उलझाकर उन्हें सामाजिक- राजनीतिक रूप से एक्सपोज करना । क्योंकि जब भी आन्दोलनजीवी सुझाव देंगे वे सुझाव राष्ट्र व्यापी बहस का विषय बनेंगे यानी वही बात जिससे आन्दोलन समर्थक राजनीतिक दल आज तक बचते आये हैं।


जो भी हो 2022 का साल बडा उथल-पुथल वाला होने जा रहा है । मोदीजी ने अपने स्वभाव के विरुद्ध काम किया है तो अवश्य कोई बडी बात होगी।आज कृषि कानून पर झुके हैं, कल पुरानी पेंशन पर झुकेंगे, दुनिया झुकती है, बस झुकाने वाला चाहिए।
जय जवान जय किसान