न झुके न टूटे,मोदी पर भारी पड़े किसान

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कुछ याद उन्हें भी कर लो, जो लौट के घर ना आए,1947 की तरह यह जीत भी हमें कई कुर्बानियां दे कर हासिल हुई है।एक अहंकारी इंसान ने 700 से ज़्यादा अन्नदाताओं को अपने घर से दूर, सड़कों पर मरने को मजबूर किया,और हत्यायें की गाडी़ तले रौंदा लासों की ढेर लागाकर इंतजार करता रहा चुनावी सुनहरे मौके का जब काले कानूनों को वापस लेना हुआ।जनता जनार्दन माफ नही करेगी मौत के सौदागरों को।

जीता किसान हारा अभिमान

इतिहास इस बात का गवाह है कि किसान आंदोलन में किसानों की हमेशा जीत होती रही है। इतिहास में ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता कि किसान आंदोलन एक वर्ष तक शांतिपूर्वक बिना टूटे, बिना झुके, तमाम बाधाओं को तोड़ते हुए जारी रहा हो। जिसका परिणाम बहुत ही लोकप्रिय एवं ताकतवर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को झुकना पड़ा। 1 वर्ष से चल रहे आंदोलन को लेकर अगर हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित भाजपा के नेताओं का बयान देखें जिसमें –

आन्दोलनजीवी परजीवी की तरह होते हैं- प्रधानमंत्री मोदी
भीड़ इकट्ठा होने से कानून वापस नहीं होते- नरेन्द्र तोमर कृषि मंत्री
माओवादी विचारधारा से प्रेरित लोगों के हाथों में चला गया है किसान आन्दोलन- पीयूष गोयल
तस्वीरों में कई लोग किसान नहीं लग रहे हैं- वी के सिंह
आन्दोलन के पीछे पाकिस्तान और चीन का हाथ – रावसाहेब दानवे
आंदोलनकारी टुकड़े टुकड़े गैंग के हैं – मनोज तिवारी
इन किसानों को यही मरना था- रतनलाल भाजपा सांसद
आन्दोलन के पीछे पाकिस्तान का हाथ- जेपी दलाल हरियाणा कृषि मंत्री
कायर है आत्महत्या करने वाले किसान- बीसी पाटिल कर्नाटक कृषि मंत्री

इन बयानों और आरोपों के अलावा किसान आंदोलन को तोड़ने के लिए सरकार ने हर तरीके के हथकंडे अपनाये। किसानों को देशद्रोही तक कहा गया। उन पर दर्जनों मुक़दमे कायम किये गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई सभाओं में आंदोलन को चंद किसानों का आंदोलन कह कर मखौल उड़ाया। लेकिन इन तमाम आरोपों और 750 किसानों के आंदोलन के दौरान हुए निधन के बाद भी बहादुर किसान नहीं डिगे।

यही नहीं केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के बेटे ने लखीमपुर में गाड़ियों से किसानों को रौंद डाला। कहने का तात्पर्य यह है कि किसानों के जिस दृढ़ता, बहादुरी और आत्मबल के साथ शांतिपूर्वक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसे ताकतवर नेता को झुकने के लिए मजबूर किया वह कबीले तारीफ है। आखिर अचानक प्रधानमंत्री को कानून वापस लेने की घोषणा क्यों करनी पड़ी। इनके पीछे 5 राज्यों में हो रहे चुनाव या गुरुनानक जयंती के अवसर पर ह्रदय परिवर्तन हो गया। जो भी वोट का डर हो या ह्रदय परिवर्तन, किसान और सरकार के बीच के टकराहट को दूर करने का अच्छा सन्देश है। यह माना जा रहा है कि मोदी को तथ्यों की जानकारी नहीं थी या फिर बहुमत के अहंकार में डूबे थे। जो भी हो एक वर्ष के दौरान किसानों ने जो त्रासदी झेली है। कोरोना संकट में बड़ी सूझ बुझ और साहस के साथ मुकाबला करते हुए सत्ता में बैठे अहंकारी नेताओं को अपनी ताकत का एहसास कराया उसकी भूरी-भूरी प्रशंसा करनी चाहिए।

26 नवंबर 2020 से शुरू हुए सत्याग्रह किसान आंदोलन प्रधानमंत्री के कानून वापसी घोषणा के बाद भी अभी ख़त्म नहीं हुआ है क्योकि प्रधानमंत्री के वादों पर किसानों को भरोसा नहीं रहा। प्रधानमंत्री ने बड़े ही बेबाकी के साथ देशवासियों से क्षमा मांगते हुए कानून वापस लेने की घोषणा की इसका प्रभाव किसान नेताओं पर नहीं पड़ा। किसान का भरोसा मोदी से टूट चूका है। वह तब तक नहीं हटेंगे तब तक कानून वापसी का कागज़ उनके हाथों में नहीं मिल जाता। मोदी ने अपने सम्बोधन में किसान हितों में किये गए कार्यों को गिनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा, ‘देश में 100 में से 80 किसान छोटे किसान हैं, उनकी संख्या 10 करोड़ से ज्यादा है. देश के छोटे किसानों की चुनौतियों को दूर करने के लिए, हमने बीज, बीमा, बाजार और बचत, इन सभी पर चौतरफा काम किया. किसानों के हित में तीन कृषि कानून लाए गए थे. ऐसे कृषि कानूनों की मांग किसान संगठन और जानकार लंबे समय से कर रहे थे. इन कानूनों को लेकर संसद में चर्चा हुई, उसके बाद ही इन्हें लाया गया. देश के कोने-कोने में किसानों से राय ली गई और उन्होंने इसका समर्थन किया. सरकार नेक नीयत से यह तीन कृषि कानून लेकर आयी थी, हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाए. आज देशवासियों से क्षमा मांगते हुए कहना चाहता हूं, शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी रही होगी, जिसके कारण हम कुछ किसानों को समझा नहीं पाए. आज मैं पूरे देश को यह बताने आया हूं कि हमने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है। लेकिन इन भावनात्मक अपील के बाद भी प्रधानमंत्री के पुराने वादों को देखते हुए किसान भरोसा नहीं कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने भरोसा दिलाने के लिए 29 नवंबर से शुरू हो रहे सत्र में कानून को संवैधानिक दायरे में लेकर वापस लेने की भी घोषणा की है। मोदी ने किसान के मांगों को लेकर एक उच्च स्तरीय कमेटी बनाने का निर्णय भी किया है। इस कमेटी में केंद्र एवं प्रदेश सरकार, कृषि वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री और किसान नेता भी शामिल होंगे। इन तमाम वादों एवं घोषणाओं के बाद किसानों का आंदोलन से वापस न जाना प्रधानमंत्री मोदी के सामने बड़ी समस्या बनी हुई है। आने वाला समय बताएगा कि मोदी किस तरह, कैसे ऐतिहासिक आंदोलन को चुनावी गणित में अपने पक्ष में करने में सफल होते है या विपक्ष किसान वोट बैंक के माध्यम से शिकस्त देते हैं।