जाति नहीं जाती।
प्रेम का प्यासा मानव मन है, जाति घृणा उपजाती है।
मेरे देश की सारी जनता, जाति पर इतराती है।
मानवता पर इस देश में, ग्रहण सी लग जाती है।
क्योंकि इस देश से जाति नहीं जाती है।
भारतीयता के नाम पर गर्व मुझे होता है।
इस बात को कहने में, एक शूल सा चुभता है।
भारत की भद्दी परम्पराओं पर, शर्म मुझें आती है।
कयोकि इस देश से जाति नहीं जाती है, राम-कृष्ण, रहमान यहाँ हैं, नानक हैं क्रिस्तान यहाँ हैं, महावीर,बुद्ध भगवान यहाँ हैं।
इन सबसे साम्प्रदायिकता, ताकत पाती है।
भारत से जाति नहीं जाती है।
सीमा पर मर मिटने वाला जवान है, हाड़-तोड़ श्रमजीवी, श्रमिक और किसान हैं।
इन सबके भी अपने जाति धर्म और भगवान हैं।
अमर्यादित इनकी सोच में, शमशान और कब्रिस्तान हैं।
इससे ही नर-नारी के चेहरों पर, पीड़ा उमड़ आती है।
भारत से जाति नहीं जाती हैं,कहीं भूख और कंगाली है, कहीं रोज, ईद और दीवाली है।
आदमियत की नीयत पर, पुती हुई क्यों काली है।
यही बात समझ में नहीं आती है, भारत में जाति नहीं जाती है।
आजादी तो मिल गयी, प्रजातंत्र भी आया है। करनी- कथनी में फर्क न हों, ऐसा संविधान भी पाया है, आदमी को जिसमें केवल आदमी बताया है।
संवैधानिक भाषा, फिर धर्म से दब जाती है।
भारत से जाति नहीं जाती है।
धर्म और जाति ही वैर के कारण है।
धर्म जातियों से दूरी ही, मात्र इसका निवारण है।
यह बात क्योंकर समझ में नहीं आती, इसी कारण भारत से जाति नहीं जाती।
हँसना-रोना जाति का, इस देश को भाता है।
जाति-पाति और भेदभाव का, इस देश से पुरना नाता है।
सारी समस्याएँ छोड़कर जो, जाति के गीत गाता है, वही इस देश की सत्ता को हथियाता है।
इस बात पर कभी लज्जा नहीं आती है, इसलिए भारत से जाति नहीं जाती है।