क्या केशव प्रसाद मौर्य सिराथू में फंस गये..?

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भारतीय जनता पार्टी से प्रत्याशी केशव प्रसाद मौर्य सिराथू में फंस गये हैं, हार निश्चित लग रही है।दरअसल सिराथू से शीतला प्रसाद पटेल वर्तमान में भाजपा से विधायक है, शीतला प्रसाद पटेल का टिकट स्टूलमंत्री के चुनाव लड़ने के चलते काट दिया गया है। इस वजह से पटेल बिरादरी में भारी रोष व्याप्त है, सिराथू में पटेल और कुर्मियों की भारी संख्या है।इसीलिए समाजवादी पार्टी ने पल्लवी पटेल को सिराथू से टिकट देकर पटेल बिरादरी में सेंध लगाने का प्रयास किया है, पल्लवी पटेल अपना दल के संस्थापक स्व• सोने लाल पटेल जी की बड़ी बेटी हैं।

पटेल और कुर्मी वोटरों में अपना दल पार्टी की पैठ है और इलाहाबाद की पश्चिमी, चायल, सिराथू और नवाबगंज सोनेलाल पटेल का कर्मभूमि रही है यहाँ केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की बजाय स्व0 सोनेलाल पटेल की पत्नी कृष्णा पटेल जी के प्रति सहानुभूति है।ध्यान दीजिए कि मां कृष्णा पटेल की बेटी और अनुप्रिया पटेल की बड़ी बहन पल्लवी पटेल के पास अपना दल (कमेरावादी) की कमान है, यही सोनेलाल पटेल की असली विरासत है।वही पल्लवी अब अखिलेश यादव के लिए स्टूलमंत्री को हराएँगी, जिनको हराने का अखिलेश यादव जी ने खुला ऐलान कर दिया है।

सिराथू में अगर जातीय समीकरणों की बात की जाए तो यहां 3 लाख 80 हजार 839 वोटर हैं. इनमे से 19 फीसदी सामान्य जाति के, 33 फीसदी दलित, 13 फीसदी मुस्लिम और करीब 34 फीसदी पिछड़े वर्ग से हैं। पिछड़ों में पटेल वोटर यहां निर्णायक भूमिका में होते हैं।इस चुनाव में यहां क्षेत्र का पिछड़ापन और विकास ही सबसे बड़ा मुद्दा है। यहां आज भी इतना पिछड़ापन है कि लोगों को बुनियादी जरूरतों के लिए जूझना पड़ता है। इसके साथ ही यहां स्थानीय और बाहरी उम्मीदवार का मुद्दा भी गरमा सकता है। सिराथू में पिछले कुछ चुनाव में जाति के साथ ही धार्मिक आधार पर भी वोटों का ध्रुवीकरण देखने को मिला है।समाजवादी पार्टी यहां जातियों की गोलबंदी के सहारे ही मैदान मारने की फिराक में है,हालांकि केशव के बड़े कद और उनके द्वारा कराए गए विकास के कामों के आगे जातीय गोलबंदी कितनी कामयाब होगी, यह कह पाना मुश्किल होगा।

कौशाम्बी की सिराथू सीट 2012 के चुनाव से पहले अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व थी, यहां 1993 से 2007 तक बीएसपी ने लगातार चार बार जीत दर्ज की थी। 2012 के चुनाव से पहले यहां भाजपा और सपा का खाता भी नहीं खुला था, दस साल पहले नए परिसीमन में यह सीट सामान्य हो गई। इसके बाद भाजपा के टिकट पर केशव प्रसाद मौर्य ने दांव आजमाया। केशव प्रसाद मौर्य ने न सिर्फ किसी चुनाव में पहली जीत हासिल की थी, बल्कि सिराथू में पहली बार कमल भी खिलाया था।उन्होंने जिन हालात में सपा और बसपा को मात देकर इतिहास रचा था, वह उनके सियासी कैरियर में मील का पत्थर साबित हुआ। साल 2012 में यहां से विधायक बनने के बाद से ही कामयाबी केशव के कदम चूमने लगी।