किसानों ने भाजपा सरकार को सत्ता से बाहर करने का फैसला ले लिया-दीपेंद्र सिंह हुड्डा

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  • खेती की लागत आसमान छू रही है, महंगाई दर के मुकाबले MSP वृद्धि न के बराबर, यूपी के किसान औने-पौने भाव में फसल बेचने को मजबूर ।
  • यूपी में किसानों की हालत राष्ट्रीय चिंता का विषय, न फसल का सही दाम मिल रहा न मान-सम्मान ।
  • साढ़े चार साल में गन्ने का भाव सिर्फ 25 रुपये बढ़ाकर भाजपा सरकार ने साबित किया कि उसे  किसानों की कोई परवाह नहीं ।
  • कांग्रेस पार्टी मांग करती है कि गन्ने का भाव कम से कम 400 रुपये प्रति क्विंटल हो ।
  • कोरोनासे उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में, यहाँ कोरोना से भाजपा सरकार के 22,890 मौतों के दावे से कहीं अधिक तादाद में हुई मौतें  ।
  • मुंद्राबंदरगाह पर पकड़ी गई 3,000 किलो हेरोइनड्रग्स, जांच से खुलासा हुआ कि इससे पहले 1.75 लाख करोड़ रुपये की 25,000 किलोग्राम हेरोइनड्रग्सकी तस्करी की गई थी, सरकार को जवाब देना होगा ।

अशोक सिंह

लखनऊ। राज्यसभा सांसद और कांग्रेस कार्यसमिति सदस्य दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि उत्तर प्रदेश के किसानों ने भारतीय जनता पार्टी को हराने का पूरा मन बना लिया है, क्योंकि सत्तारूढ़ दल अपने वादे निभाने में पूर्ण रूप से नाकाम रहा है। उन्होंने कहा कि साढ़े चार साल में गन्ने का भाव सिर्फ 25 रुपये बढ़ाने का सरकारी फैसला स्पष्ट दर्शाता है कि यह सरकार किसानों के कल्याण को लेकर कितनी गंभीर है।उन्होंने कहा कि किसानों को न तो उनकी उपज का सही दाम मिल रहा है न ही उनको वह मान-सम्मान मिल रहा है जिसके वे हकदार हैं। देश भर के किसान पिछले 307 दिनों से 3 नये कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर आन्दोलनकर रहे हैं। इस दौरान धरनों पर 600 से ज्यादा किसानों की जान चली गई लेकिन भाजपा सरकार किसानों से बात करने, उनकी बात सुनने तक को राजी नहीं है जो दिखाता है कि बीजेपी सरकार का असली एजेंडा क्या है!

किसानों की बदतर हालत बयां करते हुए उन्होंने कहा कि इस सरकार की गलत नीतियों का खामियाजा सबसे ज्यादा किसानों को उठाना पड़ा है। 2014 के बाद से किसानों पर कर्ज बढ़कर लगभग दोगुना हो गया है। सरकार ने खुद संसद में माना है कि 31 मार्च, 2014 को किसानों पर कुल बकाया कर्ज9.64 लाख करोड़ रुपये था जो 31 मार्च, 2021 तक बढ़कर 16.84 लाख करोड़ रुपये हो चुका है।

“सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, लेकिन किसानों पर कर्ज दोगुना हो गया है। अगर सरकार किसानों की आय दोगुनी करने को लेकर गंभीर होती तो उसे एमएसपी25 से 30 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी करनी चाहिए थी लेकिन वास्तविक वृद्धि केवल 2% थी। यूपीए सरकार के दौरान फसलों का एमएसपी औसतन 12-23% बढ़ा (धान 13%, गेहूं 12%, अरहर 22%, मूंग23%) जबकि वर्तमान सरकार के दौरान यह मुद्रास्फीतिकी दर से भी नीचे रही है, जिससे किसानों की वास्तविक आय मेंगिरावट आई है,”उन्होंने कहा।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा कर्ज माफी से किसानों को कोई राहत नहीं मिली, क्योंकि उत्तर प्रदेश के किसानों पर ही कुल बकाया कृषि ऋण 2014 में 90,460 करोड़ रुपये से बढ़कर 2021 में 1,55,743 करोड़ रुपये हो चुका है। पीएम किसान योजना भी फेल साबित हुई है और किसानों की परेशानियों को कम कर पाने में विफल रही है। इसके तहत किसान परिवारों को मिलने वाले महज500 रुपये प्रति माह से इस भीषण महंगाई में बुनियादी घरेलू खर्चों भी पूरे नहीं हो सकते।

दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में खेती की लागत में भारी इजाफा हुआ है, जबकि किसानों को अपनी उपज का सही दाम पाने तक के लिये घोर संघर्ष करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि “2015 में डीजल की कीमत 46.12 रुपये प्रति लीटर थी, लेकिन आज यह लगभग दोगुनी होकर 90 रुपये प्रति लीटर हो गई है और लगभग हर प्रकार की लागत में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, लेकिन सरकार ने किसानों की बढ़ी लागत की कोई भरपाई करने से साफ़ इनकार कर दिया है।”

उन्होंने आगे कहा कि “सरकार के खुद के आंकड़े बताते हैं कि महंगाई के मुकाबले खेती से किसान की आय में 9% की गिरावट आयी है। किसान अपना परिवारपालने और बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए मजदूरी या कमाई के अन्य साधन तलाशने को मजबूर है। प्रतिशतवृद्धि के हिसाब से देखा जाए तो रबी सीजन 2022-23 के लिए गेहूं की MSP में सिर्फ 2% से कुछ अधिक वृद्धि हुई। उन्होंने कहा कि महंगाई दर से कम दर पर अगर एमएसपी वृद्धि होती है तो किसान की आमदनी दोगुनी होने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।

कांग्रेस सांसद ने कहा कि साढ़े चार साल में गन्ने का भाव सिर्फ 25 रुपये बढ़ाने का राज्य सरकार का फैसला किसानों के साथ क्रूर और भद्दा मजाक है। “ऐसा सिर्फ चुनावों को ध्यान में रखते हुए किया गया है और सालाना वृद्धि के तौर पर देखें तो यह केवल 1.6%है। अगर हम 5% महंगाई वृद्धि को ध्यान में रखें तो भी गन्ने का न्यूनतम भाव 414 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए था। कांग्रेस पार्टी मांग करती है कि गन्ने का भाव बढ़ाकर कम से कम 400 रुपये प्रति क्विंटल किया जाए, इसे महंगाई दर से जोड़ा जाए ताकि किसान कम से कम गुजर-बसर तो कर सकें। उन्होंने कहा कि हम सरकार से केवल इतना कहना चाहते हैं कि जब उन्होंने किसानों से वोट माँगाथा तब जो वादा किया,उसे पूरा करे।

राज्य में आवारा मवेशियों की समस्या उठाते हुए दीपेंद्रहुड्डा ने कहा कि इस समस्या से राज्य का हर किसान प्रभावित है, क्योंकि आवारा मवेशीखेतों में खड़ी फसलों के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। उन्होंने कहा कि “2012 और 2019 के बीच, आवारा मवेशियों की संख्या में 17% की वृद्धि देखी गई है और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। 2019 में इनकी संख्या 10 लाख आंकी गई थी और यह भी तब से अब तक काफी बढ़ चुकी है। आवारा मवेशी उत्तर प्रदेश में सरकार की कार्यप्रणाली का स्पष्ट आइना हैं।”

उन्होंने कहा कि “राज्य सरकार ने गायों के नाम पर कई सौ करोड़ रुपये इकठ्ठाकिये हैं लेकिन हर कोई इस बात को जनता है कि यह योजना नाकाम है। सरकार किसानों से प्रति गाय प्रति दिन 30 रुपये का भुगतान मांगती है,जाहिर है ये पर्याप्त नहीं है। सरकार का दावा है कि सभी गायों को आश्रयस्थलों में रखा गया है, लेकिन राज्य में रहने वाला हर नागरिक असलियत से वाकिफ है।”उन्होंने यह भी जोड़ा कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिये तुरंत जरूरी कदम उठाए कि आवारा मवेशियों से किसानों की फसलों की सुरक्षा हो और सड़क दुर्घटनाओं में गायों की मौत न हो।

दीपेंद्र हुड्डा जो कांग्रेस कार्यसमिति सदस्य भी हैं, ने उन सभी परिवारों को अधिक से अधिक मुआवजा दिए जाने की मांग कीजिन्होंने कोरोनामहामारी के दौरान अपने प्रियजनोंको खो दिया।उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि हर परिवार को मुआवजा मिले। “सरकार ने प्रति परिवार सिर्फ 50,000 रुपये के मुआवजे की घोषणा की है, जो न के बराबर है, इसे हर हाल में बढ़ाया जाना चाहिए। सबसे बड़ी समस्या यह है कि राज्य सरकार केवल 22,890 लोगों की कोरोना महामारी के दौरान जान गंवाने का दावा कर रही है। जबकि, असल आंकड़ा कहीं ज्यादा हो सकता है।उन्होंने सवाल किया कि ऐसे में उन परिवारों का क्या होगा, जो सरकार के रिकॉर्ड में नहीं हैं।क्या उनको कोई मदद मिलेगी? ”

सांसद दीपेन्द्र ने कहा कि “सरकार का दावा है कि कोरोना से लगभग 23,000 लोगों की मौत हुई है और इनमें से करीब 2,000 सरकारी अधिकारी/कर्मचारी थे, जो चुनाव ड्यूटी पर थे। हम सभी को गंगा और राज्य की अन्य नदियों के तट पर दफन अपने अनेकों भाई-बहनों के शवों की भयावह तस्वीरें आज भी याद हैं। कुछ विशेषज्ञों ने अपनी स्टडी में कहा है कि कोरोना से हुई मौतों के 100 मामलों में से केवल एक ही दर्ज किया गया था। उन्होंने मांग करी कि राज्य सरकार उन सभी परिवारों की पहचान करने के लिए विस्तृत सर्वेक्षण कराए जिनके यहाँ कोरोना से कोई मौत हुई थी, ताकि उनके परिवारों को मुआवजा दिया जा सके।

दीपेंद्र हुड्डा ने गुजरात में अडानी के मालिकानेवाले मुंद्रा बंदरगाह से 17 और 19 सितंबर को दो कंटेनरों से 2,988 किलोग्राम हेरोइनड्रग्स की भारी खेप बरामद होने का मुद्दा भी उठाया और कहा कि यह न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में कहीं भी बरामद हुई सबसे बड़ी ड्रग्स की खेप है। उन्होंने कहा कि “सरकार ने अब तक केवल छोटी मछलियों को गिरफ्तार किया है, जिन्होंने बताया कि उन्हें इसके एवज में केवल 10-12 लाख रुपये मिले, जबकि अकेले इस हेरोइनखेप की कीमत लगभग 21,000 करोड़ रुपये है। इस मामले में अभी भी कई सवाल हैं जिनका जवाब मिलना बाकी है। जैसे कि ड्रग्स की इतनी बड़ी खेप गुजरात के रास्ते क्यों भेजी गईं जबकि मंगवाने वाली कंपनी विजयवाड़ा की थी।

डेक्कनक्रॉनिकलके हवाले से पता चला है कि आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ाकी आशी ट्रेडिंग कंपनी को इस साल जून में 25 टन “सेमी कट टैल्कम पाउडर ब्लॉक” मिले थे, जो डीआरआई द्वारा जब्त की गई सामग्री जैसा ही था। इन्हें नयी दिल्ली के एक व्यापारी कुलदीप सिंह तक पहुंचाया गया था, लेकिन किसी भी टोलगेटसे इसे ले जाने वाले ट्रकों की आवाजाही का कोई रिकॉर्ड नहीं था।[1]

कांग्रेस पार्टी सरकार से निम्नलिखित सवालों के जवाब मांगती है –

1.       गुजरात तट नशीले पदार्थों की तस्करी का सबसे पसंदीदा रास्ता क्यों बन गया है?

2.       क्या ये खुलासे देश में हो रही बड़ी ड्रग तस्करी की एक झलक भर तो नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं कि ‘धारणा प्रबंधन’ (‘perception management’) के लिएड्रग्स की 10 खेपों को छोड़ दिया गया और केवल एक को ये दिखाने के लिए पकड़ा गया कि एजेंसियां मुस्तैदी से अपना काम कर रही हैं?

3.       जब गुजरात के बंदरगाहों के रास्ते भारत में ड्रग्स की तस्करी का पैटर्न रहा है, तो सरकार और NCB सुधारात्मक और पुख्ता उपाय करने में नाकाम क्यों रहे?

4.       भारत सरकार, गुजरात सरकार और नारकोटिक्सकंट्रोलब्यूरो की नाक के नीचे भारत में ऐसा ड्रगसिंडिकेट कैसे चल रहा है? अभी तक इसका खुलासा क्यों नहीं हुआ?

5.       इस देश में ड्रग्सकी खरीद-बिक्री नेटवर्क चलाने वाले ये ऑपरेटर, आयातक और व्यक्ति / सिंडिकेट कौन हैं?

6.       18 महीने बीतने के बावजूद NCB में अभी तक पूर्णकालिक महानिदेशक क्यों नहीं नियुक्त हुआ?

7.       राजनीतिक फायदे के लिए एनसीबी का दुरुपयोग क्यों हो रहा है जबकि अंतर्राष्ट्रीय ड्रगमाफिया ने देश में ड्रग्स खरीद-बिक्री का बड़ा नेटवर्क स्थापित कर लिया है?

8.       क्या इस सरकार को भारत के युवाओं की भलाई और भविष्य की कोई परवाह नहीं है?

9.       भारतीय समुद्र तट के साथ लगे सभी बंदरगाहों में से गुजरात ही मादक पदार्थों के तस्करों का पसंदीदा मार्ग क्यों है? इसकी रोकथाम के लिए सरकार ने क्या किया है?

10.    वैश्विक ड्रग्ससिंडिकेट और उसके सहयोगियों को देश के भीतर बेनकाब करने के लिए व्यापक स्तर पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई?

11.    अफगानिस्तानकेचिंताजनक घटनाक्रमों को देखते हुएभारत में नशीले पदार्थों, जाली मुद्रा और अवैध हथियारों की तस्करी से निपटने के लिए सरकार की क्या रणनीति है?