अच्छे कर्मों से ही बनता है अच्छा भविष्य-धर्मवीर प्रजापति

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अच्छे कर्मों से ही बनता है अच्छा भविष्य-धर्मवीर प्रजापति
अच्छे कर्मों से ही बनता है अच्छा भविष्य-धर्मवीर प्रजापति

धर्मवीर प्रजापति ने कानपुर जिला जेल में नवनिर्मित बाल उद्यान का उद्घाटन किया। कारागार मंत्री ने जिला कारागार,कानपुर नगर का निरीक्षण तथा बंदियों के साथ किया संवाद। अच्छे कर्मों से ही हमारा अच्छा भविष्य बनता है। अच्छे कर्मों से ही बनता है अच्छा भविष्य-धर्मवीर प्रजापति

राजू यादव

उत्तर प्रदेश के कारागार एवं होमगार्ड्स राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धर्मवीर प्रजापति ने महिला बंदियों के साथ रह रहे बच्चों के मानसिक एवं शारीरिक विकास हेतु कारागार में नवनिर्मित बाल उद्यान का उद्घाटन किया । उन्होंने महिला बंदियों के साथ निवासित 11 बच्चों को खिलौने एवं बिस्कुट, टाफी, चाकलेट व फल इत्यादि वितरित किया । महिला बैरक के निरीक्षण के समय कारागार मंत्री ने महिला बंदियों द्वारा बनायी गयी सामग्री (जैसे- चुनरी, आसन, दीपक, मोमबत्ती इत्यादि)की प्रशंसा की।

श्री प्रजापति ने जिला कारागार, कानपुर नगर का निरीक्षण किया तथा बंदियों के साथ संवाद किया। उन्होंने कौशल विकास कार्यक्रम में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे बंदियों से वार्तालाप किया एवं उनके द्वारा निर्मित जूट बैग की प्रशंसा की । बंदी संवाद कार्यक्रम में उपस्थित बंदियों को सम्बोधित करते हुए उनके द्वारा कारागार में रह रहे बंदियों को अपराध के कारण होने वाली परेशानियों को रेखाकिंत करके यह समझाने की चेष्ठा की गयी कि युवा अवस्था सम्भावनाओं की उम्र होती है, जिससे परिवार, प्रदेश एवं देश को अत्यधिक उम्मीदें होती है।इसलिए युवाओं को ऐसे कार्यों से सदैव दूर रहना चाहिये जिनकी वजह से उन्हें खुद को या उनके परिवार को परेशानियों का सामना न करना पड़े। उन्होंने कहा कि अच्छे कर्मों से ही हमारा अच्छा भविष्य बनता है तथा बुरे कर्म हमें बुरी स्थिति में ले जाते हैं।

कारागार मंत्री ने सभी बंदियों को भविष्य में कोई भी गलत कार्य न करने की शपथ भी दिलायी तथा कारागार में संचालित शिक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रमों एवं उद्योगों में अधिक से अधिक रूचि लेकर भाग लेने हेतु बंदियों को प्रेरित किया, ताकि समय का सही उपयोग हो सके तथा कारागार से छूटने के उपरान्त उनका पुनर्वास हो सके। मंत्री ने कारागार में बंदियों द्वारा संचालित उद्योग जैसे मोजा उद्योग, चुनरी उद्योग आदि का निरीक्षण किया तथा उक्त कार्यों की प्रशंसा की । कारागार में निरूद्ध ऐसे बंदी जिनसे मिलने उनका कोई परिजन नहीं आता है उन बंदियों को विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा प्रदत्त वस्त्र वितरित किये । उन्होंने कार्यक्रम के अन्त में कारागार में निरूद्ध समस्त बंदियों को समोसा एवं गुलाबजामुन वितरित किया। इस अवसर पर कारागार से चिकित्साधिकारी डॉ. समीर नारायण सिंह, जेलर अनिल कुमार पाण्डेय, राजेश कुमार, डिप्टी जेलर प्रशान्त उपाध्याय, कृष्ण मोहन चन्द्र, सॉयमा जलीसमौसमी राय एवं राजेश कुमार मौर्य उपस्थित रहे।

धर्मवीर प्रजापति कारागार एवं होमगार्ड्स राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार)

कर्म का फल,हमें हर पल मिलता रहता है, क्योंकि एक-एक सांसों में हमारे साथ जो घटना घटित हो रही है, वह हमारे कर्मों का परिणाम ही तो है। कर्म के कारण ही हम सांस ले पा रहे हैं। कर्म हमारी काया तो उसका फल हमारी परछाई है। दोनो सदा साथ-साथ ही रहते हैं। कर्म के कारण ही कोई आसानी से सांस ले पाता है तो कोई दमा में दम घुटता महसूस करता है। कर्म का फल हमको जागते,सोते,उठते,बैठते कभी भी भोगना ही पड़ता है। कर्म का कुछ फल तो तुरंत मिलता है तो, कुछ कर्मों के फल के लिए जन्मों जन्म इंतजार करना पड़ता है। सृष्टि में कोई भी व्यक्ति बिना कर्म किए नहीं रह सकता है। वह या तो विचारों के माध्यम से सक्रिय है अथवा क्रियाओं के माध्यम से या फिर कारण बन कर कर्म में योगदान कर रहा है। जीव-जंतु हों या मनुष्य, कोई भी अकर्मण्य नहीं है और न ही कभी रह सकता है। विद्वानों ने मुख्य रूप से तीन प्रकार के कर्म बताए हैं।जिनमें एक होता है क्रियमाण कर्म, जिसका फल इसी जीवन में तुरंत प्राप्त हो जाता है। दूसरा संचित कर्म होता है, जिसका फल बाद में मिलता है। तीसरा होता है प्रारब्ध। यदि विपरीत परिस्थितियों में भी लोग सुखी रहकर जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं तो इसका श्रेय उनके संचित कर्म को जाता है। जब रावण अपने जीवन में अत्यधिक शक्ति-शाली एवं सुखी था तब यह उसके संचित कर्म का परिणाम था। मगर उसी रावण के घर कोई दीया जलाने वाला तक नहीं रहा तो यह उसका प्रारब्ध था। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि ‘अपने विचारों पर नियंत्रण रखो, नहीं तो वे तुम्हारा कर्म बन जाएंगे और अपने कर्मो पर नियंत्रण रखो, नहीं तो वे तुम्हारा भाग्य बन जाएंगे।’संसार में तीन प्रकार के लोग होते है। एक भाग्यवादी जो मानते हैं कि सब कुछ पहले से ही नियत है इसलिए पुरुषार्थ करके भी क्या बदल जाएगा। दूसरे हैं पुरुषार्थवादी, जिन्हें लगता है कि भाग्य कुछ नहीं होता,कर्म ही सब कुछ होता है। तीसरे होते हैं परमार्थी जो परमार्थ अर्थात परमात्मा को ही सब कुछ मानते हुए लाभ-हानि में सम रहकर जीवन व्यतीत करते हैं। मनीषियों ने तीसरी श्रेणी के लोगों को उत्तम प्रवृत्ति का बताया है। ऐसे व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में आनंदमय अर्थात शांत भाव से जीवन-यापन करते हैं।

सेवा,दान,परोपकार जैसे पुण्य कर्म हमारे कर्मबंधनों को काटती है, इसलिए शास्त्रों में सत्कर्म करने पर जोर दिया गया है। क्योंकि अंततः हमारा उद्देश्य सभी कर्मबंधनों से मुक्त होना ही है और जब हम कर्म का सिद्धांत समझेंगे तभी इस चक्रव्यूह से बाहर आ पाएंगे। अच्छे कर्मों से ही बनता है अच्छा भविष्य-धर्मवीर प्रजापति