सुख-समृद्धि का प्रतीक है गोवर्धन पूजा

100
सुख-समृद्धि का प्रतीक है गोवर्धन पूजा
सुख-समृद्धि का प्रतीक है गोवर्धन पूजा

हमारे देश में दिवाली का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। दिवाली के एक दिन बाद गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी पूजा की जाती है। साथ ही सुख-समृद्धि का आशीष मांगा जाता है। मान्यता के अनुसार, गोबर से बनाया गया गोवर्धन घर की सभी समस्याओं का अंत करता है और यह सुख-समृद्धि का भी प्रतीक होता है।दिवाली के अगले दिन यानी की कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। वैसे तो गोवर्धन पूजा का पर्व मनाए जाने के पीछे कई कारण हैं, लेकिन गोवर्धन पूजा का इतिहास भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा है। इस साल 13 और 14 नवंबर दोनों दिन गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाएगा। सुख-समृद्धि का प्रतीक है गोवर्धन पूजा

जानें क्या है गोवर्धन पूजा की कहानी

पौराणिक कथा के अनुसार, द्वापर युग में देवराज इंद्र को एक बार खुद पर अभिमान हो गया था। भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र के अभिमान को चूर करने के लिए एक अद्भुत लीला रची। तभी से गोवर्धन पूजा की परंपरा शुरू हुई। एक दिन भगवान श्री कृष्ण ने देखा कि सभी बृजवासियों ने उत्तम पकवान बनाए और किसी की पूजा की तैयारी कर रहे थे। तब श्रीकृष्ण ने मां यशोदा से पूछा कि किसकी पूजा की तैयारी हो रही हैं। तब मां यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण को बताया कि इंद्रदेव के पूजा की तैयारी हो रही है। ताकि वर्षा अच्छी हो सके और फसलें अच्छी हों। उस दौरान देवराज इंद्र को प्रसन्न करने से लिए अन्नकूट का प्रसाद चढ़ाया जाता था।

मां यशोदा ने कहा कि इंद्र वर्षा कराते हैं जिससे अन्न पैदा होता है और उससे गायों को भी चारा मिलता है। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि इस तरह से इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा होनी चाहिए, क्योंकि गायों को चारा वहीं से मिलता है। इंद्रदेव की पूजा से ना तो वह कभी प्रसन्न होते हैं और ना कभी दर्शन देते हैं। फिर बृजवासियों ने देवराज इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा की। इससे इंद्र देव क्रोधित हो गए और उन्होंने इतनी अधिक वर्षा की, जिससे बृजवासियों के साथ-साथ फसलों का भी काफी नुकसान हो गया। बृजवासियों को परेशान देख श्रीकृष्ण ने पूरा गोवर्धन पर्वत अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठा लिया।

गोवर्धन पर्वत उठाने के बाद भगवान कृष्ण ने बृजवासियों और गायों को बछड़ों समेत पर्वत के नीचे शरण लेने के लिए कहा। यह देख देवराज इंद्र अधिक क्रोधित हो गए और उन्होंने वर्षा तेज कर दी। इसके बाद श्रीकृष्ण ने वर्षा की गति को अपने सुदर्शन चक्र से पर्वत के ऊपर से नियंत्रित कर लिया। साथ ही शेषनाग मेड़ बनाकर पानी को पर्वत पर आने से रोकने लगे। वहीं देवराज इंद्र लगातार सात दिनों कर बारिश करते रहे। यह देख ब्रह्माजी ने इंद्र से कहा कि श्रीकृष्ण भगवान श्रीहरि विष्णु के अवतार हैं। फिर देवराज इंद्र ने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी और पूजा कर अन्नकूट के 56 भोग लगाए। तब से गोवर्धन पूजा की जाने लगे और श्रीकृष्ण को भोग में 56 भोग लगाया जाने लगा।

मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण को गाएं अतिप्रिय हैं वह भी गायों और बछड़ों की सेवा बहुत करते थे। भारत देश में गाय का गोबर पवित्र माना जाता है। इसलिए इस दिन गोवर्धन पर्वत गोबर से बनाया जाता है। इसलिए इसकी पूजा करना फलदायी माना जाता है।गोबर से बनाया गया गोवर्धन घर की सभी समस्याओं का अंत करता है और यह सुख-समृद्धि का भी प्रतीक होता है। दिवाली के अगले दिन यानी की कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा के दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी पूजा की जाती है और पर्वत के चारों कोनों में करवा की सीकें लगाई जाती हैं। इस दिन पूजा के साथ जो भी गोवर्धन पूजा की यह कथा पढ़ता है। उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सुख-समृद्धि का प्रतीक है गोवर्धन पूजा