मध्यप्रदेश के पास है टाइगर स्टेट का गौरव

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प्रदेश सरकार ने वन्य-प्राणी संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए कई नवाचारों को लागू किया, जिनकी बदौलत मध्यप्रदेश टाइगर स्टेट की प्रक्रिया का आधार स्तंभ बना। पिछले डेढ़ दशक में बाघों और अन्य वन्य-प्राणियों के लिए आवास क्षेत्र की सुविधा कराने के लिए संरक्षित क्षेत्रों से 167 ग्रामों का मुकम्मबल स्थान पर पुनर्स्थापन कराया गया। दुर्गम वन क्षेत्रों के अंतर्गत न्यूनतम सुविधाओं के साथ रह रही 15 हजार से ज्यादा परिवार इकाइयों को वनों से बाहर लाया जाकर ग्राम-नगरों में बसाया गया। नतीजा यह हुआ कि वन्य-प्राणियों को व्यवधान रहित स्वछंद रूप से रहवास मिल गया। साथ ही वनवासियों की माली हालत में भी सुधार हुआ। इन तमाम नवाचारों में राज्य सरकार ने 900 करोड़ रूपये की राशि उपलब्ध कराई गई।

अखिल भारतीय स्तर पर तीन साल पहले हुई बाघ गणना में 526 बाघों के साथ पहले स्थान पर काबिज रहकर मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा मिला है। इस साल होने वाली गणना के प्रारम्भिक संकेतों के अनुसार इस बार भी मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट के रूप में मान्यता मिलने की प्रबल संभावना है।वर्ष 2010 और 2014 की गणना में कर्नाटक स्टेट के सर्वाधिक बाघों की संख्या के साथ पहले स्थान पर रहने को छोड़ दें तो मध्यप्रदेश के पास ही पिछले दशक में टाइगर स्टेट का दर्जा रहा है।

तीन चरण में ऐसे होती है बाघों की गणना

मध्य प्रदेश। भारत में बाघों की गणना हरेक 4 साल में की जाती है। इसके तीन चरण निर्धारित हैं। प्रथम चरण में बाघों, अन्य मांसाहारी तथा बड़े शाकाहारी प्राणियों के चिन्ह अर्थात उनके पंजों के निशान, उनकी विष्ठा, खरोंच के निशान और उनके द्वारा किए गए शिकार आदि के आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं। इस बाघ ऑकलन को “फेस वन’ कहा जाता है। यह प्रक्रिया एक सप्ताह तक चलती है। वन कर्मचारी इन सातों दिन जंगलों में भ्रमण कर वन्य-प्राणियों की उपस्थिति के चिन्ह पहले तीन दिन और अगले तीन दिन वन्य-प्राणियों की प्रत्यक्ष उपस्थिति की संख्या एकत्रित करते हैं।

द्वितीय चरण में वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगशालाओं में बाघ आकलन किया जाता है। वैज्ञानिक सेटेलाईट द्वारा एकत्र किए गए आँकड़ो का अध्ययन कर बाघ के रहवास क्षेत्र की स्थिति के बारे में आँकड़ों जुटाते हैं।

तीसरे चरण में कैमरा ट्रेपिंग की जाकर बाघों की उपस्थिति के चित्र लिए जाते हैं। इन तीन चरणों में मिले आँकड़े और सबूतों के सांख्यिकी विश्लेषण से किसी क्षेत्र में बाघों की संख्या का आकलन निकाला जाता है।

अखिल भारतीय बाघ गणना में सम्पूर्ण भारत में तकरीबन 30 हजार बीटो में गणना कार्य किया जाता है। इसमें 9 हजार बीट केवल मध्यप्रदेश में ही मौजूद हैं। यह एक बहुत श्रम साध्य और व्यापक कार्य है। प्रदेश के वन विभाग ने इस चुनौती को अंगीकार करते हुए वर्ष 2017 से अपनी तैयारियों को अंजाम देना शुरू कर दिया। इसके अंतर्गत वन रक्षकों के कई चरण आयोजित कर उन्हें इसके काबिल बनाया गया। इस तरह दक्षतापूर्ण तरीके से दुष्कर कार्य की गणना कराई जाती है।

वाल्मीकि टाइगर रिजर्व अपने बाघों के लिए दुनिया भर मे जाना जाता है।बाघों की संख्या मे लगातार बढ़ोतरी होना इस बात की तरफ इशारा करते हैं की यहाँ के जंगल एवं जलवायु बाघों के रहने एवं उनके विकास के लिए सबसे उत्तम स्थानों मे से एक है।