क्या मोदी और योगी गुट के शक्ति संतुलन के शिकार हो गयें…यशवंत सिंह

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यदि यशवंत सिंह के पुत्र जीते तो भाजपा में मजबूती के साथ वापसी और उभार होगा…!

MLC यशवंत सिंह, मोदी और योगी गुट के शक्ति संतुलन के शिकार हो गयें…?


पीएमओ खास,कैबिनेट मंत्री ए0के0 शर्मा का इधर जनपद आगमन हो रहा था,उधर योगी के खास यशवंत सिंह को निपटाया जा रहा था.जब दो शक्ति स्रोतों के बीच शक्ति के सन्तुलन की आंतरिक और अदृश्य होड़ मची हो, तो परिणाम और प्रभाव दोनों ही तेजी से बदलते नज़र आते हैं और जब यह अदृश्य प्रतिस्पर्धा ‘पोलिटिकल पावर सेंटर्स’ के बीच में चल रही हो तो उसके प्रभाव दूरगामी और दिलचस्प परिणाम के रूप में दिखाई देने लगतें हैं.जब उत्तर प्रदेश में 2022 का विधान सभा का चुनाव चल रहा था, तो भाजपा जहाँ अपने विपक्ष से लड़ रही थी, वहीं एक अदृश्य संघर्ष भाजपा के भीतर भी दो पावर सेंटर्स के बीच चल रहा था. एक का केंद्र देश की राजधानी दिल्ली है तो दूसरे का देश के सबसे बड़े सूबे की राजधानी लखनऊ.एक के शिखर पुरुष नरेंद्र दामोदर दास मोदी हैं, तो दूसरे के योगी आदित्यनाथ. दोनों के बीच दल में अपने पावर सेंटर्स को मजबूत करने की आंतरिक होड़ भी है और भविष्य की राजनीति के लिए आंतरिक द्वंद्व भी.


जब इस बार का यूपी चुनाव लड़ा जा रहा था, तो योगी आदित्यनाथ को इस चुनाव का पोस्टर ब्वॉय बनाया गया. यानि चुनाव योगी के नाम पर लड़ा गया. राजनीति को समझने वालों का एक मत यह भी है कि- अगर योगी आदित्यनाथ सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं ला पाते तो भाजपा सरकार बनाती तो जरूर, लेकिन मुख्यमंत्री कोई और ही होता, जिसे दिल्ली तय करती, लेकिन हुआ ठीक उसका उल्टा, क्यों कि इस चुनाव में योगी आदित्यनाथ न केवल पूर्ण बहुमत के आंकड़े को पार कर गयें बल्कि उनके कानून-व्यवस्था और माडल को जनता ने मुहर लगा दिया और दिल्ली का दिल धक् करके रह गया.बाबा व्यक्तिगत रूप से न केवल ईमानदार हैं बल्कि शक्ति संतुलन में दिल्ली की कूटनीति को पानी पीला दिया.जो बाबा 2017 में दिल्ली के शिखर पुरुष की बदौलत सत्ता में पहली बार पहुंचे थे, 2022 में अपनी बदौलत देश के सबसे बड़े सूबे में दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने में रिकॉर्ड तोड़ कामयाबी हासिल कर लिया. बाबा भाजपा में एक ऐसा उभरता हुआ पावर सेंटर बन गयें, जो किसी के दबाव में आने वाले नहीं थे और हैं. जिसे दिल्ली चाह कर भी अपने अंकपाश में नहीं ले सकी. क्योंकि बाबा के साथ विराट आबादी और नागपुर का भरपूर आशीर्वाद था और है.


अब जब बाबा ने देश के सबसे बड़े सूबे के जनादेश को जीत लिया, तो बारी आयी उनके कबीना को नियंत्रित करने की. फिर क्या, बाबा मुख्यमंत्री तो बने लेकिन मंत्रिमंडल में जिन चेहरों को लाया गया, उनमें से बहुत से दिल्ली के कृपा पात्र थे. और जिन्हें योगी के विपरीत खेमे का माना जाता है. यानि दोनों पावर सेंटर्स के बीच शीतयुद्ध जैसी स्थिति बनती चली गई. बाबा भी कम कूटनीतिक नहीं निकले, उन्होंने मंत्रियों के निजी स्टाफ़ का नियंत्रण सीधे सीएम कार्यालय से कर दिया. मंत्रियों को 100 दिन का विभागीय लक्ष्य थमा दिया. यही नहीं मंत्री ही अपने विभाग का पावर प्रजेंटेशन सीएम के सामने देगें. अधिकारी केवल सहयोग करेंगे. बाबा पिछली कार्यकाल से ज्यादा सख्त और कडक प्रशासक बन कर उभरते नज़र आ रहें हैं. सोनभद्र और औरेया के डीएम का निलंबन, जांच और गाजियाबाद के एसपी का हटाया जाना, उनके बदलते तेवर और गवर्नेंस की शुरुआत है.
यही नहीं अभी तो और भी अधिकारी उनके रडार पर हैं, जिसे बाबा दुरुस्त करके नौकरशाही के जरिए जनमत को अपने साथ जोड़ने की कोशिश करेंगे.

क्या मोदी के खास एके शर्मा का आजमगढ़ आगमन और भाजपा एमएलसी यशवंत के निष्कासन के बीच शक्ति का संतुलन है..?

क्या यह एक संयोग भर है कि आजमगढ़- मऊ स्थानीय निकाय चुनाव में प्रचार करने लखनऊ से आजमगढ़-मऊ पहुंचे मोदी के आदमी और योगी सरकार में नगर विकास और ऊर्जा कैबिनेट मंत्री एके शर्मा का आगमन होता है और उधर कल भाजपा प्रदेश कार्यालय से परवाना आ जाता है कि एमएलसी यशवंत सिंह और उनके पुत्र विक्रांत सिंह को पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने के कारण 6 बरस के बीच भाजपा से बाहर कर दिया गया.दरअसल यह पावर सेंटर्स की टकराहट का परिणाम है. इसके और भी प्रभाव आगामी समय में दिखेंगे. यह वही यशवंत सिंह हैं, जिन्होंने पहली बार योगी जब मुख्यमंत्री बने तो वह उत्तर प्रदेश के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे. उनके लिए यशवंत सिंह अपनी सीट छोड़ दी, और योगी विधान परिषद के सदस्य बने. बाद में भले यशवंत सिंह एमएलसी चुन लिए गयें. यानि यशवंत सिंह, दिल्ली वाले पावर सेंटर में नहीं, लखनऊ वाले पावर सेंटर के आदमी थे, यानि वह बाबा के निकट संबंधी थे, इसलिए उन्हें अपने पुत्र के लिए एक अदद एमएलसी का टिकट नहीं मिल सका और वह सपा विधायक रमाकांत यादव के बेटे अरूणकांत यादव को मिल गया, जो भाजपा से विधायक थे. ऐसे में यशवंत सिंह के पुत्र विक्रांत सिंह रिशू निर्दल प्रत्याशी बन मैदान में उतर गयें. उतर ही नहीं गयें, बल्कि बड़ी मजबूती से चुनाव खड़ा भी कर दिया. फिर अचानक से मंत्री बनने के बाद एके शर्मा जी आते हैं और दिल्ली वाले पावर सेंटर अपना काम कर जाता है. योगी आदित्यनाथ की अगली रणनीति क्या होगी,यह तो देखने वाली बात होगी, लेकिन यशवंत सिंह के पुत्र यदि यह चुनाव जीत जाते हैं, तो उनकी पुनः भाजपा में मजबूती के साथ एन्ट्री होगी और बाबा का भरपूर आशीर्वाद मिलेगा. इसको लिख कर रख लीजिए. इसी के साथ भविष्य की राजनीति भी समझिए- 2017 में मोदी के कारण ही योगी मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन 2024 में मोदी, योगी के ऊपर निर्भर होंगे.—– न्यूज़ ऑफ़ इंडिया

अरविंद कुमार सिंह मूल रूप से आजमगढ़ से हैं वर्तमान में शार्प रिपोर्टर व मनमीत पत्रिका के संपादक हैं।