बचपन में हमें गेहूं की रोटी बहुत कम मिलती थी

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बचपन में हमें गेहूं की रोटी बहुत कम खाने को मिलती थी। गेंहू की रोटी अक्सर मेहमानों के लिये बनाई जाती थी बाक़ी दिन जौ, बाजरा, मंडुवा, चौलाई आदि की रोटियां बनती थी। आज भले ही ये पौराणिक और स्वादिष्ट व्यंजन लगते हों लेकिन हरदिन यही पकवान खाने को मिले तो ऊब जाते थे। हर रोज यह रोटियां नहीं खा सकते थे।हम सोचते थे खेत तो उतने ही हैं फिर जौ, मंडुवा, चौलाई इत्यादि बीजने से बेहतर गेहूं क्यों नहीं बीजते होंगे घरवाले, गांववाले? उतनी पैदावार गेहूं की होगी तो रोज गेहूं की रोटी खाने को मिलती। जब बड़े हुये तब समझ आयी कि मंडुवा दशकों तक खराब नहीं होता था इसलिए आपदा, विपदा से बचने के लिये पूर्वजों ने ऐसे अनाज को प्रचलन में रखा। थोड़े पढ़े, लिखे जानकर हुये तब पता चला कि गेहूं अमेरिका से आता था।

भारत में जलवायु परिवर्तन की वजह से यहां पैदा करना मुश्किल था। इंदिरा गांधी जी जब प्रधानमंत्री बनी तब उन्होंने कृषि क्षेत्र में एक बड़ा कदम उठाया और कृषि वैज्ञानिकों के सहयोग से भारत में अच्छे बीज के प्रयोग से गेहूं की पैदावार हो सकी। देश में इतनी बड़ी क्रांति हुई कि हम आज गेंहू, चावल, कपास, गन्ना, दूध, दाल, मसाले, फल, मूंगफली, सब्जियों आदि क्षेत्र में विश्वभर में दूसरे स्थान के उत्पादक हैं। महज़ 1967 से इसकी शुरुआत हुई और हरित क्रांति, बैंकों के राष्ट्रीयकरण तथा किसानों के हितों हेतु कई योजनाएं बनी। एमएसपी भी तब से ही अस्तित्व में आया मगर लागू न हो सका।आज एक अनुमान के मुताबिक भारत में 60 लाख टन अनाज बर्बाद होता है। क्योंकि किसान तो उगा रहे हैं लेकिन सरकार के पास पर्याप्त भंडारण की व्यवस्था नहीं है। इतने अनाज में वर्षभर में 10 करोड़ गरीब बच्चों का पेट भरा जा सकता है।

जितनी भी सामग्रियां स्कूलों, ग्राम पंचायतों, नागरिकों के लिए आती है उसमें से 50 प्रतिशत भी समय से वितरित नहीं होती है।हम योजनाएं जरूर बनाते लेकिन या तो वोटबैंक को साधकर या फिर उधोगपतियों को मध्यनजर रखकर या फिर नफा, नुकसान देखकर। तमाम रखरखाव तथा इसकी जिम्मेदारी हेतु आज भी किसी नये कानून में इसका जिक्र नहीं करते। हमारे पास अनाज बचाने के लिए कोई ठोस योजना, रणनीति नहीं बनती है क्योंकि इसमें शराब माफियाओं का बोलबाला है।वर्ष 2014 से पूर्व हम 24 करोड़ गरीबों को राशन वितरित करते थे और आज 80 करोड़ को वितरित करते हैं। यह उपलब्धि या नाकामी नहीं मालूम लेकिन इतना जरूर है कि आज हम विश्वभर में अनाज के दूसरे बड़े उपभोक्ता हैं आप चाहें तो इसपर गर्व करें बाकी उसी आंकड़ों में 30 करोड़ लोग रोजाना भूखे भी सोते हैं इसपर प्रतिक्रिया आप स्वयं आंकलन करके दीजिए।