कश्मीरी नेता पाकिस्तान के हालातों से सबक लें Kashmiri leaders take lessons from the situation in Pakistan

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पाकिस्तान परस्त कश्मीरी नेता पाकिस्तान के ताजा हालातों से सबक लें।

एस0 पी0 मित्तल

फारुख अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती जैसे कश्मीरी नेता अकसर पाकिस्तान के समर्थन में बयान देते हैं। ऐसे नेता चाहते हैं कि कश्मीर में आतंकी समस्या का समाधान पाकिस्तान से वार्ता कर निकाला जाए। हालांकि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने कश्मीरी नेताओं की इस मांग पर कभी भी सहमति नहीं जताई। अब ऐसे कश्मीरी नेताओं को पाकिस्तान के मौजूदा हालातों से सबक लेना चाहिए। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व में लाहौर से इस्लामाबाद तक जैहादी मार्च निकाला जा रहा है तो पाकिस्तान की फौज ने इमरान खान के लिए चेतावनी जारी कर दी है। इस बीच मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ सऊदी अरब से लेकर चीन तक से मदद की गुहार लगा रहे हैं। शहबाज शरीफ की सरकार के खिलाफ इमरान खान के नेतृत्व में लाखों लोग सड़कों पर हैं, जब इमरान खान प्रधानमंत्री थे, तब उन्हें हटाने के लिए विपक्षी दलों के नेतृत्व में लाखों लोग सड़कों पर थे। कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसे हालात उत्पन्न हो गए हैं।

लोकतंत्र को कायम रखने के लिए राजनीतिक दलों में कोई तालमेल नहीं है, इसलिए पाकिस्तान में सेना का एक बार फिर से काबिज होना चाहती है। पाकिस्तान के मौजूदा सेना अध्यक्ष जनरल बाजवा का नवंबर के अंत में ही रिटायरमेंट है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि रिटायरमेंट से पहले ही जनरल बाजवा पाकिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लेंगे। इमरान खान के जैहादी मार्च से सेना को सत्ता पर काबिज होना आसान है। पाकिस्तान भी भारत की तरह अगस्त 1947 में ही आजाद हुआ था, लेकिन आजादी के 75 वर्षों में से 50 वर्षों तक पाकिस्तान में सैनिक शासन रहा। पाकिस्तान में अराजकता का जो माहौल है, उसी का परिणाम है। पाकिस्तान में अनेक कट्टरपंथी संगठन सक्रिय हैं। ऐसे संगठनों से भारत ही नहीं बल्कि अमरीका को भी खतरा है।

भारत जहां 26/11 के आतंकी हमले को आज तक नहीं भूला है, वही अमरीका को भी 9/11 का आतंकी हमला हमेशा याद रहेगा। कश्मीर में बैठ कर पाकिस्तान का समर्थन करने वाले नेता एक बार पाकिस्तान के मुकाबले भारत की स्थिति का आकलन कर लें। आजादी के 75 वर्षों में भारत में कभी भी सैन्य शासन नहीं रहा। हर पांच साल में लोकसभा और राज्य की विधानसभा के चुनाव होते हैं। चुनाव परिणाम के बाद बहुत आसानी से सत्ता का हस्तांतरण हो जाता है। भारतीय सेना भी निर्वाचित सरकार के दिशा निर्देशों पर ही काम करती है। जबकि दुनिया देख रही है कि पाकिस्तान में राजनीतिक दल और सेना एक दूसरे के दुश्मन बने हुए हैं। भुखमरी के कारण पाकिस्तान के आम लोगों का जीवन दूभर हो गया है। पाकिस्तान के नागरिकों के सामने मौजूदा हालातों से निकलने का कोई रास्ता नहीं है।