जानें संस्थाओं का पतन कैसे…?

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संस्थाओं का पतन कैसे होता है इस पर पूर्व पुलिस महानिदेशक महेश चन्द्र द्विवेदी की आप बीती पढकर जानिये।शासकीय सेवाओं में चयनकर्ता किसी व्यक्ति का भ्रष्टाचारी होना या न होना बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि वह व्यक्ति घूस देकर या सिफ़ारिश से सेवा में चयनित हुआ है अथवा अपनी योग्यता से। घूस देकर चयनित हुए व्यक्ति से ईमानदारी की अपेक्षा करना अर्थहीन होता है।

शासकीय सेवाओं में चयन या तो विभागीय अधिकारी करते हैं अथवा शासन द्वारा स्थापित चयन समितियां जैसे लोक सेवा आयोग, शिक्षा आयोग, पुलिस भर्ती बोर्ड आदि। मेरा अनुभव है कि वर्ष 1974-75 तक चयन समितियों के सदस्य के पदों पर यथासम्भव ईमानदारी में ख्यातिप्राप्त व्यक्ति ही नियुक्त किये जाते थे। मुझे याद है कि श्री एन. एस. सक्सेना, आई. पी. (सेवानिवृत), जब यू. पी. एस. सी. के सदस्य थे, तब उनके पास उनके अधीन काम कर चुके एक पुलिस अधिकारी ने अपने बेटे को सिविल सर्विसेज़ परीक्षा के साक्षात्कार में अच्छे नम्बर देने की सिफ़ारिश कर दी थी। श्री सक्सेना ने उस अभ्यर्थी के साक्षात्कार से अपने को स्वयं अलग कर लिया था। यू. पी. एस. सी. में सिफ़ारिश कराने वाले अभ्यर्थियों के अंक काट लिये जाने के किस्से भी सुनने को मिलते थे।

इमरजेंसी लगने के बाद ईमानदारी के इन मानकों में ह्रास होना प्रारम्भ हुआ। वर्ष 1994-95 तक स्थिति इतनी बदल गई थी कि कांस्टेबिलों की भर्ती हेतु डी.जी. द्वारा गठित चयन बोर्डों के सदस्यों की सूची तत्कालीन मुख्य मंत्री ने मंगाई; और डी. जी. व मुझे (पुलिस मुख्यालय का ए. डी. जी. होने के नाते) बुलाया। फिर बोले कि आप लोगों ने ये कैसे अधिकारियों को चयन बोर्डों में रखा है और फिर प्रत्येक बोर्ड में ऐसे अधिकारियों को अध्यक्ष व सदस्य बना दिया जो vishisht जाति के थे अथवा सत्यनिष्ठा के विषय में avikhyat थे। कालांतर में स्थिति इतनी बिगड़ गई कि सिपाही की भर्ती में ऐसे व्यक्ति भी चयनित होने लगे, जिन्होंने चयन परीक्षा ही नहीं दी थी। जब पुलिस भर्ती में पापों का घड़ा भर गया, तब पुलिस भर्ती बोर्ड की स्थापना हुई और सुधार हुआ, परंतु सहस्रों भ्रष्ट व्यक्तियों के पुलिस विभाग में प्रवेश के उपरांत ही।

उसी कालावधि में मुझे यू. पी.- पब्लिक सर्विस कमीशन से प्रांतीय सेवाओं के अधिकारियों की साक्षात्कार समिति में एक्सपर्ट सदस्य के रूप में भाग लेने का आमंत्रण मिला। वहां मैंने अजीब स्थिति देखी कि इंटरव्यू बोर्ड में बैठते तो मेरे सहित कुल चार सदस्य थे, परंतु हमारे सामने अभ्यर्थियों को अंक नहीं दिये जाते थे और न किसी अंक पत्र पर हमारे हस्ताक्षर लिये जाते थे। बस साक्षात्कार बोर्ड का अध्यक्ष (जो कमीशन का सदस्य होता है) एक पैड पर हमसे छिपाकर पेंसिल से कुछ लिख लेता था और अपनी जेब में डाल लेता था। इस आश्चर्यजनक प्रक्रिया के विषय में पता चला कि यह बाद में मनमाने अंक देने का तरीका था। यह भी पता चला कि यू. पी. एस. सी., दिल्ली में प्रक्रिया यह है कि अंक तो केवल बोर्ड का अध्यक्ष ही देता है, परंतु अंक-पत्र में सबके सामने अंक देकर सभी सदस्यों के हस्ताक्षर कराता है। आगे साक्षात्कार बोर्ड हेतु आमंत्रण मिलने पर मैंने यू.पी.- पब्लिक सर्विस कमीशन को लिख दिया कि या तो अंक-पत्र मेरे सामने भरकर उस पर मेरे हस्ताक्षर कराये जायें, अन्यथा मेरे स्थान पर किसी और को बुला लिया जाये। तब से यू. पी.- पी. एस. सी. ने मुझे बुलाना बंद कर दिया है।

यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि एक दो सरकारों ने अयोग्य, भ्रष्ट एवं आपरधिक इतिहास वाले व्यक्तियों तक को चयन आयोगों में अध्यक्ष/सदस्य नियुक्त कर दिया था। एक अध्यक्ष तो उच्च न्यायालय के आदेश पर हटाया गया था। आप स्वयं समझ सकते हैं कि ऐसे में विभिन्न सेवाओं में अयोग्य एवं भ्रष्ट अभ्यर्थी चयनित हुए होंगे अथवा सत्यनिष्ठ? और ऐसे शासकीय सेवक भ्रष्टाचार करेंगे या सदाचार?