मुलायम ने हिन्दी की कड़ी नकेल डाली,हिन्दी के तीसरे जबरदस्त हितैषी मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव सिद्ध हुए। उन्होंने उत्तर प्रदेश को हिन्दीमय कर दिया।

श्याम कुमार

वर्ष 1977 में उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की विजय होने पर चौधरी चरण सिंह ने रामनरेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया था। रामनरेश यादव नया चेहरा थे तथा उनके मंत्रिमंडल में शामिल कल्याण सिंह एवं मुलायम सिंह भी तब मशहूर चेहरे नहीं थे। कल्याण सिंह स्वास्थ्य मंत्री तथा मुलायम सिंह यादव सहकारिता मंत्री बनाए गए थे।मुख्यमंत्री बनने पर रामनरेश यादव का पहला साक्षात्कार मैंने लिया था तथा उनसे निकटता हो गई थी। उसी समय मैंने मंत्री बनने पर कल्याण सिंह एवं मुलायम सिंह यादव का भी साक्षात्कार लिया था और उन दोनों से भी धीरे-धीरे मेरी बहुत घनिष्ठता हो गई थी। कल्याण सिंह से तो उससे पहले भेंट हो चुकी थी और तभी से आत्मीयतापूर्ण सम्बंध थे।

स्वास्थ्य मंत्री के रूप में कल्याण सिंह ने अपनी ईमानदारी एवं योग्यता की धाक जमाई तो दूसरी ओर मुलायम सिंह यादव सहकारिता मंत्री के रूप में यह गुर समझ गए थे कि राजनीति में अपनी जड़ मजबूत करने के लिए सहकारी संस्थाओं पर तगड़ा वर्चस्व जरूरी है। मैं उस समय इलाहाबाद (प्रयागराज) में रहता था तथा लखनऊ निरन्तर आना लगा रहता था। लखनऊ आने पर मेरा मुलायम सिंह के आवास पर काफी जाना होता था। उस समय वह मुझे बहुत मानते थे। तब यह कल्पना नहीं की जा सकती थी कि कल्याण सिंह एवं मुलायम सिंह भविष्य में मुख्यमंत्री बनेंगे तथा उत्तर प्रदेश की राजनीति के दो महत्वपूर्ण स्तम्भ हो जाएंगे। बाद में कल्याण सिंह से तो मेरी निकटता कायम रही, किन्तु मुलायम सिंह तमाम नए पत्रकारों एवं अन्य लोगों से ऐसा घिरे कि मैं पीछे हो गया।

मुलायम सिंह यादव को इटावा में ‘नेताजी’ कहा जाता था, किन्तु जब लखनऊ में उन्हें ‘नेताजी’ कहा जाते सुना तो मैंने विरोध किया और कहा कि ‘नेताजी’ शब्द देश के महानायक सुभाष चंद्र बोस का प्रतीक बन चुका है, इसलिए अन्य किसी भी व्यक्ति को ‘नेताजी’ कदापि नहीं कहा जाना चाहिए। बिलकुल उसी प्रकार, जैसे ‘लोकमान्य’ शब्द बालगंगाधर तिलक,’राजर्षि’ शब्द पुरुषोत्तमदास टंडन, ‘महामना’ शब्द मदनमोहन मालवीय की पहचान बन चुका है। लेकिन लोग मुलायम सिंह को ‘नेताजी’ कहते रहे और उन्होंने भी ऐसा कहे जाने से मना नहीं किया।

उत्तर प्रदेश में हिन्दी के समर्थक सबसे बड़े तीन पुरोधा मुख्यमंत्री हुए हैं- डाॅ. सम्पूर्णानंद, कमलापति त्रिपाठी एवं मुलायम सिंह यादव। डाॅ. सम्पूर्णानंद ने उस युग में हिन्दी को संरक्षण दिया, जो अंग्रेजी के वर्चस्व का युग था तथा अंग्रेजी के सबसे बड़े समर्थक व पोषक प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे। फिर भी कांग्रेस पार्टी में नेहरू की इच्छा के विरुद्ध जो लोग हिन्दी का ध्वज ऊंचा किए हुए थे, उनमें राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन सबसे अग्रणी थे और उन्हीं की वजह से देश एवं उत्तर प्रदेश में हिन्दी को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ। लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में प्रकांड विद्वान डाॅ. सम्पूर्णानंद ने उत्तर प्रदेश में हिन्दी को प्रतिष्ठित किया था। कमलापति त्रिपाठी हिन्दी के परम भक्त तो थे, किन्तु नेहरू परिवार से निकटता के कारण वह हिन्दी के पक्ष में पूरी तरह नहीं डट सके। हिन्दी के तीसरे जबरदस्त हितैषी मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव सिद्ध हुए। उन्होंने उत्तर प्रदेश को हिन्दीमय कर दिया।

आईएएस अफसरों के शरीर में खून की जगह अंग्रेजी भरी होती है और वह हर जगह अंग्रेजी को हावी कर देते हैं। आईएएस ही नहीं, आईपीएस, पीसीएस आदि संवर्गाें के अधिकारियों पर भी अंग्रेजी का भूत बुरी तरह सवार रहता है। लेकिन मुलायम सिंह के हिन्दी प्रेम के कारण इन संवर्गाें की बिरादरी भी उस समय हिन्दी के पक्ष में झुकने को बाध्य हुई।उस समय उत्तराखण्ड भी उत्तर प्रदेश का हिस्सा था तथा वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी प्रभुनाथ मिश्र प्रदेश के राज्य सम्पत्ति अधिकारी थे। मैं तब हर साल गरमी में दो महीने नैनीताल में रहा करता था तथा राज्य अतिथिगृह नैनीतालक्लब में रुकता था। वहां नैनीतालक्लब में शैले हाॅल के बगल में मेरा इकहत्तर नंबर सूट था, जिसका नया कलेवर मेरे प्रयास से ही बना था।

नैनीतालक्लब राज्यसम्पत्ति विभाग के अंतर्गत था, इसलिए राज्यसम्पत्ति अधिकारी प्रायः नैनीताल आते थे। नैनीतालक्लब में सारे नामपट व नामपट्टिकाएं अंग्रेजी में थीं, जिन्हें हिन्दी में कर दिए जाने का मैं प्रभुनाथ मिश्र से अनुरोध करता था, मगर वह हमेशा यह उत्तर देते थे कि हिन्दी कर देने पर यहां आने वाले विदेशी नहीं समझेंगे।मैं प्रभुनाथ मिश्र को बहुत घेरता रहा, किन्तु वह नहीं माने। दो महीने नैनीताल क्लब में रुकने के कारण मैं वहां की प्रत्येक गतिविधि से वाकिफ था। मैंने वहां विदेशियों को आते नहीं देखा था। यदि कोई अतिविशिष्ट अतिथि कभी आता भी था तो उसके साथ प्रदेश के अफसरों का काफिला रहता था, जिससे उस अतिथि को नामपट या नामपट्टिका पढ़ने की आवश्यकता नहीं होती थी।

उसी समय मुलायम सिंह यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। मैं उस समय नैनीताल क्लब में मौजूद था। जिस दिन मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने, उस रात नैनीताल क्लब में जैसे तूफान मच गया। तमाम बढ़ई व पेंटर सारी रात नैनीताल क्लब में जुटे रहे और सारे नामपट व नामपट्टिकाएं अंग्रेजी से हिन्दी में करते रहे। मेरे लिए तो जैसे ‘बिल्ली के भाग्य से छींका फूटा’ वाली स्थिति हो गई। मैं भी वहां रातभर डटा रहा और चुन-चुनकर प्रत्येक जगह का मैंने हिन्दीकरण करा दिया। ‘बाथरूम’ के दरवाजे पर ‘प्रसाधन’ लिखाया, ‘रिसेप्शन काउंटर’ की जगह ‘स्वागत पटल’ लिखाया। नैनीताल क्लब के प्रवेशद्वार पर जो ‘गार्डरूम’ बना हुआ था, वहां ‘प्रहरी’ लिखा दिया। शैले हाॅल में ‘नेताजी सुभाष प्रेक्षागृह’ लिखाकर नामपट लगा दिया।

इस तरह के अनेक परिवर्तन मैंने वहां कराए। जो लोग विदेशियों के बहाने नैनीताल क्लब में अंग्रेजी थोपे हुए थे, वे सभी मुलायम सिंह के मुख्यमंत्री बनते ही हिन्दीप्रेमी बन गए। मुख्यमंत्री मुलायम सिंह की बदौलत नैनीताल क्लब में ही नहीं, पूरे प्रदेश में हिन्दी छा गई।

पन्द्रह अगस्त को प्रातःकाल लखनऊ के राजभवन में राज्यपाल द्वारा ध्वजारोहण किया जाता है। उस अवसर पर राज्यपाल का तथा उनके बाद मुख्यमंत्री का सम्बोधन होता है।उस समय राज्यपाल पद पर अंग्रेजीप्रेमी टी. राजेश्वर थे, जिन्होंने अपने भाषण में अनावश्यक रूप से अंग्रेजी की वकालत कर दी। मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव वहां पर मौजूद थे। स्वाभाविक रूप से सबको जिज्ञासा हुई कि हिन्दी के कट्टर समर्थक मुलायम सिंह की क्या प्रतिक्रिया होगी! राज्यपाल के भाषण के बाद जब मुख्यमंत्री का सम्बोधन हुआ तो मुलायम सिंह ने राज्यपाल के पद की गरिमा का ध्यान रखते हुए टी. राजेश्वर द्वारा अंग्रेजी के पक्ष में बोले गए उद्गारों की बड़ी चतुराई से धज्जी उड़ा दी थी।यदि मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री न बने होते तो शायद अंग्रेजी अभी भी यहां हावी रहती।