नागेन्द्र को मिला पद्मश्री डॉ. विद्या बिन्दु सिंह लोक संस्कृति ध्वजवाहक सम्मान-2022

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लोक संस्कृति शोध संस्थान, उत्तर प्रदेश ने तीन दिवसीय लोक विमर्श-2022 में उत्तर भारत की 11 विभूतियों को किया सम्मानित बीकेटी/लखनऊ। लोक संस्कृति शोध संस्थान, उत्तर प्रदेश ने लोक प्रिय स्तम्भ ‘चतुरी चाचा के प्रपंच चबूतरे से’ लेखक एवं लोक कथा वाचक नागेन्द्र बहादुर सिंह चौहान, पत्रकार को “”पद्मश्री डॉ विद्या बिन्दु सिंह लोक संस्कृति ध्वजवाहक सम्मान-2022″” से सम्मानित किया।लोक विमर्श-2022 के दूसरे दिन अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान, गोमतीनगर (लखनऊ) में छत्तीसगढ़ की सुप्रसिद्ध लेखिका मृणालिनी ओझा और स्वतंत्र पत्रकार/लेखक नागेन्द्र बहादुर सिंह चौहान को पद्मश्री डॉ विद्या बिन्दु सिंह जी ने अपने हाथों से सम्मानित किया।

कहते हैं “नशा हर ग़म भुला देता है”
लेकिन साहब,
नशा केवल ग़म ही नहीं भुलाता,
भुला देता है और बहुत कुछ, जैसे…
अपने कुछ बेहद ज़रूरी क़ाम
और बचपन में बिछड़े किसी जिगरी यार का नाम,
फोन पर बातों में कटी वो लंबी सी रात..
या अपने छोटे से बच्चे की कही,
वो बेहद मीठी बात,
जो कभी नहीं भुलाई जाने लायक़ थी,
अपनी ज़िंदगी संवारने के इरादे,
और किसी से किए हुए वादे..
मां की उस दवाई का नाम,
जो डॉक्टर ने एमरजेंसी के लिया बताया था,
या बाबूजी के चश्मे का नंबर..
फ्रिज में रखा हुआ पान,
या किसी के किए हुए एहसान…
सब कुछ भुला देता है..
हां जनाब! नशा सबकुछ भुला देता है।


नशामुक्त समाज आंदोलन-अभियान कौशल का के माध्यम से लखनऊ को नशामुक्त बनाने की मुहिम में सक्रिय नागेन्द्र ने इस सम्मान के लिए लोक संस्कृति शोध संस्थान, उत्तर प्रदेश की सचिव सुधा द्विवेदी एवं लोक संस्कृति योद्धा शशि कांत द्विवेदी गोपाल के प्रति आभार व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि लोक संस्कृति शोध संस्थान उत्तर प्रदेश में लोक कथाओं, लोक गीतों और लोक संस्कृति के उत्थान के लिए सराहनीय कार्य कर रहा है।


सुविख्यात लेखिका एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की सेवा निवृत्त अधिकारी पद्मश्री डॉ विद्या बिन्दु सिंह अपने आशीष वचन में कहा कि कोरोना महामारी की पहली अनजानी एवं डरावनी वेब के दौरान नागेन्द्र बहादुर सिंह चौहान ने पूरे लॉकडाउन में रोज फेसबुक पर लाइव होकर दादी-नानी की लोक कथाओं को सुनाया था। श्री चौहान के इस सार्थक प्रयास को देश-विदेश में बहुत सराहा गया था। आम लोगों को उनके बचपन तमाम भूली-बिसरी कहानियां याद आ गई थीं। बच्चों को पुरातन की शिक्षाप्रद कहानियाँ सुनने का अवसर मिला था। इसके अलावा नागेन्द्र की लोक कथाओं से आम जन का मनोबल बढ़ गया था। वह आज भी अपने कॉलम “चतुरी चाचा के प्रपंच चबूतरे से” के माध्यम से लोक संस्कृति के उत्थान में हम सबका हाथ बंटा रहे हैं।