ऐसे नहीं कोई बनता है मुलायम सिंह….! No one becomes Mulayam Singh like this….!

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मधुकर त्रिवेदी

त्तर प्रदेश में आजादी के बाद से अब तक 43 मुख्यमंत्रियों की नाम पट्टिकाएं लग चुकी है। इनमें कई एकाधिकार बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं। लेकिन इस गिनती में एक नाम अलग से दिखाई देता है वह है मुलायम सिंह यादव का। बिना किसी लाग लपटे और संशय के यह बात रिकार्ड में रखी जा सकती है कि इस एक नाम के अलावा जो भी मुख्यमंत्री बने हैं वे अपने संगठन-राजनीतिक दल के नामित रहे हैं। अपने संगठन कौशल से उन्हें बड़ा पद नहीं मिला।

श्री मुलायम सिंह यादव ने खुद कुआं खोदा और फिर पानी पिया। उनकी न कोई पारिवारिक पृष्ठभूमि थी, नहीं वे किसी नामी राजनीतिक घराने से थे। वे एक सामान्य कृषक परिवार से थे जिनकी पढ़ाई किसी नामी गिरामी कॉलेज में नहीं हुई। वे सामान्य मास्टर बने। गांव सैफई के लोकप्रिय खेल कुस्ती के मैदान में दांव पेंच सीखकर कई कुष्तियां लड़ी। दूर तक तब ऐसी कोई संभावना नहीं दिखाई दे रही थी कि गांव का गबरू पहलवान प्रदेश की राजनीति का केन्द्र बनेगा। लेकिन कहावत है पतू के पांव पालने में ही दिख जाते है। 15 वर्ष की कच्ची उम्र में नहर रेट आंदोलन जेल जाकर अपनी राजनीतिक यात्रा का श्रीगणेश करने वाला यह किशोर एक दलित गंगा प्रसाद जाटव और बाल्मीकि के घर खाना क्या खा आए कि सामाजिक बहिस्कार की नौबत आ गई। यह तब की बात है जब जाति की जड़ता से निबटना बड़े जोखिम का काम था। इसके बाद सैफई से लखनऊ और दिल्ली तक की यात्रा सड़क से संसद तक की संघर्श यात्रा है जिसमें कई पड़ाव ऐसे भी थे जिनमें वे कई बार उनकी अत्ं येश्टि का इरादा भी विरोधियों ने कर लिया था।

यह कहानी आज के नौजवानों के लिए कहानी ही रहेगी कि कैसे मुलायम सिंह जी ने अपने बूते गांव-गली छानते हुए यादवों में जातीय अस्मिता जगाई, दलितों को साथ लिया ओर अपनी टोली में जनेष्वर मिश्र, बृजभूशण षरण तिवारी, मोहन सिहं जैसे नगीने भी जुटाए। न केवल उत्तरप्रदेश अपितु कई अन्य राज्यों में भी प्रभाव बढ़ाया। अपने को सेक्यूलर ताकतों के बीच प्रतिश्ठित किया। वे कहते थे छोटे मन से बड़ी राजनीति नहीं हो सकती है। श्री मुलायम सिंह यादव अपने व्यवहार में दलगत सीमाओं से परे रहे किन्तु यह तथ्य भी भुलाया नहीं जा सकता कि मुख्यमंत्री पद के हर दौर में उन्हें अपनों से ही चुनौतियां मिलती रही। केन्द्र की साजिशों के वे शिकार होते-होते बचे सिर्फ अपनी त्वरित निर्णय की क्षमता और स्थिति को सही भांपने की वजह से। मंदिर-मस्जिद विवाद में उन्होंने जो दृढ़ता दिखाई उसके बहुत लोग कायल रहे किन्तु उनको व्यक्तिगत रूप से कई लांछनों को भी झेलना पड़ा। वे इस आग में तपकर कुंदन से दमके।

राजनीति की तीन तिकड़म में माहिर होना ही केवल मुलायम सिहं बन जाना नहीं था। गरीबी का दर्द क्या होता है, वे जानते थे अतः किसान और गरीब उनकी प्राथमिकता में रहे। सुबह 05ः00 बजे से उनका जनसम्पर्क शुरू हो जाता था। हर दुःखी की मदद उनका स्वभाव बन गया। मुख्यमंत्री के रूप में जब कोई फाइल आती थी तो उनका जोर रहता था कि कोई छोटा कर्मचारी सजा न पाए। अपनों का संरक्षण, छोटे से छोटे कार्यकर्ता का सम्मान उनसे सीखने लायक था। कार्यकर्ता के सुख-दुःख में शमिल रहने की वजह से ही यह माना जाता था कि किसी की तकलीफ की खबर उन तक पहुंचाना ही काफी था फिर उसका योगक्षेम देखना उनका काम था। कार्यकर्ताओं से जुड़ाव ऐसा था कि गांव-कस्बों के पचासों लोगों को नाम लेकर बुलाते थे। विरोध को विरोध नहीं मानते थे, मतभेद माने मनभेद नहीं, यही पाठ तो वे सिखाते थे। गावं के प्रधान दर्शन सिंह यादव ने तो गोलियां तक चलवा दी थी। कांग्रेस के बड़े नेता बलराम सिंह यादव उनके घोर विरोधी थे। फिर कुछ ऐसा हुआ कि दोनों मुलायम सिंह के साथ आ गए। उन्हें पूरा सम्मान मिला। अमर सिहं , बेनी प्रसाद वर्मा और मोहम्मद आजम खां एक समय विरोध के पाले में खड़े हो गए थे। उनको साथ लिया तो उन्हें सम्मानीय बनाने में देर नहीं की। उनकी राजनीति के दो और अजूबे निर्णय है जिनकी चर्चा के बगैर तो मुलायम सिहं यादव के चरित्र का उद्घाटन ही नहीं होगा।

ठाकुरों की समूहहत्या की गुनहगार फूलन देवी को सांसद बना दिया और अयोध्या काण्ड के हीरो मुलायम सिंह यादव को फूटी आंखो न देखने वाले कल्याण सिंह को समाजवादी र्पाअी के मंच पर लाए तो उन्हें लाल टोपी पहना दी। अपने विरोधियों के सौ खून माफ कर उन्हें गले लगा लेने वाला विषाल हृदय और किसका है…..? पहली बार मुख्यमंत्री बनते ही चुंगी समाप्ति की घोशणा की। केन्द्र में रक्षामंत्री बने तो शहीद सैनिक जवान का षव घर तक पहुंचाने के साथ उसकी ससम्मान अंत्येश्टि की व्यवस्था की। साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई के वे अप्रतिम योद्धा थे। धर्मनिरपेक्षता के जुझारू सेनापति भी वही थे। वे इस मत के थे कि देश कानून से चलेगा, आस्था से नहीं। सिद्धांत से डिगना उन्होंने नहीं सीखा था, यही उनका जलवा था।

श्री मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी के रूप में ऐसा संगठन दिया है जो भाजपा की नफरती राजनीति का दृढ़ता से मुकाबला करने में समर्थ है। मुलायम सिहं यादव की कितनी जनस्वीकार्यता थी उनके निधन पर देशभर के प्रमुख नेताओं द्वारा उनको श्रद्धांजलि देने आने से साबित है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने खासकर गुजरात की अपनी रैली में मुलायम सिंह यादव को याद किया। दलीय सीमाओं से परे थे मुलायम सिंह। वे अनोखे और अकेले ऐसे नेता थे जो सबके लिए आदरणीय थे। श्री मुलायम सिंह यादव अपने सुपुत्र अखिलेश यादव को पहले युवाओं का सरताज बनाया फिर उनके 2012 में मुख्यमंत्री का पद सौंप दिया। आज हर कोई समाजवादी पार्टी के राश्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव में ही मुलायम सिहं यादव का अक्स देखता है। लोगों को विष्वास है कि मुलायम सिंह यादव की विरासत को अखिलेश जी आगे ले जाएंगे। लेकिन हालफिलहाल तो हर तरफ यही आवाज है कि मुलायम सिंह यादव के निधन के साथ एक युग का अंत हो गया है।

——- नेताजी मुलायम सिंह यादव के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि!


——– लेखक वरिष्ठ पत्रकार है।