उत्तर प्रदेश के बंटवारे का…..

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श्याम कुमार


सत्ता के लोभी अपनी लालसा को पूरा करने के लिए किसी भी सीमा तक गिर सकते हैं। ऐसा ही एक फितूर उत्तर प्रदेश का बंटवारा है। इस फितूर का जहर चौधरी अजीत सिंह ने फैलाया था। वह मुख्यमंत्री बनने के लिए लालायित थे, लेकिन उत्तर प्रदेश में उनका कोई प्रभाव नहीं था। चौधरी चरण सिंह का पुत्र होने के नाते सिर्फ पष्चिमी उत्तर प्रदेष में, जहां जाटों का बाहुल्य है, उनका प्रभाव
था। उन्हें यह रास्ता सू-हजया कि यदि उत्तर प्रदेश को बांटकर पष्चिमी क्षेत्र का ‘हरित प्रदेश’ बन जाए तो वह उसके मुख्यमंत्री बन सकते हैं। किन्तु बाद में जाट समुदाय भारतीय जनता पार्टी की ओर आकृश्ट होने लगा और ‘हरितप्रदेश ’ का नारा गायब हो गया।


शुरू में जवाहरलाल नेहरू उत्तर प्रदेश को बांटने के इच्छुक थे, लेकिन कांग्रेस के धाकड़ नेता गोविंद वल्लभ पंत ने, जो पर्वतीय क्षेत्र नैनीताल जनपद के निवासी थे और उत्तर प्रदेश के अत्यंत प्रभावषाली मुख्यमंत्री थे, नेहरू की उस इच्छा का इतना कड़ा विरोध किया था कि नेहरू को चुप्पी साधनी पड़ी थी। अब अगले वर्ष की शुरूआत में उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव होना है, अतः स्वार्थी तत्वों की प्रदेश को बांटने की चर्चा फिर उभर आई है। यह खबर फैलाई जा रही है कि चूंकि विधानसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की सफलता संदिग्ध है, इसलिए मोदी सरकार उत्तर प्रदेश को बांटना चाहती है, ताकि पूरे प्रदेष में उसका कब्जा बना रहे। एक सज्जन ने तो यह फारमूला ही प्रस्तुत कर दिया किप्रदेश को जिन तीन हिस्सों में बांटा जाएगा, उसका स्वरूप कैसा
होगा?

कोई यूं ही नहीं चंपतराय हो जाता

वस्तुतः इस फितूर के लिए प्रधानमंत्री मोदी एवं मुख्यमंत्री योगी ही जिम्मेदार हैं। प्रधानमंत्री मोदी का लचर खुफियातंत्र विगत चार वर्शाें में उन्हें उत्तर प्रदेश की वास्तविकताओं से अवगत नहीं करा सका। जो चर्चाएं प्रदेश में सर्वत्र व्यापक रूप से थीं, आष्चर्य है कि उनकी खबर मोदी को नहीं मिली। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भारी सक्रियता एवं लोकप्रियता के बावजूद उत्तर प्रदेष की
जनता में भारतीय जनता पार्टी के प्रति निराषा क्यों ब-सजय़ती जा रही है, यह जानकारी मोदी को नहीं मिल पाई। उन्हें पता नहीं लगा कि प्रदेष में अफसरषाही इतनी अधिक हावी है कि वही मुख्यमंत्री की आंख-ंउचयकान बन गई है। उसने मुख्यमंत्री को जनता से दूर कर दिया है तथा अपनी मनचाही तसवीर मुख्यमंत्री के सामने पेष करती है। नौकरषाही भाजपा के विधायकों व सांसदों के सही कामों की भी अवहेलना कर रही है।


मोदी को इस बात की भनक नहीं मिली कि प्रदेशकी जनता की कहीं सुनवाई नहीं होती है, जिससे वह बहुत बुरी तरह त्रस्त एवं दुखी है। मुख्यमंत्री ने जनता की सुनवाई की जो व्यवस्थाएं की हैं, वे दिखावटी सिद्ध हो रही हैं। जनता को इस कार्यालय से उस कार्यालय तक दौड़ाया जाता है तथा उसकी समस्याएं हल नहीं की जाती हैं। परिणामस्वरूप अंत में वह थकहारकर अपनी किसमत को रोती हुई चुप बैठ जाती है। मुख्यमंत्री बड़े-ंबड़े माफियाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर रही हैं, जिसकी भारी प्रषंसा हो रही है। लेकिन यह भी हकीकत है कि आम जनता के कश्ट का कारण वे बड़े माफिया नहीं हैं, बल्कि वे गुंडे हैं, जो क्षेत्र में हावी रहते हैं तथा जनता का जीना दूभर किए रहते हैं। उनके आतंक से डरकर जनता को मौन रहना पड़ता है, क्योंकि स्थानीय प्रषासन व पुलिस में जनता की तनिक भी सुनवाई नहीं होती है। भ्रश्टाचार अलग सुरसा के मुंह की तरह ब-सजय़
रहा है। सबको खबर है, सिर्फ मोदी के खुफियातंत्र को नहीं।


अब उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में इतना कम समय रह गया है कि समस्या के निवारण के लिए स्वयं मोदी को कमान संभालनी होगी। उन्हें उन केंद्रीय नेताओं के भरोसे नहीं बैठना चाहिए, जिन्हें उत्तर प्रदेश की वास्तविकताओं एवं जनता के कश्टों की केवल हवाहवाई जानकारी रहती है।
उनका भी आम जनता तो दूर, पार्टी के कार्यकर्ताओं से कोई निकट सम्बंध नहीं रहता है। राधामोहन सिंह उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रभारी हैं, लेकिन उनका अधिकांश समय लखनऊ के बजाय दिल्ली में व्यतीत होता है। लखनऊ आते भी हैं तो जनसम्पर्क से विहीन रहते हैं। उत्तर प्रदेष में व्यापक परिवर्तन करना होगा। अफसर तो अहंकार में चूर हैं हीं, मंत्रियों का भी बिलकुल वैसा ही हाल है। अधिकतर मंत्री नाकारा सिद्ध हुए हैं। सिर्फ सूर्यप्रताप शही, महेंद्र सिंह, ब्रजेश पाठक आदि थोड़े मंत्री हैं, जिनके कार्य प्रशसनीय हैं।


उत्तर प्रदेश में भाजपा को कमजोर होने से बचाना है तो प्रदेश में अविलम्ब एक उपमुख्यमंत्री अथवा अपर मुख्य सचिव सिर्फ जनता की सुनवाई के लिए तैनात किया जाना चाहिए। वह व्यक्ति ऐसा हो, जिसमें अहंकार बिलकुल न हो तथा जनता की सेवा करने की आंतरिक भावना हो। उसे इतने व्यापक अधिकार होने चाहिए कि वह राजधानी से लेकर जिलों तक समस्त जनसमस्याओं को सही -सजयंग से सुने और उनका त्वरित निस्तारण कराए। मैं अपने पिछले आलेखों में इसकी चर्चा कर चुका हूं। दूसरा कार्य यह किया जाना चाहिए कि मंत्रियों एवं अफसरों को अहंकारमुक्त कर उन्हें स्पश्ट रूप से जता दिया जाय कि वे जनता के मालिक नहीं, नौकर हैं तथा उन्हें आरामतलबी के बजाय चैबीसों घंटे जनता की सेवा में तत्पर रहना है। भ्रश्टाचार के विरुद्ध हर स्तर पर कठोर कदम उठाया जाना चाहिए। इस समय मंत्रियों तक में भ्रश्टाचार की खबरें चर्चा में हैं। जातिवाद अलग एक मुसीबत है, जो हिंदू समाज को संगठित नहीं होने दे रहा है और घुन की तरह उसे नश्ट कर रहा है।


आष्चर्य होता है इस युग में कभी ब्राम्हणवाद चर्चा में होता है तो कभी पिछड़ावाद या दलितवाद। कुछ समय से यहां ठाकुरवाद की चर्चा है। ऐसी चर्चा का अंत कर सबको समान रूप से हिंदू मानते हुए सबके साथ न्यायपूर्ण आचरण होना चाहिए। उत्तर प्रदेश के बंटवारे की जो चर्चा फिर उठाी है, उसका मूल कारण यह है कि कुछ लोगों की लार टपक रही है कि प्रदेष बंट जाय तो उन्हें मंत्री व विधायक बनने का अवसर मिल जाएगा। भले ही उस समय भारी आर्थिक बो-हजय से नया प्रदेष चरमरा उठे। बंटवारे के फितूर को जो पुनः बल मिला है, उसके लिए मुख्यमंत्री योगी जी जिम्मेदार हैं। यह सत्य है कि योगी जी से अच्छा मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश को नहीं मिल सकता। जिस प्रकार मोदी ने देष को नश्ट होने से बचाया, उसी प्रकार कड़क एवं

ईमानदार छवि वाले योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेष की रक्षा की है तथा प्रदेश का भविश्य उज्जवल बनाने में जीजान से लगे हैं, लेकिन उनका जिद्दी स्वभाव कभी-ंउचयकभी अच्छी बातों की उपेक्षा कर देता है। मैंने लगभग चार दशक पूर्व प्रयागराज में ‘उत्तर प्रदेष स्थापना दिवस’ का आयोजन किया था तथा उस भव्य समारोह की अध्यक्षता वरिश्ठ न्यायमूर्ति हरिष्चंद्र त्रिपाठी ने की थी और
मुख्य अतिथि महान साहित्यकार महादेवी वर्मा थीं। उस आयोजन का मूल उद्देष्य उत्तर प्रदेश की एकता के पक्ष में वातावरण बनाना था, ताकि प्रदेष के बंटवारे की इच्छा रखने वाले तत्व हतोत्साहित हों। सरकार से मेरी मांग थी कि हर जनपद, हर षिक्षण संस्था, हर दफ्तर आदि में उक्त आयोजन किया जाए, ताकि उत्तर प्रदेश की एकता को बल मिले। राज्यपाल राम नाईक की संस्तुति पर योगी सरकार ने मेरी मांग मान तो ली, लेकिन अफसरों ने उस आयोजन को षिल्पग्राम में सीमित कर उसे ‘एक जनपद, एक उत्पाद’ का पुरस्कार-ंउचयवितरण समारोह बना दिया। मैंने जिस उद्देष्य से ‘उत्तर
प्रदेष स्थापना दिवस’ आयोजन आरंभ किया था, अफसरों ने उस उद्देष्य पर पानी फेर दिया। इसी का परिणाम है कि प्रदेष के विभाजनकारी तत्वों ने फिर सिर उठाया है।