संघ को समझने के लिए डॉ0 हेडगेवार को समझना जरूरी

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को समझने के लिए डॉ0 हेडगेवार को समझना जरूरी है।

नागपुर के कार्यालय को छोड़कर देश भर में संघ की कोई संपत्ति नहीं। संघ की संपत्ति को 2600 प्रचारक हैं।

संघ का काम राष्ट्रीय चरित्र निर्माण करना है। अन्य संगठनों की तरह भाजपा भी संघ का स्वतंत्र संगठन है।

संघ के राष्ट्रीय सहसंपर्क प्रमुख सुनील देशपांडे ने अजमेर में प्रबुद्ध नागरिकों से विचार संवाद किया।

एस0 पी0 मित्तल

11 सितंबर को अजमेर के स्वामी कॉम्प्लेक्स में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह संपर्क प्रमुख सुनील देशपांडे ने प्रबुद्ध नागरिकों के साथ विचार संवाद किया। उन्होंने कहा कि संघ को लेकर लोगों के मन में कई तरह के विचार होते हैं, लेकिन संघ को समझने के लिए संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव हेडगेवार को समझना जरूरी है। हेडगेवार जब स्कूल में आठवीं कक्षा के विद्यार्थी थे, तब अंग्रेज शिक्षा अधिकारी स्कूल का अवलोकन करने आए। उस समय वंदे मातरम शब्द का उपयोग करना देशद्रोह माना जाता था। लेकिन स्कूल के 250 विद्यार्थियों को हेडगेवार ने तैयार किया और अंग्रेज शिक्षा अधिकारियों के आने पर सभी विद्यार्थियों ने वंदे मातरम का उद्घोष किया।

स्कूल के शिक्षकों ने एक एक विद्यार्थी की पिटाई कर यह जानने का प्रयास किया कि वंदे मातरम कहने की सीख किसने दी। लेकिन एक भी विद्यार्थी ने हेडगेवार का नाम नहीं लिया। इसके बाद अंग्रेजों ने स्कूल को बंद करने का निर्णय लिया, तब हेडगवार ने स्वयं स्वीकार किया कि उन्होंने वंदे मातरम बोलने के लिए कहा था। हेडगेवार ने यह इसलिए स्वीकारा ताकि 250 विद्यार्थियों की पढ़ाई खराब न हो।

आज संघ भी देश में ऐसा ही चरित्र निर्माण कर रहा है। स्कूल की पढ़ाई के बाद कलकत्ता में डॉक्टरी की पढ़ाई करने का निर्णय हेडगेवार ने इसलिए लिया कि अंग्रेजों के शासन में कलकत्ता ही क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों का प्रमुख केंद्र था। उस समय इंडियन नेशनल कांग्रेस ही स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व कर रही थी, इसलिए हेडगेवार भी कांग्रेस से जुड़े। लेकिन विचारों का मतभेद होने के कारण हेडगेवार ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। आज भी संघ हेडगेवार द्वारा बनाई गई चरित्र निर्माण की नीति पर चल रहा है।

1925 की विजयादशमी पर संघ स्थापना करते समय भी डा० हेडगेवार जी का उद्देश्य राष्ट्रीय स्वाधीनता ही था। संघ के स्वयंसेवकों को जो प्रतिज्ञा दिलाई जाती थी उसमें राष्ट्र की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए तन-मन-धन पूर्वक आजन्म और प्रामाणिकता से प्रयत्नरत रहने का संकल्प होता था।

संघ का उद्देश्य कोई बड़ा संगठन बनाने का नहीं है। संघ का उद्देश्य ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करना है जो देश की भलाई के काम आसके। इसी उद्देश्य से आज देश भर में संघ ने 35 से ज्यादा स्वयंसेवी संगठन खड़े किए है। इनमें विश्व हिन्दू परिषद, सेवा भारती जैसे संगठन हैं तो भाजपा भी एक संगठन है। कुछ लोगों को लगता है कि संघ भाजपा को नियंत्रित करता है, यह धारणा पूरी तरह गलत है।

संघ से जुड़े संगठन चाहते हैं कि उनके बीच समन्वय बना रहे, इसलिए संघ के प्रचारक समन्वय का काम करते हैं। प्रचारक ही संघ की संपत्ति है। सुनील देशपांडे ने कहा कि संघ के नागपुर कार्यालय के भवन को छोड़कर देश भर में संघ के नाम पर कोई संपत्ति नहीं है। देशभर में संघ के जो कार्यालय दिखाई देते हैं वे किसी न किसी स्वयंसेवी संगठन के नाम है। कई बार यह सवाल उठता है कि संघ की आय का स्त्रोत क्या है। वर्ष में एक बार गुरु दक्षिणा के माध्यम से धन संग्रह किया जाता है। इसमें संघ के स्वयंसेवक सहयोग करते हैं। इसके अलावा संघ में आय का कोई स्रोत नहीं है।

उन्होंने माना कि पहले के मुकाबले में अभी संघ की शाखाओं में युवाओं की संख्या में कमी आई है। इसका मुख्य कारण युवाओं में मोटे पैकेज वाली नौकरी प्राप्त करना हो गया। अभिभावक भी एक अथवा दो बच्चों से ही खुश है। ये बच्चे भी जन्म के बाद से ही अच्छे मार्क्स लाने में लग जाते हैं। सामाजिक बदलाव के बावजूद संघ के स्वयंसेवकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। संघ का उद्देश्य गुणवत्ता युक्त युवाओं को तैयार करना है।

उग्र राष्ट्रीयता  राष्ट्र संघ की विफलता का एक कारण विभिन्न राष्ट्रों की उग्र राष्ट्रीयता थी। प्रत्येक राष्ट्र स्वयं को संप्रभु समझते हुए अपनी इच्छा अनुसार कार्य करने में विश्वास करते थे। कोई भी राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिए अपने प्रभुसत्ता पर किसी का नियंत्रण स्थापित करने को तैयार नहीं था।

डॉ. हेडगेवार ने 1925 में जब संघ की स्थापना की थी, तब एक अनुमान लगाया गया था कि अगले सौ वर्ष में राष्ट्र निर्माण के लिए इतने समर्पित युवा तैयार हो जाएंगे जो देश को विकास के रास्ते पर ले जाएंगे। लेकिन इन 97 वर्षों में झूठे आरोपों के तहत संघ पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया। इससे राष्ट्रभक्त युवाओं को तैयार करने का काम कुछ धीमा पड़ा, लेकिन अब उम्मीद है कि अगले 20 वर्षों में ऐसे स्वयंसेवक तैयार हो जाएंगे जो देश को आगे ले जाने की स्थिति में होंगे। उन्होंने कहा कि 2025 में संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं। संघ तीन वर्ष की कार्य योजना बना रहा है। इसके अंतर्गत देश भर के साधु संतों के माध्यम से राष्ट्र निर्माण का अभियान चलाया जाएगा।

उन्होंने कहा कि कुछ लोगों को लगता है कि युवाओं की रुचि सनातन संस्कृति में कम हो रही है, लेकिन ऐसा नहीं है। हम देखते हैं कि जो संस्थाएं धर्म प्रचार और नैतिक उत्थान में सक्रिय हैं। उनके माध्यम से देश में बहुत बड़ा काम हो रहा है। चाहे स्वामी नारायण संस्थान हो या फिर जैन समुदाय। स्वामी नारायण संस्थान के माध्यम से प्रतिवर्ष हजारों उपदेशक तैयार होते हैं। इसी प्रकार हजारों युवक और युवतियां जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण करती है। यह सब लोग हमारी सनातन संस्कृति के पोषक ही है। कार्यक्रम में प्रबुद्ध नागरिकों के साथ साथ संघ के प्रमुख पदाधिकारी तथा चित्ती योग संस्थान की प्रमुख स्वामी अनादि सरस्वती, संन्यास आश्रम के स्वामी शिव ज्योतिषानंद, लाड़ली घर के प्रमुख संत कृष्ण महाराज, रामद्वारा के संत उत्तम जी शास्त्री भी उपस्थित रहे।