”POCSO एक्ट के तहत नाबालिगों के बीच सहमति से सेक्स अपरिभाषित है”- बॉम्बे हाई कोर्ट

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बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि पाॅक्सो एक्ट लागू करना बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित करने की दिशा में एक ”महत्वपूर्ण और प्रगतिशील कदम” है, हालांकि, नाबालिगों के बीच सहमति से यौन संबंध की घटनाएं इस कानून के तहत एक ग्रे एरिया/अपरिभाषित रहा है क्योंकि कानून की नजर में नाबालिग की सहमति वैध नहीं है।

न्यायमूर्ति संदीप के शिंदे की खंडपीठ ने यह टिप्पणी एक 19 वर्षीय लड़के को जमानत देते हुए की है,जिसे उसकी नाबालिग फर्स्ट कजन के साथ बार-बार बलात्कार करने के मामले में पाॅक्सो एक्ट (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) की धारा 4 और 6 के साथ-साथ आईपीसी की धारा 376 (2) (एन) व धारा 354 के तहत दोषी ठहराया गया था।

मामले में घटना सितंबर 2017 की हैं जब पीड़िता 8 वीं कक्षा में थी और 2 साल से आरोपी (उसके मामा का बेटा) के घर में रह रही थी।

मामले के अनूठे तथ्यों को देखते हुए पीठ ने कहा कि जांच के दौरान, पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज कराए अपने बयान में बताया था कि ”यह सब आपसी सहमति से हुआ था और एक बार नहीं बल्कि कम से कम 4-5 बार हुआ था।”

इस बिंदु पर न्यायालय ने कहा कि-

”मैं इस तथ्य से अवगत हूं कि पाॅक्सो एक्ट का पारित होना बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित करने और यौन शोषण के खिलाफ बच्चों की सुरक्षा के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण और प्रगतिशील कदम है। कानून का मूल अर्थ और भावना, जिसमें परिभाषित किया गया है कि 18 साल से कम उम्र का कोई भी बच्चा हो,उसे यौन शोषण से बचाना है।”

न्यायाधीश ने आगे यह भी कहा कि, ”मैं इस तथ्य से भी अवगत हूं कि नाबालिगों के बीच सहमति से किया गया यौन संबंध एक कानूनी ग्रे एरिया रहा है क्योंकि नाबालिग द्वारा दी गई सहमति को कानून की नजर में एक मान्य सहमति नहीं माना जाता है।”

इसके मद्देनजर, अदालत ने यह देखते हुए आरोपी को जमानत दे दी कि चूंकि पीड़िता अपने बयान से मुकर गई है और उसने धारा 164 के तहत दर्ज कराए गए बयान को नकार दिया है,इसलिए आरोपी जमानत दिए जाने का हकदार है। इसके अलावा, पीठ ने कहा कि यौन उत्पीड़न का निष्कर्ष निकालने वाले डॉक्टर की राय एफएसएल रिपोर्ट के अधीन थी जो मुकदमे की सुनवाई पूरी होने तक इस मामले में कोर्ट के समक्ष दायर ही नहीं की गई थी।

पीठ ने मामले के आसपास की परिस्थितियों पर भी ध्यान दिया और पाया कि पीड़िता आरोपी की ही फर्स्ट कजन है और दोनों घटना के समय 15 वर्ष और 19 वर्ष की आयु के थे। जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है। इसलिए, अदालत ने आरोपी को 25000 रुपये के एक निजी मुचलके व दो जमानतदार पेश करने की शर्त पर जमानत दे दी है।