फूलन देवी का प्रतिशोध व शौर्य दिवस

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फूलन देवी का प्रतिशोध व शौर्य दिवस
फूलन देवी का प्रतिशोध व शौर्य दिवस

फूलन देवी का प्रतिशोध व शौर्य दिवस

आयरन लेडी फूलन देवी के अंदर जल रही प्रतिशोध की आग दुश्मनों पर कहर बनकर टूटी चौ. लौटनराम निषाद

लखनऊ। 14 फरवरी,1981 की इंसाफ की रात, आयरन लेडी फूलन देवी के अंदर जल रही प्रतिशोध की आग दुश्मनों पर कहर बनकर टूटी। जिन 22 ठाकुरों ने उसकी अस्मत को तार-तार किया था, कुएं के पास उस स्थान पर ले गई, जहाँ उन्होंने उसके साथ 23 दिन सामूहिक दुराचार किया गया था। सबको एक लाइन में खड़ा किया। बंदूक उठाई और सबके सीने को छलनी कर दिया। फूलन ने अपना बदला ले लिया। यह प्रदेश की बहुत बड़ी घटना थी जिसने शासन- प्रशासन को हिला कर रख दिया। देश-विदेश में चर्चा का विषय बनी।14 फरवरी,1981 को फूलन देवी ने 22 आतताइयों को मौत के घाट उतारकर शौर्य का परिचय दिया।

आयरन लेडी फूलन देवी के जीवन की प्रमुख घटनाएं-

जन्म -10.8.1963
प्रतिशोध- 14.2.1981
समर्पण- 12.2.1983
रिहाई- 14.2.1994
धम्म दीक्षा- 15.2.1995
संसद प्रवेश- 22.5.1996
शहादत- 25.7.2001

जन्म, लैंगिक भेदभाव, अशिक्षा

फूलन देवी का जन्म उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के जालौन जिले में गांव गुढ़ा का पुरवा में मल्लाह जाति में हुआ था। पिता देवीदीन और माता मूला देवी की 5 संतान थी, चार लड़कियां क्रमश: रुक्मिणी, फूलन देवी, रामकली, मुन्नी तथा एक लडका शिवनारायण। रुक्मिणी के बाद दूसरी संतान भी पुत्री होने के कारण फूलन देवी के जन्म पर घर में खुशी नहीं थी। माता-पिता की चाहत थी कि दूसरी संतान लड़का हो। भारतीय समाज की पुरुष प्रधान संस्कृति के कारण लड़कियों को हमेशा परिवार पर बोझ समझा गया है।स्त्रियों के प्रति दोयम दर्जे की सोच को फूलन देवी ने गलत साबित किया। फूलन देवी इतिहास में एकमात्र ऐसी नायिका हैं जिसने चंबल घाटी में अपना अघोषित साम्राज्य कायम किया। वहीं दूसरी तरफ सांसद चुनी जाकर भारतीय संसद में पहुंची। चंबल के बीहड़ों में शेरनी की तरह दहाडी तो संसद में भी स्त्रियों, दलितों, शोषितों, उपेक्षितों तथा गरीबों की समस्याओं को पूरी बुलंदी के साथ उठाती रही। उसने समाज को बता दिया कि स्त्रियां पुरुषों से किसी तरह कम नहीं हैं।

चंबल घाटी के आस-पास के गांव गुढ़ा का पुरवा, ट्यौंगा, महेशपुरा, बेहमई व अन्य गांवों में बसे मल्लाहों की आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय थी। झोपड़ियों में रहते थे। इस जाति का पुश्तैनी पेशा नाव चलाना रहा है। उनके पास जमीन नहीं थी, इसलिए ज्यादातर मल्लाह ठाकुरों के खेतों में मजदूरी करते थे। ठाकुर इनका शोषण करते थे। कम मजदूरी देना, मारपीट करना तथा युवतियों का देह शोषण करना आम बात थी। प्रतिरोध करने पर झूठे मुकदमे में फंसा देते या मौत के घाट उतार देते थे।फूलन देवी का पूरा परिवार अशिक्षित था। उस जमाने में शिक्षा ग्रहण करना अतिपिछड़ों-दलितों के लिए वर्जित था।

साहसी बचपन और बेमेल शादी

कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। यह कहावत फूलन के जीवन पर सौ फ़ीसदी सही बैठती है। उसकी बहादुरी के अनेकों किस्से हैं।

1.फूलन पिता के साथ नदी पर जाती थी। एक बार पिता की गैरमौजूदगी में घाट से बंधी हुई नाव खोली और नदी में उतार दी। लोगों को लगा कि बीच दरिया नाव उलट जाएगी। मगर फूलन ने डावांडोल होती हुई नाव को संभाला और वापस किनारे पर ले आई।

2.एक बार नदी में नहाते वक्त अचानक एक सहेली गहरे पानी में चली गई। फूलन अपनी जान की परवाह किए बगैर तुरंत पानी में कूद गई और तैरते हुए सहेली को खींचकर किनारे पर ले आयी।

3.एक बार एक औरत को नदी किनारे कपड़े धोते वक्त मगरमच्छ ने पकड़ लिया और खींचकर पानी में ले जाने लगा। फूलन ने पास में पड़ी लाठी से मगरमच्छ की आंख पर जोर से वार किया। मगरमच्छ तीखे प्रहार को झेल नहीं पाया और उस औरत को छोड़कर, अपनी जान बचाकर पानी में गायब हो गया। फूलन ने पिता से सुन रखा था कि यदि मगरमच्छ पकड़ ले तो उसकी आंख पर वार करके अपनी जान बचाई जा सकती है।

4.एक बार मल्लाहों की झोपड़ियों में आग लग गई। आग तेजी से फैलने लगी। सभी झोपड़ियों से भागकर बाहर आ गए किंतु एक बालक पीछे छूट गया। उस भयानक आग में घुसकर बच्चे को जिंदा बाहर निकालने की हिम्मत कोई नहीं कर पा रहा था। फूलन से यह देखा नहीं गया। वह साहस करके आग की लपटों को चीरती हुई झोपड़ी में घुसी और बच्चे को जीवित बाहर ले आई। जैसे ही वह बच्चे को लेकर बाहर आई, झोपड़ी गिर पड़ी। थोड़ा विलंब होता तो बच्चा और फूलन दोनों आग में जल जाते।
इन घटनाओं से स्पष्ट है कि बचपन से ही बहुत बहादुर और साहसी थी।

फूलन की शादी कम उम्र (11वर्ष ) में ही 3 गुना उम्र वाले महेशपुरा गांव के पुत्तीलाल से कर दी गई। यह बेमेल विवाह था। पुत्तीलाल शराबी था, मारपीट करता था और फूलन के चरित्र पर शक भी करने लगा था। फूलन के लिए ससुराल नरक बन गया। तंग आकर फूलन अपने मायके चली आई।

डकैतों का आतंक-

चंबल के आस-पास के गांव डकैतों की बंदूकों के साए में रहे हैं। “गुढ़ा का पुरवा” का भी यही हाल था। डकैत आए दिन गांव पर धावा बोलते, लूटपाट करते, बहन-बेटियों को उठाकर ले जाते थे। पुलिस और प्रशासन सूचना देने पर भी देर से आते और औपचारिकता पूरी करके चले जाते। मार्च 1979 में एक रात “गुढ़ा का पुरवा” गांव पर बाबू गुजर के गिरोह ने धावा बोला, जिसमें फूलन का अपहरण कर लिया गया। गिरोह में सब सवर्ण थे केवल विक्रम और भारत मल्लाह थे। बाबू गुजर द्वारा मल्लाह फूलन के साथ दुराचार से विक्रम और भारत खिन्न थे। विक्रम बाबू गुजर की हत्या कर गिरोह का सरगना बन गया।
विक्रम गोहानी गांव का रहने वाला था और नाव चलाने का काम करता था। सामंतो और साहूकारों के अन्याय से तंग आकर बाबू गुर्जर के गिरोह में शामिल हो गया। बाबू गुर्जर को मारकर वह फूलन का सहयोगी बन गया। विक्रम ने फूलन का साथ इसलिए दिया कि वह नारी शक्ति का सम्मान करता था। वह शराब या अन्य प्रकार का नशा नहीं करता था। किसी को नाजायज परेशान नहीं करता था। उसूलों का पक्का था। अनुशासन में विश्वास करता था। विक्रम ने फूलन को बंदूक और हथियार चलाने में पारंगत किया। इतना ही नहीं विक्रम ने उसे हौंसला भी दिया। वह चाहता था कि फूलन इतनी सक्षम बन जाए की विकट परिस्थितियों में भी अपनी रक्षा स्वयं कर सके।

घोर अत्याचार श्री राम और लालाराम जेल से छूटकर, विक्रम की शरण में आए और गिरोह में शामिल करने की प्रार्थना की। रहमदिल विक्रम ने शामिल कर लिया। श्री राम और लालाराम दोनों ठाकुर थे। निम्न जाति के विक्रम के हुकूम-हजूरी करना पसंद नहीं था। विक्रम के नेतृत्व में गिरोह ने एक बार जालौन इलाके में खांडकोई गांव में डकैती डाली। श्री राम और लालाराम साथ में थे। डकैती के दौरान फूलन ने ब्रज बल्लभ की हत्या कर दी जो श्रीराम का रिश्तेदार था। इस घटना से नाराज श्री राम और लालाराम ने अवसर पाकर विक्रम की हत्या कर दी। फूलन को बंधक बनाकर, बेहमई ले जाकर, 22 ठाकुरों के साथ मिलकर 15 वर्षीय फूलन के साथ 23 दिनों तक सामूहिक दुराचार किया। बड़ी मुश्किल से फूलन कुछ अछूतों की सहायता से इनके चंगुल से भाग निकली।

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प्रतिशोध एवं समर्पण-

चंबल की घाटी में एक डकैत ( मुस्तकीम ) ऐसा भी था जिसने 28 वर्ष की उम्र में ही ख्याति प्राप्त कर ली थी। वह गरीबों का मददगार, सदाचारी और उसूलों का पक्का था। उसका सम्मान न केवल गरीब जनता बल्कि दस्यु सरगना भी करते थे। लोग उसे पीर बाबा कहकर पुकारते थे। विक्रम पीर बाबा का मुरीद था। फूलन, पीर बाबा की शरण में गई। वास्तव में मान सिंह यादव ने पीर बाबा के कहने पर ही फूलन को अपने ग्रुप में जगह दी थी। फूलन ने पीर बाबा को श्रीराम और लालाराम द्वारा विक्रम की धोखे से की गई हत्या तथा उसे बंधक बनाकर बेहमई के ठाकुरों द्वारा किए गए दुराचरण की कहानी सुनाई। पीर बाबा ने फूलन को आशीर्वाद दिया और गुनहगारों को सजा देने का आश्वासन भी।

पीर बाबा का आशीर्वाद लेकर फूलन ने 14 फरवरी, 1981 को अपने सहयोगियों के साथ अपने दुश्मनों से बदला लेने के लिए कूच किया। वह इंसाफ की रात थी। फूलन के अंदर जल रही प्रतिशोध की आग दुश्मनों पर कहर बनकर टूटने लगी। फुलन ने उन 22 ठाकुरों को जिन्होंने उसकी अस्मत को तार-तार किया था, घसीटकर घरों से बाहर लाई। सबको कुएं के पास उस स्थान पर ले गई, जहां उन्होंने उसके साथ 23 दिन सामूहिक दुराचार किया गया था,नँगा कर पानी भरवाया था। सबको एक लाइन में खड़ा किया। सब थर-थर कांपते हुए रहम की भीख मांग रहे थे। मगर फूलन ने बंदूक उठाई और उन सबके सीने को छलनी कर दिया। इस हत्याकांड के दिन लालाराम, श्रीराम फूलन के पहुंचने से पूर्व भाग निकले थे। फूलन ने अपना बदला ले लिया। यह प्रदेश की बहुत बड़ी घटना थी जिसने शासन- प्रशासन को हिला कर रख दिया। देश- विदेश में बेहमई नरसंहार चर्चा का विषय बनी।
12.2.1983 को फूलन ने मान सिंह यादव, गोपी, बशीर, धानुका आदि के साथ मध्य प्रदेश के जिला भिंड के जीवाजी राव महाविद्यालय में हजारों लोगों की उपस्थिति में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के समक्ष समर्पण कर दिया।

राजनीति में पदार्पण-

फूलन को राजनीति में लाने का श्रेय मान्यवर कांशीराम जी को है। फूलन उस समय ग्वालियर जेल में थी। मान्यवर जी ने 10वीं लोकसभा (1991) के लिए बहुजन समाज पार्टी से नई दिल्ली संसदीय सीट से फूलन देवी का नामांकन पत्र भरवाया। इस तरह फूलन देवी की राजनीति की यात्रा प्रारंभ हुई। यद्यपि फूलन चुनाव हार गई थी। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सत्ता में होने और फूलन पर 48 मुकदमे होने के कारण, यह सोचकर कि समाजवादी पार्टी उसे मुकदमों से बरी करवा सकती है। फुलन ने समाजवादी पार्टी में जाने का निर्णय लिया और ऐसा हुआ भी। 6.2.1994 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने फूलन के विरुद्ध चल रहे मुकदमे वापस लेने का आदेश जारी कर दिया। 13 साल जेल में रहने के बाद आखिर 14.2.1994 को सुप्रीम कोर्ट ने पैरोल पर रिहा कर दिया। 11वीं लोक सभा (1996) का चुनाव मिर्जापुर-भदोही सीट से लड़ा और विजयी होकर 22 मई, 1996 को संसद में पहली बार कदम रखा। संसद में महिलाओं, दलितों तथा पिछड़ों के हितों की पैरवी प्रभावी ढंग से की। 2 साल बाद फिर मध्यावधि चुनाव हो गए। 12वीं लोक सभा (1998) का चुनाव फूलन ने मिर्जापुर से ही लड़ा, मगर हार गई। सरकार चल नहीं सकी इसलिए 1999 में फिर चुनाव हुए। फूलन ने मिर्जापुर से ही फिर चुनाव लड़ा और जीत गई। सांसद रहते हुए फूलन ने फ्रांस, जापान, मलेशिया,अमेरिका,सऊदी, स्पेन तथा तुर्की आदि देशों की यात्राएं की।

धम्म प्रेम- सांसद बनने के बाद फूलन देवी बाबा साहब की अनुयाई बन गई। हिंदू धर्म त्यागकर बौद्ध की दीक्षा 15.2.1996 को ग्रहण की। वे जातीय भेदभाव से छुटकारा पाने का एकमात्र तरीका बौद्ध धम्म में वापसी मानती थीं। दीक्षित होने के बाद फूलन प्रतिदिन त्रिरण वंदना तथा धम्मपद का अध्ययन करती थीं। उनका संदेश था कि भारत का हर बच्चा बौद्ध धम्म अपना लें तो देश की समस्याएं हल हो जाएंगी। देश की सभी कुप्रथाएं पाखंड, जातिवाद, शोषण और भाग्यवाद समाप्त हो जाएगा। लोग भाग्य पर नहीं काम करने में विश्वास करेंगे तो निश्चित रुप से देश का विकास होगा।

शहादत और विविधताओं से भरा जीवन

25 जुलाई, 2001 को संसद कार्यवाही में भाग लेकर दोपहर 1:30 बजे भोजन करने फूलन अपने सरकारी आवास 44 अशोका रोड लौटी। कार में से उतरते वक्त अचानक वहां मौजूद 3 हथियारबंद हमलावरों ने गोलियां चलानी शुरू कर दी और फूलन वही शहीद हो गई। फूलन देवी एक नारी नहीं बल्कि एक शक्ति और विचारधारा की प्रतीक थी। वह उम्र भर न्याय और उसूलों के लिए लड़ती रही। उनकी शहादत व्यर्थ नहीं गई। करोड़ों लोगों ने उनके जीवन से प्रेरणा ली हैं।

फूलन का जीवन विविधताओं और रोमांच से भरा था। उसने गरीबी को भोगा तो अमीरी का भी आनंद लिया। जंगलों और पहाड़ों की खाक छानी तो महलों का सुख भी भोगा। अपराध सहा तो अपराध किया भी। 13 साल जेल में बिताए तो दो बार सांसद भी रही। उनके नाम से लोग डरते भी थे तो उनकी सभाओं में हजारों लोग उन्हें सुनने भी आते थे। गांव में मीलों पैदल चली तो हवाई जहाजों से दुनिया के अनेक देशों का भ्रमण भी किया। उसने जीवन में गुलामी के अंधेरे देखें तो शोहरत की ऊंचाइयों तक पहुंचने में भी कामयाब रही। उसका जीवन जंगल- जुर्म- जेल-जलालत में बीता, वहाँ शोहरत साहस और जनसमर्थन ने उसे संसद तक भी पहुंचाया। उसने गोलियां चलाई तो खाई भी। फूलन ने जैसा रोमांचित जीवन जिया, दुनिया में शायद ही किसी दूसरे ने ऐसा बहुआयामी जीवन जिया हो। इसलिए उसके जीवन और संघर्ष पर लिखी गई किताबें संसार भर में पढ़ी गई और उस पर बनी फिल्में दुनिया भर में देखी गई। फूलन मर कर भी अमर हो गई।

फूलन देवी का प्रतिशोध व शौर्य दिवस