कहा जाता है कि भगवान शिव स्वयंभू है जिसका अर्थ है कि वह मानव शरीर से पैदा नहीं हुए हैं। जब कुछ नहीं था तो भगवान शिव थे और सब कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी उनका अस्तित्व रहेगा। भगवान शिव को आदिदेव भी कहा जाता है जिसका अर्थ हिंदू माइथोलॉजी में सबसे पुराने देव से है। वह देवों में प्रथम हैं।
हम सबके प्रिय भगवान शिव का जन्म भगवान शिव नहीं हुआ है वे स्वयंभू हैं। लेकिन पुराणों में उनकी उत्पत्ति का विवरण मिलता है। विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्मा भगवान विष्णु की नाभि कमल से पैदा हुए जबकि शिव भगवान विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए बताए गए हैं। विष्णु पुराण के अनुसार माथे के तेज से उत्पन्न होने के कारण ही शिव हमेशा योगमुद्रा में रहते हैं।
श्रीमद् भागवत के अनुसार एक बार जब भगवान विष्णु और ब्रह्मा अहंकार से अभिभूत हो स्वयं को श्रेष्ठ बताते हुए लड़ रहे थे तब एक जलते हुए खंभे से शिव का जन्म भगवान शिव प्रकट हुए।
विष्णु पुराण में वर्णित शिव के जन्म की कहानी शायद भगवान शिव का एकमात्र बाल रूप वर्णन है। इसके अनुसार ब्रह्मा को एक बच्चे की जरूरत थी। उन्होंने इसके लिए तपस्या की। तब अचानक उनकी गोद में रोते हुए बालक शिव प्रकट हुए। ब्रह्मा ने बच्चे से रोने का कारण पूछा तो उसने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि उसका कोई नाम नहीं है इसलिए वह रो रहा है।
क्या आप जानते हैं भगवान शिव के 10 रुद्रावतार :- तब ब्रह्मा ने शिव का नाम ‘रूद्र’ रखा जिसका अर्थ होता है ‘रोने वाला’। शिव तब भी चुप नहीं हुए। इसलिए ब्रह्मा ने उन्हें दूसरा नाम दिया पर शिव को नाम पसंद नहीं आया और वे फिर भी चुप नहीं हुए। इस तरह शिव को चुप कराने के लिए ब्रह्मा ने 8 नाम दिए और शिव 8 नामों (रूद्र, शर्व, भाव, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव) से जाने गए। शिव पुराण के अनुसार यह नाम पृथ्वी पर लिखे गए थे।शिव के इस प्रकार ब्रह्मा पुत्र के रूप में जन्म लेने के पीछे भी विष्णु पुराण की एक पौराणिक कथा है। इसके अनुसार जब धरती, आकाश, पाताल समेत पूरा ब्रह्माण्ड जलमग्न था तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) के सिवा कोई भी देव या प्राणी नहीं था।
तब केवल विष्णु ही जल सतह पर अपने शेषनाग पर लेटे नजर आ रहे थे। तब उनकी नाभि से कमल नाल पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए। ब्रह्मा-विष्णु जब सृष्टि के संबंध में बातें कर रहे थे तो शिव जी प्रकट हुए। ब्रह्मा ने उन्हें पहचानने से इंकार कर दिया। तब शिव के रूठ जाने के भय से भगवान विष्णु ने दिव्य दृष्टि प्रदान कर ब्रह्मा को शिव की याद दिलाई।ब्रह्मा को अपनी गलती का एहसास हुआ और शिव से क्षमा मांगते हुए उन्होंने उनसे अपने पुत्र रूप में पैदा होने का आशीर्वाद मांगा। शिव ने ब्रह्मा की प्रार्थना स्वीकार करते हुए उन्हें यह आशीर्वाद प्रदान किया। जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना शुरू की तो उन्हें एक बच्चे की जरूरत पड़ी और तब उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद ध्यान आया। अत: ब्रह्मा ने तपस्या की और बालक शिव बच्चे के रूप में उनकी गोद में प्रकट हुए।
वही शिव है वही संत है ।
अद्भुत सौगात । शिव से शिव का संवाद ।
अनहद नाद । पिंड से ब्रह्माण्ड तक ।
ब्रह्माण्ड से पिंड तक । विष का शमन ।
ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन । महा शिव रात्रि ।
कोई त्यौहार नहीं है । केवल किसी उपासना का ।
आधार नहीं है। इस विज्ञान से भी बड़ा महा विज्ञान है।
पिंड में जीवन का एक मात्र संज्ञान है। शिव की शक्ति।
शक्ति का शिव । किसी की भक्ति।
किसी का इव । सृजन का आधार ।
संस्कृति का आभार। प्रकृति का उद्धार ।
अप्रकृति का संहार । यह मृत्यु का जीवन है।
अमृत का सागर है। निशानिमन्त्रण है।
आत्म नियंत्रण है।। विष है, सुधा है।
तृप्ति है, क्षुधा है। आग्रह है, अबीर है।
सुख है, पीर है । कुछ अंत है, कहीं अनंत है ।
वही शिव है, वही संत है। अबकी फिर आयी है ।
शिव की रात। मन से देखें ।
प्रकृति की बारात । इस माघ की महानिशा ।
बदलेगी दिशा । उर्ध्वगामी ऊर्जा का प्रवाह ।
संभावनाएं अथाह । सुख की मात्रा ।
महादेव की महायात्रा । सती की आह ।
गंगा का प्रवाह। बिल्वपत्र से पलाश तक ।
धरती से कैलाश तक। ज्योतिर्पीठों के लिंग ।
हिमग्राम का आत्मलिंग। परमाणु से परमाणु तक।
महकाया से विषाणु तक । संध्या से प्रभा तक ।
शिव भक्ति है।