ओबीसी आरक्षण पर ही क्यों चलता है हथौड़ा..?

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ओबीसी आरक्षण पर ही क्यों चलता है न्यायालय का हथौड़ा…?

चौ.लौटनराम निषाद

देश के अलग अलग राज्यों में अलग अलग आरक्षण का कोटा की व्यवस्था है।कई राज्यों-राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व झारखण्ड में मण्डल कमीशन के अनुसार 27 प्रतिशत भी आरक्षण कोटा नहीं है।आखिर आरक्षण का आसमान वितरण क्यों?जबकि इन राज्यों में भी ओबीसी की जनसंख्या 50 प्रतिशत से अधिक है।राजस्थान में ओबीसी को 21 प्रतिशत,मध्यप्रदेश व झारखंड में 14-14 प्रतिशत,छत्तीसगढ़ में 13 प्रतिशत व पंजाब में महज 12 प्रतिशत आरक्षण कोटा दिया गया है।मण्डल कमीशन के अनुसार उत्तर प्रदेश, असम, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, गोवा,ओडिशा में 27 प्रतिशत आरक्षण कोटा की ओबीसी को व्यवस्था है। वही तमिलनाडु में 50 प्रतिशत,केरल में 40 प्रतिशत, बिहार में 33 प्रतिशत,कर्नाटक में 32 प्रतिशत व आंध्र प्रदेश में 29 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण है।आखिर आरक्षण का आसमान वितरण क्यों?नागालैंड, अरुणाचल,मेघालय,मिजोरम आदि पूर्वोत्तर के राज्यों में अनुसूचित जनजातियों को 80 प्रतिशत आरक्षण कोटा दिया गया है।

आरक्षण का असमान वितरण क्यों…?
आंध्र प्रदेश में तो ओबीसी,एससी, एसटी को कुल 50 फ़ीसदी आरक्षण दिया जाता है।इसमें महिलाओं को 33.33 फीसदी अतिरिक्त आरक्षण है।पूर्वोत्तर की बात की जाए तो अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम में अनुसूचित जनजाति के लिए 80 फीसदी आरक्षण है।लोकसभा चुनाव के पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने सामान्य जाति सामान्य या सवर्ण जातियों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का असंवैधानिक व न्यायपालिका के निर्णय के परे फैसला किया है। इसके तहत सरकारी नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में 10 फीसदी आरक्षण दिया गया है। सरकार के इस फैसले और सुप्रीम कोर्ट के (इंदिरा साहनी फैसले, 1992) की 50 फ़ीसदी सीमा के बीच कहीं कोई टकराव नहीं है।दलील दी गयी कि 50 फीसदी की यह सीमा सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के मामले में है, यह आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण देने में नहीं है।आरक्षण तो आरक्षण है,चाहे वह सामाजिक-शैक्षणिक पिछड़ापन के आधार पर हो या आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर।

ओबीसी आरक्षण मुद्दे पर ही क्यों चलता है न्यायालय का हथौड़ा…?

विधानसभा चुनाव-2018 से पूर्व राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के सवर्ण संगठनों ने कोटा की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया।तीनों ही राज्यों में भाजपा की सरकार थी।सरकार ने स्वर्ण कोटा पर कोई निर्णय नहीं लिया।जिससे सवर्णों ने विधानसभा चुनाव में भाजपा का विरोध किया।विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से पटकनी खाने के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए केन्द्र सरकार ने अफरातफरी में 2 दिन के अंदर सवर्ण जातियों को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण दे दिया।इस पर कोर्ट ने 50 प्रतिशत की सीमा लाँघने का आरोप नहीं लगाया।दलील यह दी गयी कि 50 प्रतिशत की सीमा सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़ी जातियों पर ही लागू होती है,आर्थिक आधार पर आरक्षण उससे परे है।मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व झारखंड सरकार ने ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया तो उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दिया।

अलग-अलग राज्यों में आरक्षण का दायरा अलग-अलग-
राज्यों की ओर देखा जाए तो मौजूदा व्यवस्था में सबसे ज्यादा आरक्षण हरियाणा में दिया जाता है।यहां कुल 70 फीसदी आरक्षण है, जबकि तमिलनाडु ,महाराष्ट्र,छत्तीसगढ़ और झारखंड में 68-68 फीसदी आरक्षण है।मध्यप्रदेश में 60 फीसदी,राजस्थान में 64 फीसदी,कर्नाटक में 72 फीसदी आरक्षण है।वहीं,उत्तर प्रदेश में 60 फ़ीसदी, बिहार में 60 फ़ीसदी और पश्चिम बंगाल में 35 फीसदी आरक्षण व्यवस्था है।

क्या है आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था….

गौरतलब है कि केन्द्रीय सेवाओं में अभी 15 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जाति को दिया जाता है।जबकि अनुसूचित जनजाति को 7.5 प्रतिशत आरक्षण है।वहीं, 27 प्रतिशत आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्ग यानि कि ओबीसी को दिया जाता है।सवर्ण जातियों को 1आर्थिक आधार पर ईडब्ल्यूएस के नाम से 10 प्रतिशत कोटा देने के बाद 40.5 प्रतिशत आरक्षण अनारक्षितों को दिया जाता है।

विधानसभा चुनाव में हुए नुकसान के बाद उठाया कदम….
राजनीतिक जानकारों की मानें तो मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की हार के बाद सवर्णों को आरक्षण दिए जाने का कदम सरकार ने उठाया। आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल इलाके में जहां सवर्ण आंदोलन हुए वहां विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 34 सीटों में से 7 सीटें मिली थीं, जबकि 2013 के चुनाव में यहां बीजेपी ने 20 सीटें जीती थीं।यही हाल बीजेपी का राजस्थान में भी रहा।राजपूत बहुत इलाकों में बीजेपी को नुकसान झेलना पड़ा। यहां 15 सीटें ऐसी रहीं जहां जीत हार का अंतर नोटा को मिले वोट से कम था।राज्य में बीजेपी-कांग्रेस ने 41 राजपूतों को टिकट दिया था जिनमें से 17 चुनाव जीतने में कामयाब रहे। छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां 2.1 फीसदी वोट नोटा को । सबसे बड़ी बात तो यह कि बीजेपी के सभी सवर्ण प्रत्याशी चुनाव हार गए।

एससी, एसटी को समानुपातिक आरक्षण तो ओबीसी को क्यों नहीं…?
अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों को कार्यपालिका व विधायिका के साथ शिक्षण संस्थानों में में प्रवेश के लिए राज्यों में उनकी जनसंख्या के अनुपात में समानुपातिक आरक्षण कोटा है।समय समय पर उनकी जनसंख्या वृद्धि के आधार पर उनके कोटा में भी वृद्धि होती रहती है।अब सवाल यह उठता है कि सबसे बड़ी संख्या वाले ओबीसी समुदाय को सिर्फ 27 प्रतिशत ही आरक्षण क्यों?यह नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध तो है ही,संविधान के अनुच्छेद- 145(4) व 16(4) के भी विरुद्ध है।ओबीसी की जातियों को भी जनसँख्यानुपातिक आरक्षण कोटा दिया जाना चाहिए।
क्रीमीलेयर का प्रतिबंध ओबीसी आरक्षण पर ही क्यों….?
अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण पर क्रीमीलेयर(मलाईदार परत) का कोई प्रतिबन्ध नहीं है।वही,8 लाख से अधिक आय वर्ग आले ओबीसी को क्रीमीलेयर के दायरे में लाकर आरक्षण की हकदारी से वंचित कर दिया जाता है।जो संवैधानिक नहीं है।ओबीसी आरक्षण पर क्रीमीलेयर का प्रतिबंध का मतलब है जिसको दाँत है उसको खाने को चना नहीं दिया जाना,बल्कि बिना दाँत वाले को खाने को चना देना।ओबीसी आरक्षण को भी क्रीमीलेयर के दायरे से बाहर किया जाना न्यायसंगत होगा या क्रीमीलेयर की सीमा 15 लाख वार्षिक कर देनी चाहिए।
ओबीसी को भी पदोन्नति में आरक्षण हो–
अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण कोटा देने का मन केन्द्र सरकार ने मन बना लिया।इसके लिए संविधान संशोधन की तैयारी कर ली गयी है।ओबीसी की जातियों को भी पदोन्नति में आरक्षण कोटा दिया जाना न्यायसंगत होगा।मण्डल कमीशन की दूसरी ही सिफारिश में पदोन्नति में आरक्षण का सुझाव दिया गया है।ओबीसी आरक्षण उपवर्गीकरण कही पिछड़ों को आपस मे लड़ाने की साज़िश तो नहीं,केंद्र सरकार ने जुलाई 2017 में जस्टिस रोहिणी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय पिछड़ावर्ग उपवर्गीकरण जांच आयोग का गठन किया था,जिसका कार्यकाल 6-6 महीना बढ़ते बढ़ते उसका कार्यकाल अब 31 जुलाई,2022 को पूरा हो रहा है।जिसका मकसद ओबीसी को 3 श्रेणियों में बाँटना है।अब सवाल उठता है कि उपवर्गीकरण का मकसद वंचित जातियों को न्याय देना है कि इन्हें आपस मे लड़ाकर ओबीसी की ताकत को कमजोर करना है।ओबीसी उपवर्गीकरण का असली मकसद अतिपिछड़ी जातियों को सामाजिक न्याय देना कम राजनीतिक लाभ उठाना अधिक है।संघ के रणनीतिकार ओबीसी की ताकत को कमजोर व इनमे नफरत पैदा करने की मंशा से वर्गीकरण कराना चाहते हैं।


ओबीसी को समानुपातिक कोटा के बाद उपवर्गीकरण न्यायसंगत होगा पिछड़ी जातियों का 3 ही नहीं 4 श्रेणियों में विभाजन किया जाय,इससे पूर्व ओबीसी की जातियों को उनके जनसंख्या अनुपात में इनका कोटा दिए जाने का कदम उठाया जाए।ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत कोटा देने के बाद जब 50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा पार हो गयी है तो ओबीसी का आरक्षण कोटा बढ़ाने में हिचकिचाहट क्यों हो रही है?अगर केन्द्र सरकार की असल मंशा वंचित तबके को सामाजिक न्याय देने की है,तो इन्हें समानुपातिक आरक्षण कोटा देने के बाद ही उपवर्गीकरण किया जाना न्यायसंगत रहेगा।
आखिर ओबीसी की जनगणना कराने से क्यों कतरा रही है केन्द्र सरकार…?
ब्रिटिश सरकार ने 1881 में कास्ट सेन्सस(जातिवार जनगणना) की रिपोर्ट जारी किया था।अंतिम कास्ट सेन्सस 1931 में घोषित किया गया।सेन्सस-1941 में भी कास्ट सेन्सस कराया गया था,लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के कारण इसकी रिपोर्ट जारी नहीं की जा सकी।सेन्सस-1931 के अनुसार सभी ओबीसी जातियों की आबादी 52.10 थी,जिसमे हिन्दू ओबीसी जातियों की संख्या-43.7% व मुस्लिम ओबीसी/पसमांदा की संख्या-8.40% थी।
2011 के सेन्सस में कांग्रेस की सरकार ने सोसिओ-इको-कास्ट सेन्सस कराया था।2014 में सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा की सरकार बनी।इसने 15 जून,2016 को जब जनगणना रिपोर्ट उजागर किया तो ओबीसी के आंकड़े घोषित नहीं किया।
सेन्सस-2011 के अनुसार भारत सरकार के महापंजीयक व जनगणना आयुक्त ने एससी, एसटी,धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग(मुस्लिम, सिक्ख,ईसाई,बौद्ध,जैन,पारसी,रेसलर),दिव्यांग व ट्रांसजेंडर की जनसंख्या उजागर कर दिया।
अब सवाल उठना स्वाभाविक है कि ओबीसी के आँकड़े घोषित क्यों किये गए?इससे कौन सी राष्ट्रीय क्षति हो जाएगी।भारत सरकार कछुआ,मगरमच्छ, घड़ियाल,डॉल्फिन, शेर,भालू,चिता,हाथी आदि की गणना कराती है,तो ओबीसी की जनगणना कराने से कतराती क्यों है?


एससी,एसटी कास्ट व रिलिजियस सेन्सस तो ओबीसी का कास्ट सेन्सस क्यों नहीं?

05 जून,2018 को तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने गृह मंत्रालय से सम्बंधित रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया व सेन्सस कमिश्नर व विभागीय अधिकारियों की मीटिंग में निर्णय लिए थे कि सेन्सस-2021 में ओबीसी का कास्ट सेन्सस कराया जाएगा और 2024 तक जनगणना रिपोर्ट घोषित कर दी जायेगी।पर,भाजपा सरकार अपने वादे व निर्णय से मुकर गई है।जनगणना प्रपत्र में एससी, एसटी का कॉलम तो है,पर ओबीसी का नहीं।आखिर ओबीसी की जनगणना कराने से भाजपा सरकार का हाथ-पैर क्यों फुल रहा है?ओबीसी कास्ट सेन्सस से कौन सी महामारी आ जायेगी?कास्ट सेन्सस संवैधानिक है।न्यायालय में जब ओबीसी आरक्षण सम्बंधित कोई मामला आता है तो यह कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है कि पिछड़ी जातियों का कोई पुस्ट प्रामाणिक आँकड़ा उपलब्ध नहीं है।

(यह लेखक के अपने विचार हैं)