उ.प्र.पॉवर कॉर्पोरेशन लि.की नियुक्ति में ओबीसी,एससी को कोटा क्यों नहीं…?

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चौ0 लौटनराम निषाद

उ.प्र.पॉवर कॉर्पोरेशन लि.की नियुक्ति में ओबीसी,एससी को कोटा क्यों नहीं?राजस्व लेखपाल भर्ती में ओबीसी,एससी,एसटी, ईडब्ल्यूएस को आरक्षण कोटा से कम सीट क्यों….?

उत्तर प्रदेश पॉवर कॉर्पोरेशन लि. में शिविर सहायक ग्रेड-3 के 24 पदों के लिए विज्ञापन प्रकाशित हुआ है। समूह-ग के अंतर्गत 24 शिविर सहायक ग्रेड-3 भर्ती प्रक्रिया में 21 पद अनारक्षित रखा गया और ईडब्ल्यूएस को 2 व एसटी को 1 पद आरक्षित किया गया,ओबीसी व एससी को इसमें कोटा नहीं दिया गया है।भारतीय पिछड़ा दलित महासभा के राष्ट्रीय महासचिव चौ.लौटनराम निषाद ने उत्तर प्रदेश विद्युत निगम लि. की भर्ती में ओबीसी, एससी को कोटा नहीं देने पफ कहा है कि आखिर इन वर्गों को कोटा क्यों नहीं दिया गया है।उन्होंने प्रमुख सचिव ऊर्जा व महाप्रबंधक यूपीपीसीएल से संशोधित विज्ञापन प्रकाशित कराने की मांग किया है।
निषाद ने बताय…

मध्यप्रदेश में ओबीसी को मण्डल कमीशन के तहत 27 प्रतिशत आरक्षण पर न्यायिक अड़ंगेबाजी क्यों…..?


कमलनाथ जी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने अन्य पिछड़े वर्ग की जातियों को 27 प्रतिशत आरक्षण कोटा का शासनादेश किया था।जिसके विरोध स्वरूप सवर्ण संगठनों ने काफी विरोध किया और न्यायालय में भी चुनौती दिया। याचिका की सुनवाई दिनांक 27/4/22 को WP/5901/2019 के साथ की गई थी। उक्त याचिका में हाईकोर्ट द्वारा समानता को आधार मानकर अन्तरिम आदेश जारी किया गया है, जो त्रुटी पूर्ण है क्योंकि माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ के मामले में निर्धारित किया है कि ओबीसी के लिए 27% आरक्षण उचित सीमा के भीतर ही है। भारत के संसद द्वारा इंद्रा साहनी के प्रकरण में पारित आदेश को प्रभावहीन करते हुए केन्द्र सरकार द्वारा जनवरी 2019 में भारत के संविधान में 103 वा संशोधन करके अनुच्छेद 15(6) व 16 (6) में संशोधन द्वारा सवर्ण जातियों को आर्थिक आधार पर ईडब्ल्यूएस नाम से 10% तक की सीमा तक क्षैतिज(vertical) आरक्षण लागू किया गया है। वर्तमान में सम्पूर्ण देश में 59.5% आरक्षण प्रवर्तन में है, जिसकी वैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में अनेक याचिकाओं के माध्यम से चुनोती दी गई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा 50% कुल आरक्षण की सीमा 50% से अधिक आरक्षण हो जाने के आधार पर किसी भी याचिका में अन्तरिम आदेश जारी नहीं किया गया है।मध्यप्रदेश के विधानसभा द्वारा संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करते हुए ओबीसी आरक्षण को 14 % से बढ़ा कर 27% किया। विधायिका द्वारा बनाया गया कानून सिर्फ संविधान के उल्लंघन करने के आधार पर ही शून्य घोषित किया जा सकता है। इसके विपरीत विधायिका द्वारा बनाए गए कानून को न्यायालय के किसी निर्णय के उल्लंघन करने के कारण शून्य घोषित नहीं किया जा सकता है।


माननीय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा याचिका क्रमांक WP/5901/2019 में दिनांक 19/03/2019 आदेश जारी किया है कि ओबीसी को 14% से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जाए । ऐसा आदेश करने का कोई आधार न्यायालय द्वारा नहीं बताया गया है। यह आदेश स्पष्ट रूप से मध्यप्रदेश विधानसभा द्वारा बनाए गए कानून के विरुद्ध हैं, जबकि न्यायालय का कार्य कानून का पालन करवाने का है लेकिन यहाँ पर न्यायालय ने ओबीसी आरक्षण को 14% से अधिक लागू नहीं करने का आदेश जारी कर के स्पष्ट रूप से कानून का उल्लंघन करने का आदेश जारी कर दिया है। जिसके अनुसरण में लगातार आदेश जारी किया जा रहा है। उसी क्रम में विषयांकित याचिका में भी आदेश किया गया है। यह विधि का सुस्थापित सिद्धांत है कि बिना सकारण निर्णय बंधनकारी नहीं होता हैं।वही दूसरी ओर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा ओबीसी के 27% आरक्षण को 50% की सीमा से अधिक मानते हुए लेजिसलेशन( आरक्षण संशोधन अधिनियम 2019 ) को स्थगित किए बिना विषयवार दायर याचिकाओं में स्थगन आदेश पारित कर प्रवर्तन से रोका जा रहा है जबकि हाईकोर्ट जबलपुर द्वारा दिनांक 01/9/2021 को स्पष्ट रूप से आदेश जारी करके व्यक्त किया गया है, कि ओबीसी के 27% आरक्षण की संवैधानिकता को डिसाइड किए बिना किसी भी प्रकार का अन्तरिम आदेश जारी नहीं किया जाएगा, उक्त आदेश के बावजूद भीहाईकोर्ट द्वारा ओबीसी के 27% आरक्षण को भर्तियों/नियुक्तियों में प्रवर्तन से रोका जा रहा है।हाईकोर्ट द्वारा इसी प्रकार दिनांक 27/4/2022 को याचिका कमांक 6346/2022 जो WP/5901/2019 के साथ सुनवाई की जाकर अन्तरिम आदेश जारी किया गया है।

(1). इंद्रा साहनी एवं अन्य वनाम भारत संघ एवं अन्य के प्रकरण में मण्डल कमीशन द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में ओबीसी की 52.8% आवादी को दृष्टिगत रखते हुए ओबीसी का 27% आरक्षण माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा समुचित प्रतिनिधिव वास्ते, अविवादित निर्णीत किया गया है।
(2). 2011 की जनगणना के प्रकाशित डाटा के अनुसार, मध्य प्रदेश में ओबीसी की आवादी 50% से अधिक है, इसलिए इस वर्ग को समुचित प्रतिनिधिव के लिए 27% आरक्षण न्यायियिक है।

(3). मध्य प्रदेश में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% को दृष्टिगत रखते हुए, ओबीसी को 1994 से 27% आरक्षण के स्थान पर मात्र 14% आरक्षण दिया गया। वर्तमान में इस वर्ग का सिस्टम में समुचित प्रतिनिधित्व न होने के कारण विधायिका द्वारा दिनांक 8/3/2019 से 13% बढ़ाकर ओबीसी को कुल 27% आरक्षण लागू किया गया। 14/8/2019 को मध्य प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति ,आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग एवं अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम 1994 में संशोधन अधिनियम 2019 विधान सभा से पारित करके ओबीसी को प्रवेश एवं शासकीय आरक्षण लागू किया गया है।

(4). वर्तमान में मध्य प्रदेश में कुल आरक्षण 73% प्रवर्तन में है (16% एससी, 20% एसटी, 27% ओबीसी व 10% ईडब्ल्यूएस)।हाईकोर्ट केवल ओबीसी के 27% आरक्षण में ही दखल कर रहा है।यदि ओबीसी का 13% कम भी कर दिया जाता है तब भी 60% आरक्षण प्रवर्तन
में रहेगा।
(5). ओबीसी का 27% आरक्षण 50% की सीमा को क्रास नहीं कर रहा है, कई राज्य है जहाँ 50% की सीमा से अधिक 69%, 63% आरक्षण प्रवर्तन में हैं।

(6). भारत के संविधान में आरक्षण की अधिकतम सीमा क्या होगी, कोई प्रावधान नहीं है अर्थात कुल आरक्षण कितना होगा इसका निर्धारण करने का अधिकार सिर्फ विधायिका को है न की न्यायपालिका को।

(7). भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 के प्रावधान विधायिका पर बंधनकारी नही होते हैं। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार देश एवं प्रदेश का सिस्टम कैसे चलेगा ,इसका निर्धारण जनता के चुने हुए प्रतिनिधि (सांसद, विधायक) अर्थात विधायिका तय करती है न की न्यायपालिका।

(8) मध्य प्रदेश में न्यायपालिका अपनी सीमा रेखा को बाधित करके आरक्षण की संवैधानिकता को डिसाइड किए बिना विषयवार प्रवर्तन पर रोक लगा रही हैं जो असंवैधानिक है।

(9). पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा कलेक्ट किए डेटा अनुसार मध्य प्रदेश में ओबीसी को समुचित प्रतिनिधित्व का निर्धारण करने का अधिकार सिर्फ विधायिका को है, न कि न्यायपालिका को है।

(10), प्रदेश में एससी की जनसंख्या 15.6%, एसटी 21.1%, ओबीसी 50.09% अल्पसंख्यक 10% व सवर्ण 4.21% हैं।
मध्य प्रदेश में आरक्षण की स्थिति :

वर्ग जनसंख्या % आरक्षण%
ओबीसी। 50.09 14
(13% विवादित)

एससी 15.6% 15%
एस.टी. 20.1% 20%
ईडब्ल्यूएस 10%
कुल सवर्ण-4.21%

उच्चतम न्यायालय ने 10 मई,2022 को अंतरिम निर्णय दे दिया कि मध्यप्रदेश में बिना ओबीसी आरक्षण के त्रिस्तरीय पंचायत व नगर निकाय चुनाव कराया जाए।सरकार को इस सम्बंध में 15 दिन के अंदर अधिसूचना जारी करने आदेश दिया है ।आखिर ओबीसी आरक्षण के मामले में ही न्यायिक अड़ंगेबाजी क्यों होती है?जब कभी ओबीसी का मामला आता है,तब न्यायपालिका का हथौड़ा चल जाता है। [/Responsivevoice]