क्या दलित राजनीति में होगा बड़ा परिवर्तन….?

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उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति अब एक नये परिवर्तन की ओर है। बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती के सबसे खास आज समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ आ गयें हैं।1981 बैच के आईएएस अफसर फतेह बहादुर, मायावती के विश्वासपात्र रहे हैं। मायावती के कार्यकाल में वो हमेशा महत्वपूर्ण पदों पर रहे, मायावती के 2007 से 2012 तक के कार्यकाल में फतेह बहादुर गृह और नियुक्ति विभाग के प्रमुख सचिव थे। बसपा सरकार में जबरदस्त तूती बोलती थी और बिना उनकी मर्जी के पत्ता भी नहीं हिलता था । कुंवर फतेह बहादुर ने 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले नौकरी छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया था। बसपा में शामिल होते ही मायावती ने उन्हें पार्टी प्रवक्ता की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी थी।


एक समय मायावती के विश्वासपात्र रहे, भारतीय प्रशासनिक सेवा के रिटायर्ड आईएएस अफसर कुंवर फतेह बहादुर सिंह अब समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उनको पार्टी की सदस्यता दिलाई। अखिलेश यादव ने कुंवर फतेह बहादुर के साथ फोटो शेयर करते हुये ट्वीट किया है । अखिलेश यादव ने लिखा कि समता-समानता व सामाजिक न्याय आंदोलन की लड़ाई लड़ने के साथ ही क़ानून-व्यवस्था के क्षेत्र में प्रशंसनीय कार्य करनेवाले रिटायर्ड आईएएस कुंवर फतेह बहादुर सिंह जी का संग आना समाजवादी- अंबेडकरवादी आंदोलन को नयी शक्ति और ऊर्जा प्रदान करेगा। ‘एकजुटता’ का इंक़लाब होगा हर वर्ग कह रहा बदलाव होगा !


आईएएस की नौकरी छोड़कर बसपा का दामन थामने वाले कुंवर फतेह बहादुर सिंह ने मायावती के ‘ब्राह्मणवाद’ पर मायावती को भी नही बख्शा। जब मायावती ने लोकसभा में बसपा के सदन का नेता कुंवर दानिश अली को हटाकर अंबेडकरनगर सीट से सांसद रितेश पांडेय को बनाया। तो लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदन के नेता ब्राह्मण समुदाय के होने के चलते कुंवर फतेह बहादुर सिंह ने सवाल खड़ा कर दिया। इस बदलाव पर मायावती ने तर्क दिया था कि सामाजिक सामांजस्य बनाने के लिए यह फैसला लिया गया है। इसपर फतेह बहादुर सिंह ने मायावती से सवाल किया था कि लोकसभा और राज्य सभा में एक ही समाज (ब्राह्मण) के नेता किस सामाजिक न्याय का प्रतीक है…?


देश की वर्तमान राजनीति धर्म, वर्ण, जाति, भाषा आदि बिंदुओं पर केंद्रित है। इसलिए यह भटक गई है। राजनेता उसी बलबूते पर टिके हैं। अब चाणक्य की न्याय-नीति और संस्कृति की राजनीति पुराने ग्रंथों में सिर्फ पढऩे के लिए उपलब्ध है।जनता की भलाई और न्याय-नीति की बातें सिर्फ धार्मिक प्रवचनों का विषय है। ऐसे में भारत के भाग्यविधाता बनने या उसके सांस्कृतिक गौरव की सुरक्षा होने की कोई संभावना नहीं है।