ऑनलाइन शिक्षा के साथ कोरोनाकाल मे बेहतर भविष्य तलाशता युवा वर्ग

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कोरोना वायरस संक्रमण एकबार फिर से तेजी से अपने पैर पसार रहा है। कोरोना के बढ़ते प्रकोप ने हर एक क्षेत्र को प्रभावित किया है। कोविड-19 के बढ़ते संक्रमण को देखते हुवे सभी स्कूलों और विश्वविद्यालयों में एकबार फिर से ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने की ओर क़दम बढ़ा दिये हैं। एहतियातन स्कूल- कॉलेज फिलहाल बन्द कर वर्चुअल शिक्षा पर ध्यान दिया जा रहा है। वर्चुअल पढ़ाई बेशक अपने आप में बच्चों और टीचर्स दोनों के लिए ही नई प्रैक्टिस बनकर उभरी और उभर रही है।

लेकिन दूसरी ओर ऑनलाइन शिक्षा ग्रामीण भारत की पहुंच से बहुत दूर और गैर- व्यावहारिक है। ये भी सच है कि यदि कक्षा की तुलना ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली से की जाए तो इससे भारत के बहुसंख्यक बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होगी। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले वंचित समुदाय के बच्चों के लिए पर्याप्त साधन और इंटरनेट डाटा जुटाना मुश्किल है। ऐसे में ग्रामीण युवा वर्ग के हितों को ध्यान में रखना शिक्षा पद्धति को देखते हुवे काफ़ी मुश्किल लग रहा है। एक और चिंताजनक तथ्य यह भी है कि इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया, 2019 की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में 67 प्रतिशत पुरुष और 33 प्रतिशत महिलाएं ही इंटरनेट का उपयोग करती हैं।

ग्रामीण भारत में यह अनुपात और अधिक असंतुलित है। यहां पुरुषों की तुलना में महज 28 प्रतिशत महिलाएं ही इंटरनेट का उपयोग करती हैं।ऐसे में यह स्पष्ट है कि छोटी लड़कियों के लिए स्मार्ट फोन और इंटरनेट उपलब्ध कराना कहीं अधिक मुश्किल है। ऐसे में इन युवाओं का भविष्य अधर में लटकता दिखाई दे रहा है। वास्तविकता में यदि देखा जाए तो भारत के युवाओं पर महामारी के तुलनात्मक रूप से अधिक बुरे असर से निपटने के लिए ज्यादा ज़रूरत इस बात की है कि सरकार, युवाओं को राहत देने के लिए ख़ास उनके लिए प्रयास करे। सरकार की कोशिश ये होनी चाहिए कि वो युवाओं को न केवल मौजूदा आर्थिक संकट से निजात पाने में मदद करे, बल्कि ये प्रयास भी करे कि इस समय भारत जिस आबादी के संकट से दो-चार है, उससे भी बच सके।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वर्चुअल संवाद की ताकत को समझते हुए बोर्ड की हाईस्कूल और इंटर की परीक्षाओं के मद्देनजर शिक्षकों – छात्रों- अभिभावकों से बातचीत कर परीक्षा पर चर्चा की। हाल ही में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अभ्युदय निःशुल्क कोचिंग योजना के तहत ऑनलाइन स्टडी को बढ़ावा देते हुवे इस योजना को युवाओं को समर्पित किया। सरकार इस तरह की तमाम योजनाएं युवा छात्रों के भविष्य को देखते हुए लेकर आ रही हैं। ऑनलाइन शिक्षा कितनी कारगर साबित होती हैं ये तो भविष्य में आने वाले परिणामों पर निर्भर करता है।

परंतु डिजिटल होते शिक्षा के इस स्वरूप ने शिक्षक और छात्र दोनो के लिए शिक्षा को आसान जरूर बना दिया है। ऑनलाइन शिक्षा कई संचार मोड का उपयोग करके, शिक्षकों और छात्रों दोनों को विचारों और जानकारी का आदान-प्रदान करने और देश के किसी भी कोने से काम करने का मौका देती है।ई-लर्निंग डिस्टेंट शिक्षा का एक रूप है, जहां शिक्षक दूर बैठे अपने छात्रों को ऑनलाइन प्लेटफोर्म के ज़रिये पढ़ाने का कार्य करता है।

शिक्षा जगत में इस बात पर बहस है कि ऑनलाइन रुझान क्या भविष्य में ज्यादा से ज्यादा छात्रों – युवाओ को स्तरीय शिक्षा मुहैया करा पाने की संभावना देगा। क्योंकि बात सिर्फ इंटरनेट और लर्निंग की नहीं है बात उस विकराल डिजिटल विभाजन की भी है जो इस देश में अमीरों और गरीबों के बीच दिखता है। केपीएमजी के उपरोक्त आंकड़ों को ही पलटकर देखें तो ये पहलू भी स्पष्ट हो जाता है। ऑनलाइन क्लास की तकनीकी जरूरतों और समय निर्धारण के अलावा एक सवाल टीचर और विद्यार्थियों के बीच और सहपाठियों के पारस्परिक सामंजस्य और सामाजिक जुड़ाव का भी है। क्लासरूम में टीचर संवाद और संचार के अन्य मानवीय और भौतिक टूल भी इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन ऑनलाइन में ऐसा कर पाना संभव नहीं।

सबसे एक साथ राब्ता न बनाए रख पाना वर्चुअल क्लासरूम की सबसे बड़ी कमी है।इधर शहरों में जूम नामक ऐप के जरिए होने वाली कक्षाओं के दौरान तकनीकी समस्याओं के अलावा निजता और शालीनता को खतरे जैसे मुद्दे भी उठे हैं।कई और असहजताएं भी देखने को मिली हैं, सोशल मीडिया नेटवर्किंग में यूं तो अज्ञात रहा जा सकता है लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई के लिए प्रामाणिक उपस्थिति, धैर्य और अनुशासन भी चाहिए।जाहिर है ये नया अनुभव विशेष प्रशिक्षण की मांग करता है

जरूरत इस बात की है कि शिक्षा का ऐसा एक समन्वयकारी और समावेशी ढांचा बनाया जाए जिसमें डिजिटल शिक्षा पारंपरिक शिक्षा पद्धति का मखौल न उड़ाती लगे और न पारंपरिक शिक्षा, डिजिटल लर्निंग के नवाचार को बाधित करने की कोशिश करे।