करवाचौथ स्त्रियों का प्रमुख त्योहार एवं कहानी

91

करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ मनाती हैं। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब ४ बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है।

ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियाँ करवा चौथ का व्रत बडी़ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अ‌र्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। वर्तमान समय में करवाचौथ व्रतोत्सव ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं।

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करकचतुर्थी (करवा-चौथ) व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत रखती हैं।

करवा चौथ व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को होता है। इस साल यह 4 नवंबर को पड़ रहा है। इस दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु की कामना करते हुए निर्जला व्रत रखती हैं। शाम को पूजा और चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। करवा चौथ के दिन व्रती स्त्रियां सोलह श्रृंगार करती हैं। इस दिन लाल रंग के वस्त्र या साड़ी पहनना शुभ माना जाता है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, करवा चौथ पर व्रती स्त्रियों के राशि के हिसाब से भी वस्त्र धारण कर पूजन करने से उन्हें शुभ फल की प्राप्ति होती है। 

करवा चौथ का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह व्रत महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु की कामना के लिए रखती हैं। इस व्रत में महिलाएं पूरे दिन निर्जला रहती हैं और शाम को चांद के उदय होने के बाद व्रत खोलती हैं। इस व्रत में शिव परिवार सहित चंद्र देवता की भी पूजा की जाती है।

राशि के हिसाब से शुभ रंग और पूजा का मुहूर्त-

मेष- गहरा लाल रंग,वृष- पीला रंग, मिथुन- हरा रंग, कर्क – गुलाबी रंग,सिंह- लाल रंग, कन्या – हरी धारियों वाला वस्त्र या साड़ी,तुला – सफेद कढ़ाई वाली गुलाबी अथवा पीली साड़ी , वृश्चिक – प्लेन साड़ी,धनु – हल्के पीले रंग के आउटफिट, मकर – कथई रंग का वस्त्र,कुम्भ – मैरून रंग, मीन – पीली साड़ी या आउटफिट।

करवा चौथ व्रत में प्रयोग होने वाली सामग्री –

चंदन, शहद, अगरबत्ती, पुष्प,  कच्चा दूध, शक्कर,  शुद्ध घी, दही, मिठाई, गंगाजल, अक्षत (चावल), सिंदूर, मेहंदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी,  बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन,  दीपक, रुई, कपूर, गेहूं, शक्कर का बूरा, हल्दी, जल का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, चलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ और दक्षिणा (दान) के लिए पैसे आदि।

एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहाँ एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा। उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगर को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन ! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ। यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी। सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।