डिफॉल्ट जमानत पर रिहा अभियुक्त को फिर से नहीं किया जा सकता गिरफ्तार: सुप्रीम कोर्ट

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डिफॉल्ट जमानत पर रिहा अभियुक्त को आरोप पत्र दायर किये जाने के बाद फिर से गिरफ्तार नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि डिफॉल्ट जमानत पर रिहा अभियुक्त को पुलिस द्वारा आरोप पत्र दायर किये जाने के बाद फिर से गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। इस मामले में, कमलेश के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धाराएं – 406, 409, 420, 467, 468, 471, 477 ए, 201 और 120 बी तथा प्राइज चिट्स मनी सर्कुलेशन स्कीम (बैनिंग एक्ट), 1978 की धारा – पांच तथा सूचना एवं प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 65 के तहत अपराध के आरोप थे।

हाईकोर्ट ने निर्धारित अवधि के भीतर आरोप पत्र दायर नहीं करने के आधार पर आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167(2) के तहत डिफॉल्ट जमानत की याचिका मंजूर कर ली थी।

हालांकि हाईकोर्ट ने जमानत मंजूर करते हुए कहा था कि अभियुक्त को आरोप पत्र दायर करने के बाद फिर से गिरफ्तार किया जा सकता है।

अभियुक्त ने आरोप पत्र दायर होने के बाद फिर से गिरफ्तार किये जाने के हाईकोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गयी थी कि हाईकोर्ट का आंशिक निर्णय ‘बशीर बनाम हरियाणा सरकार [(1977) 4 एससीसी 410]’ मामले में निर्धारित कानून के विरुद्ध है, जहां यह व्यवस्था दी गयी थी कि अभियोजन पक्ष के लिए कानून के आधार पर जमानत रद्द करने की अर्जी देने का रास्ता खुला है, लेकिन कोर्ट में केवल आरोप पत्र की प्राप्ति जमानत निरस्त करने का आधार नहीं हो सकती।

इस दलील का विरोध करते हुए सरकार ने दलील दी कि हाईकोर्ट को सीआरपीसी की धारा 437(3) और 439(2) के तहत जमानत मंजूर करते वक्त कोई भी शर्त थोपने का अधिकार है।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की खंडपीठ ने अपील मंजूर करते हुए इस प्रकार कहा : “बशीर मामले में इस कोर्ट द्वारा दिये गये फैसले से यह स्पष्ट है कि महज आरोप पत्र दायर करना ही अपने आप में जमानत निरस्त करने का आधार नहीं हो सकता।

सीआरपीसी की धारा 167 के तहत मंजूर की गयी डिफॉल्ट जमानत को कानून में उपलब्ध अन्य आधार पर निरस्त किया जा सकता है। उपरोक्त विमर्श के मद्देनजर हाईकोर्ट के फैसले में पैराग्राफ संख्या 17 में दर्ज किये गये तथ्य निरस्त किये जाते हैं।”

सुप्रीम कोर्ट ने ‘बशीर मामले’ में दिये गये फैसले में कहा था कि यदि कोर्ट को जमानत रद्द करना आवश्यक लगता है तो वैसे मामलों में उसका यह अधिकार सुरक्षित है, जहां किसी व्यक्ति को धारा 437(1) अथवा (2) के तहत जमानत पर रिहा किया गया हो और ये प्रावधान उस व्यक्ति पर लागू होंगे, जिसे धारा 167(2) के अंतर्गत रिहा कया गया हो।”

कोर्ट ने कहा,

“जब किसी व्यक्ति के खिलाफ जांच लंबित हो और उसे इस आधार पर धारा 437(2) के तहत रिहा किया जाता है कि यह विश्वास दिलाने के लिए इस बात का पर्याप्त आधार नहीं है कि उसने गैर – जमानती अपराध किया है वह कोर्ट जिसने उस व्यक्ति को जमानत पर रिहा किया है हिरासत में रखने के लिए प्रतिबद्ध हो सकता है, यदि वह संतुष्ट हो जाता है कि जांच पूरी होने के बाद ऐसा करने का पर्याप्त आधार मौजूद है।”

केस शीर्षक : कमलेश चौधरी बनाम राजस्थन सरकार [एसएलपी (क्रिमिनल) नंबर 5715 / 2020]

कोरम : न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा