सरकार खुशहाल-किसान बेहाल-अखिलेश यादव

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भाजपा सरकार अपनी हठधर्मिता के चलते किसानों, श्रमिकों, सहित जनता के सभी वर्गों में अलोकप्रिय होती जा रही है। संवाद और सहिष्णुता से उसने दूरी बना ली है। नतीजतन लोकतंत्र की मर्यादाएं टूट रही हैं और संविधान के अंतर्गत केन्द्र राज्य सम्बंधों में भी तनाव बढ़ने लगा है।

प्रधानमंत्री जी लाभ देने वाली सरकारी संस्थाएं बेच रहे हैं, मुख्यमंत्री जी समाजवादी सरकार के कामों पर जबरन अपने नाम के पत्थर लगवा रहे हैं, इनके मंत्री पीएम-सीएम की फोटो लगाकर फर्जी मोबाइल बिक्री का उद्घाटन कर रहे हैं। देश नहीं बिकने देने का नारा लगाने वाले लोकतंत्र की मंडी लगाकर बैठ गए हैं।

किसान ही तो भारत देश की शान है, फिर ठंड में सड़कों पर क्यों परेशान है…..?

ठंड में ठिठुरते किसानों की आह खाली न जायेगी, सत्ता को उखाड़ फेकेंगे, झूठी वहम पाली न जायेगी।

ये कड़कड़ाती ठंड आन्दोलन के किसानों की जान ना निगल जायें, सरकार किसानों से बात करने के लिए संसद से निकल कर आयें।

  प्रदेश में किसानों का हाल बेहाल है। झूठे दावों से भ्रम फैलाते हुए किसानों का ध्यान भटकाने में भाजपा सरकार व्यस्त है। पेराई सत्र शुरू होने के बावजूद गन्ने की कीमत में वृद्धि नहीं हुई। नए सत्र में मिल मालिक पुरानी दरों पर ही भुगतान कर रहे हैं। पिछला बकाया ही अभी चुकता नहीं हुआ है। गन्ना किसान को जब समय से बकाया ही नहीं मिल रहा है तो उस पर ब्याज की अदायगी कौन करेगा…?

किसान आन्दोलन से हर किसी को नुकसान होता है। भाजपा सरकार को कृषि क़ानून बनाने से पहले किसान नेताओं, किसान आर्गेनाइजेशन और किसानों की सहमति लेकर कृषि क़ानून में बदलाव करना चाहिए। जिस दिन सरकार किसान के आय को बढ़ा देगी, उस दिन भारत के विकास की गति बहुत ही तेज हो जायेगी। किसानों के जीवन में बहुत सारी समस्याएं है।

भाजपा सरकार चंद अमीर मित्रों के फ़ायदे के लिए पूरे देश के किसान को न ठगे और आज की वार्ता में कृषि क़ानून वापस ले,सच तो ये है कि भाजपा का ज़मीनी कार्यकर्ता भी यही चाहता है क्योंकि वो आम जनता के बीच जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है। भारत का राजनीतिक नेतृत्व इतना बंजर कभी न था।

गन्ना किसान की दुर्दशा पर भाजपा सरकार का कोई ध्यान नहीं है।वैसे भी भाजपा सरकारों ने पूंजीघरानों के फायदे की खातिर अन्नदाता के हितों की बलि दे दी है। सत्ता ने उन पर अत्याचार की सभी हदें पार कर दी है। किसान को न तो फसल की लागत की ड्योढ़ी कीमत मिली है नहीं उसकी आय दुगनी करने की कोई योजना सामने आई है।

अपनी मांगों को लेकर आंदोलनकारी किसानों के बीच कई किसान अपनी जान गंवा बैठे हैं कुछ ने तो आत्मदाह तक कर लिया। लेकिन भाजपा प्रवक्ता किसान आंदोलन में शहीद किसानों की मौत को नकार रहे हैं, यह बयान और सरकारी रवैया अपमान जनक और घोर निंदनीय है।

   भाजपा की राज्य सरकार ने तो किसान आंदोलन खत्म करने के लिए नई साजिश रची है। किसानों को चिह्नित करने के नाम पर पुलिस के जरिए किसानों के मनोबल को कमजोर करने की कोशिश हो रही है। इसमें प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल हुए हैं।

यह अलोकतांत्रिक आचरण है। लेकिन इस भाजपा सरकार को लोकलाज भी नहीं रह गई है। किसानों और जनता की आवाज को कुचलने की उसकी आदत के खिलाफ व्यापक जनाक्रोश उबल रहा है। सरकार इसकी आंच से नहीं बच सकेगी।

     समाजवादी पार्टी किसानों के संघर्ष में उनके साथ है। ‘समाजवादी किसान यात्रा‘ की असीम सफलता के बाद ‘समाजवादी किसान घेरा‘ कार्यक्रम को किसानों के बीच भारी स्वीकारिता बढ़ी है। किसान इस कार्यक्रम में घेरा बनाकर चौपाल के बीच अपनी बात कह रहे हैं और समाजवादी नेताओं की बातों को समर्थन दे रहे हैं।

गांव-गांव अलाव पर चौपालें लग रही है। हजार से ऊपर गांवों तक इस कार्यक्रम का आयोजन हो चुका है। किसानों के रोष को देखते हुए विश्वास होता है कि अब भाजपा के दिन गिने चुने रह गए हैं। किसान सत्ता में बदलाव चाहते है। सन् 2022 में वे साइकिल के साथ रहेंगे।